धोनी की महानता का जब-जब जिक्र होगा, बिहार का भी नाम जरूर लिया जाएगा
नई दिल्ली। क्रिकेट के कालजयी खिलाड़ी महेन्द्र सिंह धोनी का जब भी नाम लिया जाएगा बिहार का जिक्र जरूर आएगा। उन्होंने बिहार के खिलाड़ी के रूप में ही क्रिकेट का ककहरा सीखा। जब वे 17 साल के थे तो बिहार के रहने वाले कोच देवल सहाय ने ही उन्हें हर छक्के पर पर 50 रुपये का इनाम देने का दांव खेला था। इस बाजी ने धोनी की किस्मत पलट दी। उन्होंने स्कूल क्रिकेट से सीधे रणजी ट्रॉफी में छलांग लगा दी। उन्होंने अपने जीवन का पहला रणजी मैच बिहार की टीम से खेला। धोनी ने अपने जीवन में जो सिर्फ एक रणजी शतक लगाया है वह बिहार की तरफ से खेलते हुए ही लगाया है। बिहार की तरफ से खेलते हुए धोनी ने अपने पहले ही मैच में धोनी से 68 नाबाद की पारी खेली कर लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा। फिर उसके बाद बिहार के माही की ऐसी वाहवाही हुई कि सितार बन गया। धोनी को जो पहली सरकारी नौकरी मिली वह बिहार के खिलाड़ी के रूप में मिली।
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छक्का लगाओ और पचास का नोट पाओ
धोनी रांची में स्कूल क्रिकेट खेलते थे और उन्हें आतिशी बल्लेबाजी के लिए जाना जाता था। 1997 में चालीस ओवरों की एक स्कूली प्रतियोगिता में वे दोहरा शतक ठोक कर तहलका मचा चुके थे। एक बार सेंट्रल कोलफील्ड लिमिटेड के कोच देवल सहाय ने जब धोनी को खेलते हुए देखा तो बहुत प्रभावित हुए। उस समय धोनी 17 साल के थे। वे तेज बल्लेबाज तो थे ही विकेट के पीछे भी फुर्तीले थे। उन्होंने 1998 में धोनी को सेंट्रल कोलफील्ड लिमिटेड की क्रिकेट टीम से जोड़ लिया। धोनी नेट प्रैक्टिस में हमेशा लंबे हिट लगाने की कोशिश करते। शीश महल क्रिकेट प्रतियोगिता शुरू हुई तो देवल सहाय ने धोनी को कहा, तुम जितने छक्के लगाओगे उतने पचास के नोट पाओगे। एक छक्के पर पचास रुपये का इनाम। इनाम जीतने के जोश में धोनी ने धुआंधार खेल दिखाया और शतक ठोक डाला। उनकी इस पारी की बहुत चर्चा हुई। देवल सहाय सीसीएल के कोच थे और बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व उपाध्यक्ष रहे थे। उन्होंने बिहार क्रिकेट संघ के अपने मित्र पदाधिकारियों से धोनी की इस पारी की चर्चा की। देवल सहाय की इस चर्चा ने धोनी के लिए बिहार रणजी टीम में चुने जाने का रास्त तैयार कर दिया। 1999-2000 सत्र के लिए जब बिहार रणजी टीम का एलान हुआ तो महेन्द्र सिंह धोनी का भी नाम में उसमें था। वे टीम में विकेटकीपर बल्लेबाज के रूप में शामिल थे। 1999 में बिहार का पहला रणजी मैच असम से हुआ था। इस मैच की दूसरी पारी में धोनी को बल्लेबाजी का मौका। उन्होंने इस मौके को भुनाया और अपने डेब्यू मैच में 68 नाबाद रनों की पारी खेली। इस सत्र में धोनी ने पांच मैचों में कुल 283 रन बनाये और विकेट के पीछे 15 शिकार किये (12 कैच 3 स्टम्पिंग)। यह प्रदर्शन किसी नये खिलाड़ी के लिए बहुत प्रभावकारी थी।
धोनी का एक मात्र रणजी शतक बिहार टीम से
महेन्द्र सिंह धोनी ने 2000-2001 के सत्र में बिहार से खेलते हुए बंगाल के खिलाफ 114 रनों की पारी खेली थी। यह शतक धोनी के रणजी करियर में एक मात्र शतक है। उन्होंने 114 रनों की पारी में 17 चौके मारे थे। बंगाल की टीम ने पहले खेलते हुए पांच विकेट के नुकसान 608 रन बनाये थे और पारी समाप्ति की घोषमा कर दी थी। इस विशाल स्कोर के दबाव में बिहार की पारी लड़खड़ा गयी थी। केवल धोनी ने ही डट कर मुकाबला किया। उनके शतक के सहारे बिहार की पहली पारी किसी तरह 323 तक पहुंची। धोनी का यह शतक बेकार चला गया। दूसरी पारी में भी बिहार की पारी ढह गयी और उसे हार का सामना करना पड़ा।
बिहार से 23 रणजी मैच खेल चुके हैं धोनी
बिहार का बंटवारा 15 नवम्बर 2000 को हुआ था जिससे झारखंड नया राज्य बना। राज्य का विभाजन 2000 में तो हो गया लेकिन क्रिकेट संघ का विभाजन नहीं हो पाया था। 2003-2004 सत्र तक झारखंड को बिहार क्रिकेट टीम के रूप में खेलना पड़ा। इस दौरान महेन्द्र सिंह धोनी ने बिहार के लिए कुल 23 मैच खेले। बंगाल के खिलाफ शतक लगाने के बाद धोनी फिर रणजी में शतक नहीं लगा सके। वे दो बार 96 रनों के स्कोर पर पहुंच कर आउट हो गये थे। 2005 में बीसीसीआइ ने झारखंड क्रिकेट संघ को मान्यता दे दी और इस तरह धोनी बिहार क्रिकेट से अलग हो गये। धोनी जब बिहार क्रिकेट टीम से खेलते थे उसी समय 2001 में उन्हें रेलवे में (टीटीई) नौकरी मिली थी। यह नौकरी उन्हें स्पोर्ट्स कोटा के तहत मिली थी। तब धोनी को पहली बार तीन हजार रुपये की वेतन वाली नौकरी मिली थी। उनको पहली सरकारी नौकरी बिहार के खिलाड़ी के रूप में मिली थी। इसके पहले जब ने सीसीएल के लिए खेलते थे तो उन्हें हर महीने 1800 रुपये की तनख्वाह मिलती थी। धोनी की विस्फोटक बल्लेबाजी के देख कर सीसीएल के कप्तान आदिल हुसैन ने उनका वेतन 2200 रुपये करवा दिया था। 2018 में धोनी बिहार-झारखंड में सबसे अधिक इनकम टैक्स देने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने 12.17 करोड़ रुपये का आयकर दे कर बिहार-झारखंड में टॉप पोजिशन हासिल की थी। लेकिन एक वक्त वह भी था जब वे दो हजार-तीन हजार की नौकरी करते थे। बुरा वक्त हो या अच्छा वक्त, धोनी ने हमेशा अपने आप को संतुलित रखा। अपने इसी गुण के कारण वे आगे चल कर महान खिलाड़ी बने।
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