NRC कब लागू होगा ? पहली बार मोदी सरकार की ओर से आया आधिकारिक बयान
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नई दिल्ली- नागरिकता संशोधन कानून को लेकर जारी घमासान अभी थमा नहीं है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर ये कहने के बाद कि अभी एनआरसी पर कोई चर्चा नहीं की गई है मोदी सरकार की ओर से इस मसले पर पहली बार एक बड़ा आधिकारिक बयान आया है। ये बयान केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद की ओर से आया है, जिसमें साफ संकेत हैं कि भले ही सरकार ने फिलहाल इस पर कोई चर्चा नहीं की हो, लेकिन उसके मन में इसे लाए जाने का विचार जरूर मौजूद है। हालांकि, कानून मंत्री ने भरोसा दिया है कि इसे बहुत ही सावधानीपूर्वक, कानूनी तरीके से लाया जाएगा और किसी भी सूरत में किसी भारतीय नागरिक का उत्पीड़न नहीं होने दिया जाएगा। बता दें कि फिलहाल सीएए पर भी सरकार को बड़ी राहत मिल चुकी है और करीब डेढ़ याचिकाएं दायर होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने सीएए पर किसी तरह का अंतरिम रोक लगाने से साफ मना कर दिया है।
हम तय करेंगे, उचित तरीके से करेंगे- कानून मंत्री
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर जारी विरोध और समर्थन के बीच केंद्र सरकार की ओर से पहली बार नेशनल सिटीजनशिप रजिस्टर को लेकर खुलकर संकेत दिया गया है। इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने जो कुछ भी कहा है उससे साफ है कि सीएए और एनपीआर के विरोध के बावजूद सरकार ने एनआरसी का ख्याल अपने विचार प्रक्रिया से हटाया नहीं है। कानून मंत्री ने सीएए, एनपीआर और एनआरसी को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा कि, 'एनआरसी की तैयारी के लिए प्रक्रिया पहले से तय है। सरकार जब भी इसे लागू करना चाहेगी, मंत्रिमंडल फैसला लेगा, अधिसूचना जारी की जाएगी और इसकी प्रक्रिया शुरू करने के लिए तारीख तय की जाएगी। जब उनसे अगला सवाल पूछा गया कि एनआरसी की प्रक्रिया कब होगी? तो उन्होंने स्पष्ट तौर कहा कि, 'वो हम तय करेंगे। हम कानून के मुताबिक, सावधानी से और उचित तरीके से इसे करेंगे।'
'एनआरसी की वजह से किसी का भी उत्पीड़न नहीं होगा'
बता दें कि पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि सीएए के बाद एनआरसी लाएंगे। लेकिन, बाद में प्रधानमंत्री ने बीजेपी की एक रैली में बताया था कि एनआरसी पर सरकार ने कोई चर्चा नहीं की है। बावजूद इसके विपक्ष सीएए और एनपीआर को मुद्दा बनाकर इसे एनआरसी की पहली प्रक्रिया से जोड़कर बवाल काट रहा है। ऐसे में केंद्रीय कानून मंत्री का ताजा बयान काफी अहम माना जा रहा है। जब रविशंकर प्रसाद से पूछा गया कि अगर एनआरसी की वजह से 2 करोड़ लोग उससे बाहर हो जाते हैं तो फिर उनका क्या होगा? इस पर उन्होंने जवाब दिया कि 'भारत के किसी वैध नागरिक को इसकी वजह से चिंतित होने की जरूरत नहीं है। यह जब भी लागू किया जाएगा किसी का भी उत्पीड़न नहीं होगा।'
'कब कैसे करना है ये सरकार पर छोड़ देना चाहिए'
केंद्रीय मंत्री ने इस सवाल के जवाब में कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में नागरिकता संशोधन कानून क्यों नहीं बनाया गया, जब असम में एनआरसी का काम हो गया उसके बाद ही क्यों इसकी जरूरत पड़ी? तो उन्होंने कहा कि पहले कार्यकाल में करने पर सवाल होता कि विकास का एजेंडा कहां है? उन्होंने कहा कि जनता सरकार पर भरोसा करती है और कब कैसे करना है यह बातें उसी पर ही छोड़ देना चाहिए। गौरतलब है कि सीएए पर फिलहाल मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से भी एक महीने की बड़ी राहत मिल गई है। सर्वोच्च अदालत ने नए नागरिकता कानून पर किसी भी तरह की अंतरिम रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया है।
सीएए पर अंतरिम रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
बुधवार को सीएए के खिलाफ 144 याचिकाओं पर सुनवाई करते शीर्ष अदालत ने साफ कह दिया है कि इस कानून पर अभी कोई अंतरिम रोक नहीं लगाया जाएगा। कोर्ट ने साफ कर दिया कि वह बिना केंद्र की बातों को सुने कोई आदेश नहीं जारी करेगी। सर्वोच्च अदालत ने इस मामले की सुनवाई करने से सभी हाई कोर्ट को भी मना कर दिया है। अदालत ने संकेत दिया है कि 4 हफ्ते में केंद्र सरकार का जवाब मिलने के बाद वह इस केस की सुनवाई के लिए बड़ी संविधान पीठ भी गठित कर सकती है।
सरकार ने साफ किया है कि सीएए वापस नहीं होगा
बता दें कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मंगलवार को यूपी की राजधानी लखनऊ में सीएए के समर्थन में एक सभा को संबोधित किया था जिसमें उन्होंने कहा कि विपक्ष सीएए को लेकर भ्रम फैला रहा है। लेकिन, उन्होंने दो टूक कह दिया है कि चाहे जितना विरोध करना है कर ले, लेकिन किसी भी कीमत पर सीएए वापस नहीं लिया जाएगा। गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन कानून पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होकर आने वाले हिंदुओं, सिखों, क्रिश्चियनों, पारसियों, जैनों और बौद्धों को भारतीय नागरिकता देने का कानून है। इसके मुताबिक इस आधार पर 31 दिसंबर, 2014 से पहले जो भी शरणार्थी इस आधार पर भारत आ चुके हैं, उन सबको भारतीय नागरिकता दी जानी है। इसी के बाद से इसे मुसलमानों के साथ भेदभाव वाला कानून बताया जा रहा है।