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जब सरकार बनाने-गिराने के खेल में हुई थी राज्यपाल से धक्का-मुक्की

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राजनीति में सत्ता के लिए संघर्ष एक अनिवार्य प्रवृति है। लेकिन कभी कभी यह संघर्ष मर्यादा की सीमा को लांघ जाता है। राजस्थान में सत्ता बचाने और गिराने का खेल चरम पर है। कांग्रेस के विधायक राजभवन में धरना पर बैठे तो राज्यपाल ने पत्र लिख कर मुख्यमंत्री को संवैधानिक गरिमा की याद दिलायी। जब सरकार के बहुमत पर संदेह हो तो राज्यपाल की भूमिका अहम हो जाती है। ऐसे में कई बार राज्यपाल जब कोई फैसला लेते हैं तो राजनीतिक वितंडा खड़ा हो जाता है। मर्यादा और परम्परा की सीमा टूट जाती है और जो होता है वह लोकतंत्र के लिए शर्मनाक होता है। एक बार तो सत्ता के उठा-पटक में विधायकों ने ऐसा आपा खोया कि वे राज्यपाल से धक्का मुक्की कर बैठे। राज्यपाल को चोट भी लगी। नतीजे के तौर पर उन्हें दो साल के लिए सदन से निलंबित कर दिया गया। ये घटना हुई थी महाराष्ट्र में।

सत्ता के लिए शह-मात

सत्ता के लिए शह-मात

2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना के बीच गठबंधन टूट गया था। दोनों ने अलग अलग चुनाव लड़ा था। भाजपा 122 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। वह 23 सीटों से बहुमत का आंकड़ा चूक गयी थी। शिवसेना को 63 सीटें मिली थी और वह दूसरे नम्बर पर रही। कांग्रेस को 42 तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को 41 सीटें मिलीं थीं। भाजपा और शिवसेना पुराने सहयोगी थे। शिवसेना चाहती तो आसानी भाजपा की सरकार बन सकती थी। लेकिन उसने विपक्ष में बैठने का फैसला किया। ऐसी स्थिति में सरकार का गठन अनिश्चय में फंस गया। 145 के जादुई आंकड़े पर पहुंचना मुश्किल हो रहा था। मौके की नजाकत भांप कर राजनीति के चतुर खिलाड़ी माने जाने वाले शरद पवार ने एक बड़ी चाल चल दी। उन्होंने शिवसेना को भाजपा से हमेशा के लिए दूर करने के लिए बिसात बिछायी। पवार ने घोषणा कर दी कि अगर भजपा सरकार बनाती है तो राकंपा उसे बाहर से समर्थन करेगी। भाजपा के देवेन्द्र फडनवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

विश्वास प्रस्ताव जीतने पर हंगामा

विश्वास प्रस्ताव जीतने पर हंगामा

12 नवम्बर 2014 को विधानसभा की पहली बैठक हुई। नवनिर्वाचित सदस्यों ने शपथ ली। 13 नवम्बर को स्पीकर का चुनाव होना था। इस चुनाव में ही फडनवीस सरकार का भविष्य तय हो जाना था। लेकिन शिवसेना ने भाजपा के उम्मीदवार हरिभाऊ बागड़े को समर्थन दे दिया। भाजपा उम्मीदवार निर्विरोध स्पीकर बन गये। शिवसेना ने स्पीकर के चुनाव में तो भाजपा का समर्थन कर दिया लेकिन वह फडनवीस सरकार को गिराना चाहती थी। देवेन्द्र फडनवीस सरकार ने विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश किया। इस दौरान राकंपा ने सदन का बहिष्कार कर दिया। अब सदन की मौजूदा संख्या के आधार पर भाजपा के लिए बहुमत साबित करना आसान हो गया। इस कदम से शरद पवार ने भाजपा की सरकार बचा ली। शिवसेना और कांग्रेस के विधायक सदन में मतविभाजन की मांग करने लगे। लेकिन स्पीकर ने स्पष्ट बहुमत को देखते हुए कॉन्फिडेंस मॉशन ध्वनिमत से पारित करा दिया। इस पर शिवसेना और कांग्रेस के विधायक हंगामा करने लगे। वे अविश्वास प्रस्ताव पर धवनि मत की बजाय वोटिंग से फैसला चाहते थे। शिवसेना का कहना था कि भाजपा के कई विधायक नितिन गडकरी को सीएम बनाना चाहते थे और वे फडनवीस सरकार के खिलाफ वोट देने वाले थे। लेकिन स्पीकर ने ऐसा होने नहीं दिया।

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राज्यपाल से धक्का-मुक्की

राज्यपाल से धक्का-मुक्की

शिवसेना और कांग्रेस के विधायक सदन से बाहर निकल कर स्पीकर के फैसले का विरोध करने लगे। विधानसभा परिसर में नारेबाजी होने लगी। यह विरोध तब और उग्र हो गया जब राज्यपाल विद्यासागर राव की गाड़ी वहां पहुंची। राज्यपाल अपने अभिभाषण के लिए विधानसभा पहुंचे थे। कांग्रेस और शिवसेना के विधायक आपे से बाहर हो गये। उन्होंने राज्यपाल की गाड़ी रोक ली और वापस जाओ का नारा लगाने लगे। आरोप के मुताबिक गवर्नर की गाड़ी रोकने के बाद कांग्रेस के पांच विधायकों ने उनके साथ धक्का मुक्की की। राज्यपाल विद्यासागर राव चोटिल हो गये। सुरक्षाकर्मी हंगामा कर रहे विधायकों को हटाने में नाकाम रहे। जब राज्यपाल के हाथ में चोट लग गयी तो सुरक्षाकर्मियों ने सख्ती दिखायी। किसी तरह राज्यपाल को सदन के अंदर लाया गया। सदन के अंदर भी राज्यपाल वापस जाओ का नारा लगता रहा। अभूतपूर्व हंगामा था। लेकिन इस हंगामा से कुछ हासिल नहीं होना था। फडनवीस सरकार बहुमत हासिल कर चुकी थी। बाद में राज्यपाल से बदसलूकी करने वाले कांग्रेस के पांच विधायकों को विधानसभा से दो साल के लिए निलंबित कर दिया गया। शरद पवार ने अपनी चाल से शिवसेना को धाराशायी कर दिया। पहले तो हनक में शिवसेना विपक्ष में बैठी। नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी भी ली। लेकिन वह भाजपा और राकंपा की बढ़ती नजदीकियों से घबरा गयी। राजनीति भविष्य धूमिल होने के डर से शिवसेना ने भाजपा से फिर दोस्ती कर ली। वह भाजपा सरकार में शामिल हो गयी। फडनवीस सरकार पूरे पांच साल चली। आखिरकार फजीहत के बाद दोनों एक हुए। अगर शिवसेना ने भाजपा को पहले ही समर्थन दे दिया होता तो राज्यपाल के साथ अशोभनीय घटना नहीं होती।

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English summary
When there was a blow from the governor in the game of making and demolishing the government
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