'जब बेटा ही चला गया तो राम रहीम के डेरे से क्या लेना'
गुरमीत राम रहीम के जेल जाने के बाद हुई हिंसा में कई लोगों की जानें गईं थी. उन मरने वाले लोगों में 21 साल के विनोद भी थे.
विनोद की मां मंजू आखिरी बार अपने बेटे का मुंह तक ना देख सकी थीं. उन्हें आज भी इस बात का दुख है और शायद पूरी ज़िंदगी रहेगा.
विनोद अखबार बांटने का काम करते थे. इसके बाद वो कॉलेज पढ़ने जाते थे और शाम को किसी प्राइवेट कंपनी में काम करके मां-बाप के आर्थिक हालात सुधारने में मदद करते थे.
डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को बलात्कार के मामले में 25 अगस्त 2017 को दोषी करार दिया गया था. उनको जेल गए एक साल हो गया है.
गुरमीत राम रहीम के जेल जाने के बाद हुई हिंसा में कई लोगों की जानें गईं थी. उन मरने वाले लोगों में 21 साल के विनोद भी थे.
विनोद की मां मंजू आखिरी बार अपने बेटे का मुंह तक ना देख सकी थीं. उन्हें आज भी इस बात का दुख है और शायद पूरी ज़िंदगी रहेगा.
विनोद अखबार बांटने का काम करते थे. इसके बाद वो कॉलेज पढ़ने जाते थे और शाम को किसी प्राइवेट कंपनी में काम करके मां-बाप के आर्थिक हालात सुधारने में मदद करते थे.
विनोद का एक सपना था. वो पैसे कमाकर अपनी मां को हवाई जहाज़ में बिठाना चाहते थे, लेकिन ये सपना पूरा ना हो सका.
'बच्चों को गलत संगत से बचाने के लिए डेरे ले जाते थे'
विनोद की मां ने बताया, "हमारे बेटे को गोली लगी है इस बात का पता हमें दूसरे दिन चला."
गोली लगने के बाद अपने मरे बेटे का मुंह ना देख सकने के दर्द को बयां करते हुए मंजू बताती हैं कि वो डेरे के दूसरे अनुयायियों के साथ 25 अगस्त को सत्संग सुनने गई थीं, लेकिन उन्हें वहीं रोक दिया गया था.
वो नहीं जानतीं कि कब उनका बेटा डेरा अनुयायियों की भीड़ के साथ चला गया. मंजू का कहना था कि वो बच्चों को गलत संगत से बचाने के लिए डेरा लेकर जाते थे, लेकिन उन्हें ये पता नहीं था कि उनके साथ आखिर में ये सब होगा और वो अपने बेटे को खो देंगे.
मंजू ने बताया कि कुछ दिन में ही उनकी बेटी रेनू की शादी थी, लेकिन बेटे की मौत की वजह से उन्हें उसकी शादी की तारीख टालनी पड़ी.
वो कहती हैं कि उस मुश्किल वक्त में किसी ने उनका साथ नहीं दिया था.
विनोद की बहन ने कहा कि वो अब कभी अपने भाई को राखी नहीं बांध सकेगी और अब कभी राखी का त्यौहार नहीं मनाएगी.
रेनू ने बताया कि उनका दूसरा भाई फर्नीचर की दुकान में नौकरी करता है.
विनोद के पिता रामेश्वर दिन में घर के अंदर ही जूते बनाने का काम करते हैं और शाम को फास्ट फूड का ठेला लगाकर अपने परिवार का गुज़ारा करते हैं.
उनकी पत्नी मंजू भी घर में जूते बनाने में उनकी मदद करती है.
रामेश्वर ने बताया कि 25 अगस्त को विनोद के मोबाइल से फोन आया लेकिन आवाज़ किसी और की थी. उस शख्स ने बताया कि उसे ये फोन गिरा हुआ मिला था और विनोद को कुछ चोटें आई हैं.
मुर्दाघर में मिली लाश
विनोद के पिता ने बताया, "उस वक्त कर्फ्यू लगा हुआ था. फोन सुनने के बाद मैं किसी तरह सरकारी अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में पहुंचा, लेकिन वहां मुझे विनोद नज़र नही आया. रात को काफी देर तक विनोद को ढूंढने के बाद मैं घर लौट गया, लेकिन मुझे रात को नींद ना आई. सुबह मैं फिर से किसी तरह अस्पताल गया. मरीज़ों में विनोद उस दिन भी ना दिखा. मेरी पत्नी डेरे में ही थी. काफी ढूंढने के बाद जब अस्पताल के मुर्दाघर गया तो वहां विनोद की लाश पड़ी थी."
रामेश्वर ने बताया कि गोली लगने के बाद कुछ लोग विनोद को उठाकर डेरे के अस्पताल ले आए थे.
उन्होंने बताया, "एक साल हो गया है, हम डेरे नहीं गए. हमें नहीं पता कि डेरे में इस तरह का कोई काम होता था या नहीं. हमारा मन अब पूरी तरह से डेरे से उठ चुका है."
डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को पंचकुला की विशेष अदालत ने 25 अगस्त 2017 को बलात्कार के मामले में दोषी करार दिया था, जिसके बाद सिरसा में भड़की भीड़ ने मिल्क प्लांट के अलावा एक बिजली घर को आग के हवाले कर दिया था.
भीड़ ने दर्जनों वाहनों को भी फूंक दिया था. पुलिस की ओर से गोलीबारी में अजीत चंद, मीना रानी, विनोद कुमार, काला सिंह और रोबिन की गोली लगने से मौत हो गई थी और दर्जनों लोग ज़ख्मी हुए थे.