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जब एक दुर्दांत डकैत का बेटा बना था दारोगा, अब विकास दुबे का बेटा बन रहा डॉक्टर

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अगर कोई बुरा आदमी है तो जरूरी नहीं कि उसका बेटा भी बुरा हो। बदमाश की औलाद भी अच्छी हो सकती है। कानपुर के गैंगस्टर विकास दुबे का बेटा डॉक्टर बनने वाला है। इसी तरह उत्तर प्रदेश के एक इनामी डाकू का बेटा दारोगा बना था। आदमी कितना भी बुरा क्यों न हो, वह अपने बेटे को अच्छा बनाना चाहता है। वह कभी नहीं चाहता कि उसका बेटा भी उसकी तरह जुर्म के रास्ते पर चले।

अगर कोई बुरा आदमी है तो जरूरी नहीं कि उसका बेटा भी बुरा हो। बदमाश की औलाद भी अच्छी हो सकती है। कानपुर के गैंगस्टर विकास दुबे का बेटा डॉक्टर बनने वाला है। इसी तरह उत्तर प्रदेश के एक इनामी डाकू का बेटा दारोगा बना था। आदमी कितना भी बुरा क्यों न हो, वह अपने बेटे को अच्छा बनाना चाहता है। वह कभी नहीं चाहता कि उसका बेटा भी उसकी तरह जुर्म के रास्ते पर चले। ऐसा इसलिए क्योंकि वह जानता है कि अपराध के इस साम्राज्य का एक न एक दिन खौफनाक अंत होना है। विकास दुबे के नाम से पुलिस वाले भी कांपते थे। लेकिन जब वक्त आया तो वही विकास दुबे पुलिस मुठभेड़ में मारा गया। इसी तरह डाकू छविराम भी कभी उत्तर प्रदेश में आतंक का दूसरा नाम था। छविराम ने डकैती और खून खराबे से सरकार की नाक में दम कर दिया था। उस पर सरकार ने एक लाख रुपये का इनाम रखा था। एक दिन उसे भी पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया था। बाद में दुर्दांत छविराम के बेटे ने दारोगा बन कर साबित किया कि पिता के अपराध से उसका कुछ लेना-देना नहीं। उसने सम्मान से जीने के लिए खुद रास्ता बनाया।

कौन था छवि राम?

कौन था छवि राम?

छविराम यादव उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के औछा गांव का रहने वाला था। बीस साल की उम्र में ही वह डकैत बन गया था। धीरे-धीरे उसका आतंक बढ़ता गया। डकैती और हत्या से उसने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में दहशत फैला दी थी। उसके खौफ से लोग थऱथर कांपते थे। पुलिस भी उससे टकराने की हिम्मत नहीं करती थी। 1978 के आसपास छविराम आंतक का दूसरा नाम बन चुका था। उसके गिरोह पर एक विधायक की हत्या कर लाश को जमीन में गाड़ देने का आरोप लगा था। उसने खुद को यादव लोगों के मसीहा के रूप में पेश किया। जून 1980 में वीपी सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उस समय उत्तर प्रदेश में डकैतों का बोलबाला था। फुलन देवी 1981 में 20 लोगों की हत्या कर चुकी थी। इस बीच छविराम का भी आंतक बढ़ता जा रहा था। तब वीपी सिंह ने उत्तर प्रदेश में दस्यु उन्मूलन का एक बड़ा अभियान चलाया था। छविराम को पकड़ने के लिए सरकार ने एक लाख रुपये के इनाम की घोषणा की। लेकिन पुलिस उसे पकड़ नहीं पा रही थी। इस बीच 1982 के शुरू में छविराम ने एटा जिले के अलीगंज तहसील के सर्किल ऑफिसर को अगवा कर लिया। उसे शक था कि प्रशासन उसका सुराग पाने के लिए उसके समर्थकों पर जुल्म ढा रहा है। छविराम ने सीओ का अपहरण कर एक तरह से सरकार को ही चुनोती दे डाली थी। उस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। इस घटना से सरकार की छवि का धक्का लगा। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी ने छविराम को मार गिराने के लिए वीपी सिंह को मौन सहमति दे दी थी। इंदिरा गांधी के इशारे पर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान की सरकारों ने वारंट जारी कर दिया।

मुठभेड़ में मारा गया छविराम

मुठभेड़ में मारा गया छविराम

वीपी सिंह ने छविराम को ठिकाने लगाने की जिम्मेवारी तत्कालीन एसपी कर्मवीर सिंह को दी थी। कर्मवीर सिंह ने छविराम के गैंग में अपने भेदिये प्लांट किये। उसकी टोह में पुलिस लगी रही। एक दिन खबरी से सूचना मिली। पुलिस पूरी तैयारी के साथ निकली। मैनपुरी के बरनाहल प्रखंड में सेंगर नदी के पास पुलिस ने छविराम गिरोह को घेर लिया। उस दिन उसके साथ केवल 8 डकैत ही थे। दोनों तरफ से गोलियां चलने लगीं। करीब 20 घंटे तक मुठभेड़ हुई। आखिरकार छविराम और उसके 8 साथी डकैत मारे गये। छविराम और अन्य डकैतों के शव मैनपुरी के क्रिश्चियन मैदान में लाकर लकड़ी के तख्तों पर लटका दिया गया ताकि दूसरे डकैत गिरोहों में खौफ पैदा हो सके। सरकार ये संदेश देना चाहती थी कि बुराई का अंत बुरा ही होता है। अपराधी चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, एक न एक दिन उसका खात्मा जरूर होता है।

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डकैत का बेटा बना दारोगा

डकैत का बेटा बना दारोगा

जब छविराम मुठभेड़ में मारा गया उस समय उसके छोटे बेटे अजय पाल यादव की उम्र पांच साल थी। इस घटना के बाद छविराम की पत्नी धनदेवी अपने मायके कन्नौज के नगला गांव चली गयीं। वहीं रह कर उन्होंने अपने तीन बच्चों को पढ़ाया-लिखाया। धनदेवी ने बेटों को अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए सिखाया। उन्होंने अपने फायदे के लिए छविराम के नाम का इस्तेमाल नहीं किया। छोटे बेटे अजय ने पढ़ाई के बाद साधारण तरीके से जीवन शुरुआत की। 1998 में वह अगरा पुलिस में सिपाही बना। वह सिपाही तो बन गया लेकिन उसके दिल में कुछ बड़ा करने की तमन्ना जोर मारती रही। वह पढ़ाई में होशियार था। सिपाही की नौकरी करते हुए उसने पढ़ाई जारी रखी। 2011 उसे विभागीय परीक्षा देकर दारोगा बनने का अवसर मिला। उसने पूरी तैयारी के साथ परीक्षा दी। सफल रहा। ट्रेनिंग पूरा करने के बाद वह 2013 में दारोगा के पद पर बहाल हुआ। एक दुर्दांत डकैत के बेटे ने दारोगा बन कर समाज के सामने एक नयी मिसाल पेश की थी।

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English summary
When the son of a dreaded dacoit became the inspector, now Vikas Dubey's son is becoming a doctor
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