जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने पढ़ी वाजपेयी की नज़्म
भारतीय प्रधानमंत्री की ओर से अपने तौर पर कश्मीर का ज़िक्र करना और इस समस्या के समाधान के लिए प्रतिबद्धता का इज़हार करना, उस समय बहुत से लोगों के लिए खुशगवार हैरत का कारण बना. कश्मीर में तनाव चरम पर था और सरहदें भी इस तनाव की लपेट में थीं.
इसी तनाव की एक झलक लाहौर के शाही क़िले के बाहर भी दिखाई दे रही थी.
अटल बिहारी वाजपेयी ने बस से पाकिस्तान आने का ऐलान किया तो पाकिस्तान में इस फ़ैसले को बड़े पैमाने पर सराहना मिली.
नज़्म भारतीय प्रधानमंत्री की थी लेकिन इसे पढ़ पाकिस्तानी प्रधानमंत्री रहे थे. "जंग न होने देंगे, हम जंग न होने देंगे…"
पाकिस्तान के तीन दिवसीय दौर पर आए भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मान में लाहौर के शाही क़िले में एक शानदार दावत का आयोजन था. नवाज़ शरीफ़ ने स्वागत भाषण में प्रधानमंत्री वाजपेयी के कविता संग्रह से अमन के बारे में ये नज़्म पढ़ी तो मेहमान ने भी इसी जज़्बे में जवाब दिया.
उन्होंने अपने संक्षिप्त से भाषण में कश्मीर के मसले का ज़िक्र किया.
भारतीय प्रधानमंत्री की ओर से अपने तौर पर कश्मीर का ज़िक्र करना और इस समस्या के समाधान के लिए प्रतिबद्धता का इज़हार करना, उस समय बहुत से लोगों के लिए खुशगवार हैरत का कारण बना. कश्मीर में तनाव चरम पर था और सरहदें भी इस तनाव की लपेट में थीं.
इसी तनाव की एक झलक लाहौर के शाही क़िले के बाहर भी दिखाई दे रही थी.
अटल बिहारी वाजपेयी ने बस से पाकिस्तान आने का ऐलान किया तो पाकिस्तान में इस फ़ैसले को बड़े पैमाने पर सराहना मिली. तमाम राजनीतिक दलों ने इसे दोनों देशों के बीच विवादों के समाधान का सही मौक़ा क़रार दिया.
लाहौर में स्वागत
दक्षिणपंथ की जमाअत इस्लामी एक ऐसी राजनीतिक पार्टी थी जिसने इस दौरे का विरोध किया और इस मौक़े पर लाहौर में विरोध-प्रदर्शन की धमकी दी. नवाज़ शरीफ़ ने राजनेताओं से परामर्श किया और इस धमकी के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी के लाहौर में स्वागत का फ़ैसला किया.
इसी पृष्ठभूमि में जब लाहौर के शाही क़िले में जंग न होने की बात हो रही थी तो बाहर जमाअत इस्लामी के सदस्य लाहौर की सड़कों पर गाड़ियों पर पथराव कर रहे थे. पुलिस के साथ पूरे दिन जारी रहने वाली इन झड़पों के बावजूद भारतीय प्रतिनिधिमंडल का दौरा प्लान के मुताबिक़ चलता रहा.
इस स्वागत समारोह से पाकिस्तान की सशस्त्र सेनाओं के प्रमुखों की कमी को भी महसूस किया गया.
अफ़वाहें थीं कि थल सेना प्रमुख जो तीनों सशस्त्र सेना के प्रमुख भी थे, जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ भारतीय प्रधानमंत्री को सैल्यूट करने के हक़ में नहीं थे.
सिर्फ़ नवाज़ शरीफ़ ही नहीं, इस दौरे पर भारतीय प्रधानमंत्री को भी अपने देश में विरोध का सामना करना पड़ा था. उन्हें पाकिस्तान के बनने की निशानी समझे जाने वाले मीनार पर जाना था. इस दौरे से ज़रा पहले उन्होंने अपने एक भाषण में बताया कि जब उन्होंने मीनार-ए-पाकिस्तान पर हाज़िरी की हामी भरी तो भारत में इसका विरोध किया गया.
"मुझे कहा गया कि अगर मैं मीनार-ए-पाकिस्तान पर जाऊंगा तो पाकिस्तान के बनने पर मुहिम लग जाएगी. अरे भाई, पाकिस्तान बन चुका, ये हक़ीक़त है और इसे अब किसी मुहर की ज़रूरत नही."
जंग न होने देंगे...
अटल बिहारी वाजपेयी तीन दिन पाकिस्तान में रहे.
इस दौरान दोनों देशों के सरबराहों ने 'ऐलान-ए-लाहौर' पर हस्ताक्षर किए जिसमें परमाणु हथियारों के आकस्मिक या ग़ैर-इरादी इस्तेमाल को रोकने के लिए वादा किया गया. इस समझौते का दोनों देशों की संसद ने प्रमाणीकरण भी कर दिया और विभिन्न स्तरों पर बातचीत के ज़रिए विवादों को हल करने की योजना भी बना ली.
लेकिन फिर कारगिल के पहाड़ों पर गोला-बारी शुरू हो गई. और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की ज़बानी भारतीय प्रधानमंत्री की इस नज़्म की आवाज़ गोलियों की तड़तड़ाहट में दब सी गई. "जंग न होने देंगे, हम जंग न होने देंगे…"
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