जब इंदिरा गांधी के इशारे पर CM समेत पूरी कैबिनेट ने बदल ली थी पार्टी?
नई
दिल्ली।
मध्य
प्रदेश
के
मुख्यमंत्री
कमलनाथ
के
'अ-नाथ’
होने
की
आशंका
में
कांग्रेस
अब
राजनीति
में
सिद्धांतों
की
बात
करने
लगी
है।
राहुल
गांधी
नरेन्द्र
मोदी
पर
मध्यप्रदेश
सरकार
को
डांवाडोल
करने
का
आरोप
लगा
रहे
हैं।
राजनीति
में
आज
जो
भी
खेल
हो
रहा
है
उसकी
शुरुआत
कांग्रेस
ने
ही
है।
दल-बदल
और
तख्तापलट
में
कांग्रेस
सुपर
खिलाड़ी
रही
है।
कांग्रेस
का
हथियार
आज
उसके
खिलाफ
ही
इस्तेमाल
हो
रहा
है।
अभी
मध्य
प्रदेश
में
कांग्रेस
के
22
विधायकों
के
इस्तीफा
पर
हायतौबा
मची
हुई
है,
लेकिन
कभी
इंदिरा
गांधी
के
इशारे
पर
मुख्यमंत्री
समेत
पूरी
कैबिनेट
ने
ही
बदल
ली
थी
पार्टी।
रात
में
थी
जनता
पार्टी
की
सरकार
और
सुबह
हुई
तो
बन
गयी
कांग्रेस
की
सरकार।
अवसरवादी
राजनीति
की
यह
पराकाष्ठा
थी।
मतलबपरस्ती की पृष्ठभूमि
1977 में कांग्रेस का सफाया हो गया था। शक्तिशाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सांसद भी नहीं रहीं। राज्यों से भी कांग्रेस सरकार की विदाई हो गयी। 1977 में हरियाणा में देवी लाल के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी थी। उस समय देवीलाल और केन्द्रीय गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह में निकटता थी। लेकिन कुछ समय बाद चरण सिंह के कुछ शागिर्दों ने उन्हें देवीलाल के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया। वे देवीलाल के बढ़ते कद को उनकी जाट राजनीति के लिए खतरा बताने लगे। चरण सिंह भी चाटुकारों की बातों में आ गये। तब उनके इशारे पर हरियाणा में देवीलाल की काट के लिए गैरजाट नेताओं को बढ़ावा दिया जाने लगा। इस राजनीतिक हालात का फायदा उठाया भजनलाल (गैरजाट) ने। भजन लाल कोई लोकप्रिय नेता नहीं थे लेकिन वे बड़े से बड़े नेता को शीशे में उतारने की काबिलियत रखते थे। भजनलाल, देवीलाल सरकार में मंत्री थे। भजनलाल ने तीन अन्य मंत्रियों को अपने पाले में किया और देवीलाल सरकार से इस्तीफा दे दिया। देवीलाल की सरकार अल्पमत में आ गयी। जून 1979 में देवीलाल ने इस्तीफा दे दिया। भजनलाल मुख्यमंत्री बन गये। जनता पार्टी की अंदरुनी राजनीति ने देवीलाल को किनारे लगा दिया।
बदले की राजनीति
1980 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की जबर्दस्त वापसी हुई। कांग्रेस को 353 सीटें मिलीं। सत्तारुढ़ जनता पार्टी आपस में लड़-कट कर बर्बाद हो गयी। चरण सिंह खेमे वाली जनता पार्टी सेक्यूलर को 41 तो चंद्रशेखर की खेमे वाली जनता पार्टी को 31 सीटें मिलीं। मकर संक्रांति के शुभ दिन यानी 14 जनवरी 1980 को इंदिरा गांधी ने फिर प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। दोबारा प्रधानमंत्री बनते ही इंदिरा गांधी ने बदले की राजनीति शुरू कर दी। जिन राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें थीं उन्हें बर्खास्त किया जाने लगा। उस समय हरियाणा में जनता पार्टी की सरकार थी और मुख्यमंत्री थे भजन लाल। कांग्रेस जिस तरह गैरकांग्रेसी सरकारों को बेदखल कर रही थी उससे भजनलाल डर गये। वे किसी कीमत पर सरकार बचाये रखना चाहते थे। उस समय देवीलाल सांसद बन कर केन्द्र की राजनीति में चले गये थे लेकिन भजनलाल को उनसे भी पलटवार का डर बना रहता था। तब भजनलाल ने एक विस्मयकारी फैसला लिया।
अवसरवाद की पराकाष्ठा
भजनलाल इस बात से भयभीत थे कि कहीं इंदिरा गांधी उनकी सरकार को बर्खास्त न कर दें। अपनी सरकार को बचाने के लिए उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने का फैसला कर लिया। लेकिन पार्टी और दल के अन्य नेताओं का मन टटोलना जरूरी थी। भजनलाल ने पार्टी की एक बैठक बुलायी। मंत्रियों और विधायकों को अपने मन की बात बतायी। अधिकतर विधायक सत्तासुख के लिए राजी हो गये। लेकिन सुषमा स्वराज (1977 में पहली बार विधायक बनी थीं), मंगलसेन (जनसंघ), स्वामी अग्निवेश (आर्यसमाज) और शंकर लाल (समाजवादी पार्टी) जैसे विधायकों ने ईमान से समझौता करना मंजूर नहीं किया। इंदिरा गांधी को सत्ता संभाले अभी दस दिन भी नहीं हुए थे। 21 जनवरी 1980 की रात भजनलाल अपने समर्थक विधायकों के साथ इंदिरा गांधी के दिल्ली दरबार में पहुंच गये। इंदिरा गांधी ने जनता पार्टी के भजनलाल गुट को कांग्रेस में शामिल करने की मंजूरी दे दी। मुख्यमंत्री भजनलाल 37 विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गये। जब सुबह हुई तो हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बन चुकी थी। रातों-रात जनता पार्टी सरकार का वजूद खत्म हो गया। भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रियों समेत ही पार्टी बदल ली।
सत्ता जाती देख बेचैन हुई कांग्रेस
भजनलाल ने जिस तरह देवीलाल को सत्ता से बेदखल किया था उससे जाट समुदाय में बहुत नाराजगी थी। इससे जाट और गैरजाट में राजनीतिक संघर्ष शुरू हो गया। 1982 में जब विधानसभा के चुनाव हुए तो किसी दल को बहुमत नहीं मिला। सीएम भजनलाल के नेतृत्व में कांग्रेस कुल 90 में 36 सीटें ही ला सकी। देवीलाल की अगुवाई वाले लोकदल को 31 सीटें मिलीं। देवीलाल ने तब नयी-नयी बनी भाजपा के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था। भाजपा को 6 सीटें मिलीं थीं। निर्दलीय विधायकों की संख्या 16 थी। चूंकि देवीलाल और भाजपा का चुनाव पूर्व गठबंधन था और उसे 37 सीटें मिलीं थी। इसलिए उसने पहले सरकार बनाने का दावा पेश किया। देवीलाल को विधायक दल का नेता चुना गया। देवीलाल ने राज्यपाल के समक्ष 46 (37+नौ निर्दलीय विधायक) विधायकों की परेड करायी थी। उस समय हरियाणा के राज्यपाल जीडी तपासे थे।
धोखा दे कर बना ली सरकार
राज्यपाल ने देवीलाल को 24 जून को मुख्यमंत्री पद की शपथ के लिए आमंत्रित किया। देवीलाल समर्थक नयी सरकार बनने की आशा में जश्न मनाने लगे। इसी बीच 23 जून एक बड़ा खेल हो गया। देवीलाल कुछ सोच पाते इससे पहले ही राज्यपाल ने भजनलाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। देवीलाल इस धोखे से हैरान रह गये। तब आरोप लगा कि राज्यपाल तपासे ने इंदिरा सरकार के इशारे पर ऐसा किया है। सवाल उठाये जाने पर राज्यपाल ने कहा कि भजनलाल ने 52 विधायकों (36 कांग्रेस +16 निर्दलीय) की सूची सौंपी थी जो देवीलाल के दावे से अधिक थी। चर्चा के मुताबिक उस समय भजनलाल ने निर्दलीय विधायकों को तरह-तरह से खुश किया था उन विधायकों को भी पटा लिया जो देवीलाल का समर्थन कर रहे थे। इस कला में वे शुरू से पारगंत थे। उन्होंने विश्वास मत भी हासिल कर लिया। इस तरह देवीलाल देखते रह गये और कम सीटों के बावजूद कांग्रेस सरकार बना ले गयी थी। कभी कांग्रेस ने जो हरियाणा में किया आज वही भाजपा मध्य प्रदेश में कर रही है।
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