आधार ने जब लापता सौरभ को मिलवाया माँ-बाप से
विनोद और गीता के लिए ये पानीपत की जंग से कम न था - चार साल के बेटे का एक दिन खेलते-खेलते अचानक ग़ायब हो जाना.
वो संडे का दिन था, जब 'चार साल का सौरभ खेलते-खेलते कहीं ग़ायब हो गया.
'रोते-रोते रेलवे स्टेशन तक गए, चारों तरफ़ देखा, साल भर के दूसरे छोटे बच्चे को पड़ोसी के भरोसे छोड़ा, लेकिन मेरा बेटा कहीं नहीं मिला .... मेरे मरद को तो शाम 6-7 के आसपास
विनोद और गीता के लिए ये पानीपत की जंग से कम न था - चार साल के बेटे का एक दिन खेलते-खेलते अचानक ग़ायब हो जाना.
वो संडे का दिन था, जब 'चार साल का सौरभ खेलते-खेलते कहीं ग़ायब हो गया.
'रोते-रोते रेलवे स्टेशन तक गए, चारों तरफ़ देखा, साल भर के दूसरे छोटे बच्चे को पड़ोसी के भरोसे छोड़ा, लेकिन मेरा बेटा कहीं नहीं मिला .... मेरे मरद को तो शाम 6-7 के आसपास पता चला जब वो काम से वापस आया,' गीता की आंखें उस दिन को याद करके आज भी भींग जाती हैं.
कभी फल का ठेला लगा या फिर कभी मज़दूरी कर परिवार की नैया खे रहे विनोद तो बेटे सौरभ को हरियाणा के शहरों में ढ़ूंढ़ने के बाद दिल्ली तक गए.
'गुरुद्वारों, मंदिरों, चांदनी चौक और हर उस जगह उसको तलाशा जहां मेरी समझ में आया लेकिन सौरभ का कहीं पता न चला,' शटर लगे हुए गैराज वाले अपने किराये के घर में बिछी खाट पर मेरे साथ बैठे विनोद बताते हैं.
गीता जब भी 'किसी बालक को देखती तो अपने सौरभ को याद कर सालों बाद भी रोने लगती.'
ख़ुशी की ख़बर वाला फ़ोन
और फिर क़रीब पाँच साल बाद एक फ़ोन आया...
वो फ़ोन किया गया था बच्चों के लिए काम करने वाली स्वंयसेवी संस्था सलाम बालक ट्रस्ट की तरफ़ से.
निर्मला देवी कहती हैं, 'सौरभ के स्कूल में दाख़िले के लिए जब आधार-कार्ड बनवाया जा रहा था तो उसका फ़िंगर प्रिंट पानीपत में तैयार हुए आधार-कार्ड में दर्ज एक बच्चे के डेटा से मैच हुआ, उस कार्ड में एक मोबाइल नंबर भी दर्ज था, हमने उसपर फ़ोन किया तो मालूम हुआ कि हां परिवार का एक लड़का सौरभ पिछले कई सालों से ग़ायब है.'
निर्मला देवी कहती हैं, "जिन बच्चों को हम आधार की वजह से उनके माता-पिता या अभिवावकों से मिलवाने में कामयाब हो पाए उनमें हमारी संस्था से सौरभ पहला बच्चा है."
सलाम बालक ट्रस्ट पिछले साल ऐसे सात बच्चों को उनके माता-पिता से मिलवा चुका है जिनकी पहचान आधार-कार्ड के डेटा की वजह से संभव हो पाई.
दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन चाइल्ड लाइन होम में रहने वाले इन खोए बच्चों का संबंध पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और झारखंड से था.
संस्था के दिल्ली संयोजक संजय दुबे कहते हैं, "साल 2017 में हमारे पास आए 927 बच्चों में से 678 को हम उनके परिवार से मिलवाने में कामयाब रहे, ये सब कार्यकर्ताओं के नेटवर्क, उनकी छानबीन और स्थानीय प्रशासन की मदद से संभव हो पाया."
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'मुख्य समस्या आधार नहीं, योजनाओं को इससे जोड़ना है'
आधार कार्ड कितना मददगार?
इसमें आधार-कार्ड से कितनी मदद मिली?
संजय दुबे इस सवाल के जवाब में कहते हैं, "आधार से मदद उन्हीं सात केसों में मिली जिनका ज़िक्र निर्मला देवी ने आपसे किया, बाक़ी बच्चों के परिवार से मिलवाने का काम हमारी संस्था सालों से करती आई है - तब भी जब आधार-कार्ड नहीं होते थे!'
संजय के मुताबिक़ आधार के कारण काम शायद थोड़ा सरल हो जाए. ख़ासतौर पर उन बच्चों के मामलों में जो मानसिक तौर पर पूरी तरह विकसित नहीं हो पाने की वजह से बहुत सी बातें नहीं बता पाते.
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