क्यों भारत कभी भी पेरिस की तरह आतंकवाद से नहीं लड़ सकता
बेंगलुरु। पेरिस में हुए आतंकी हमले ने एक बात तो साबित कर दी है कि फ्रांस आतंकवाद से लड़ने और इसका सामना करने को लेकर न सिर्फ मुस्तैद है बल्कि चौकन्ना भी है। फ्रांस की तुलना में अगर भारत की बात करें, तो हम शायद काफी पीछे खड़े नजर आएंगे।
कमजोर है भारत
आतंक के खिलाफ लड़ाई में भारत नंबर छह पर आता है। भारत दुनिया का ऐसा देश है जो पिछले छह दशकों से आतंकवाद को झेलने के लिए मजबूर है लेकिन इसके बाद भी जब इसके खिलाफ मजबूती से खड़े होकर लड़ने की बात आती है तो हम कमजोर साबित होते हैं। बावजूद इसके कि हमने संसद और 26/11 का हमला झेला है, जांच के स्तर पर हम फ्रांस और बाकी देशों की तुलना में कहीं नहीं ठहर पाते हैं।
बेंगलुरु ब्लास्ट और पेरिस हमला
बुधवार को पेरिस में मैग्जीन चार्ली हैब्दो के ऑफिस पर हमला हुआ। 24 घंटे से पहले ही फ्रांस की पुलिस ने उन दो बंदूकधारियों की फोटोग्राफ जारी कर दी जिन्होंने इस हमले को अंजाम दिया। एक हमलावर ने तो पुलिस के सामने सरेंडर भी कर दिया है। पूरा देश इस आतंकी हमले के खिलाफ एक साथ खड़ा आ हुआ है।
अब जरा बेंगलुरु ब्लास्ट पर नजर डाल लिजिए। यह हमला 29 दिसंबर को हुआ था और अभी तक पुलिस को कुछ भी ठोस हासिल नहीं लगा पाया है। पुलिस को अभी तक इस बात का पता ही नहीं चल सका है कि इन ब्लास्ट को आखिर किसने अंजाम दिया था और वह अभी तक इस आरोपियों के स्केच की सत्यता की ही जांच करने में लगी हुई है।
सिर्फ बेंगलुरु ब्लास्ट ही क्यों हाल ही में सामने आई पाकिस्तान की नाव वाली घटना को ही ले लीजिए। जैसे ही इस घटना के बारे में खबरें आनी शुरू हुईं मीडिया और कुछ राजनीति संगठनों ने कोस्ट गार्ड की ओर से चलाए गए ऑपरेशन पर ही सवाल खड़े करने शुरू कर दिए।
जांच में शुरू होती राजनीति
- भारत में आतंकी हमलों की जांच से लेकर इससे जुड़ी हर छोटी बात पर कई समस्याएं हैं।
- जांच में कई तरह की राजनीति का सामना आतंकी हमलों के बाद एजेंसियों को करना पड़ता है।
- जैसे ही कोई हमला होता है बहस शुरू हो जाती है कि इसकी जांच राज्य की पुलिस को दी जाए या फिर एनआईए को।
- जब तक इस बात पर कोई फैसला लिया जाता है, आतंकी शहर से बाहर निकल चुके होते हैं।
- वहीं पुलिस इस बात पर विचार करने में व्यस्त रहती है कि हमले को किसी आतंकी संगठन ने अंजाम दिया या फिर किसी एक व्यक्ति ने।
- जब न्यूयॉर्क में हमला हुआ तो अमेरिकी एजेंसियों ने बॉम्बर की पहचान पहले की थी न कि वह किसी आतंकी संगठन से जुडे सुराग को तलाशने में लगी रही।
- अमेरिका का शक आखिर में सच साबित हुआ कि हमले को किसी संगठन ने नहीं बल्कि वह एक लोन वोल्फ टेरर अटैक था।
एनआईए और राज्य पुलिस के बीच अहम का टकराव
- यह बात भी काफी अजीब लगती है कि कई मौकों पर राज्य की पुलिस नेशनल इनवेस्टिगेटिंग एजेंसी यानी एनआईए पर ही सवाल उठाने लगती है।
- 'क्या एनआईए मंगल ग्रह से आई है। उसके अधिकारी भी हम जैसे पुलिस वाले ही हैं,' इस तरह के बयान भी पुलिस की ओर से आए हैं।
- एनआईए और पुलिस के बीच किस कदर अहम का टकराव है, यह बात इसी बयान से साफ हो जाती है।
- किसी भी आतंकी हमले की जांच के दौरान दोनों ही एजेंसियां खुद को बेहतर साबित करने की कोशिशों में लग जाती है और जांच पर बुरा प्रभाव पड़ने लगता है।
- सिर्फ इतना ही नहीं दोनों ही एजेंसियां एक-दूसरे के लिए काम करना तक मुश्किल कर देती है।
- एनआईए के अधिकारियों ने कई बार शिकायत तक की है कि राज्य की पुलिस उनके साथ जांच में सहयोग नहीं करती है।
- एनआईए ने कई बार पुलिस पर आरोप लगाया है कि उसे उस पुलिस अधिकारी से मिलने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है तो जांच का हिस्सा होगा।
आपस में लड़ती एजेंसियां
- जैसे ही कोई आतंकी घटना होती है इस बात पर बहस शुरू हो जाती है कि यह राज्य का मामला है या केंद्र का।
- 10 में से नौ आतंकी हमले ऐसे होते हैं जिनकी साजिश आतंकियों ने विदेशी धरती पर तैयार की होती है।
- इस संदर्भ में यह काफी जरूरी है कि किसी केंद्रीय एजेंसी को जांच का जिम्मा सौंपा जाए न कि राज्य सरकार को दिया जाए।
- अगर राज्य सरकार को जांच का जिम्मा दिया जाता है तो फिर उसे न्यायाधिकरण से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- एनआईए का चार्टर साफ कहता है कि उसे आतंकी हमलों की जांच के लिए राज्य सरकार की मंजूरी लेने की कोई जरूरत नहीं है।
- वहीं अक्सर एनआईए को राज्य सरकार की मंजूरी का इंतजार करना पड़ता है और ऐसे में काफी देर हो जाती है।
- एजेंसियों के बीच जांच को लेकर ही तालमेल की कमी नहीं होती है बल्कि इंटेलीजेंस शेयर करने को लेकर भी काफी असहयोग नजर आता है।
- आतंकी हमलों को लेकर केंद्र और राज्य की इंटेलीजेंस ब्यूरो को आपस में सहयोग करने की जरूरत है।
- कई विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया है कि एक आतंकवाद से लड़ने के लिए एक ऐसी एजेंसी की जरूरत है जो राज्य के साथ सहयोग करे।
- यह एजेंसी टेरर अलर्ट को एनालाइज करे और इस बात पर फैसला करे कि उसे एक्शन लेना है या नहीं।