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UNSC: आखिर कब मिलेगी सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सीट

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बंगलुरु। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कश्मीर मसले पर भारत को गलत साबित करने की पाकिस्तान और चीन की कोशिश शुक्रवार को नाकाम हो गई। इस अनौपचारिक बैठक में जिस तरह से यूएनएससी के स्थायी और अस्थायी सदस्यों ने भारत का साथ दिया उससे यह उम्मीद बढ़ गयी है कि भविष्य में भारत के सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की दावेदारी में अब कम रोड़े सामने आएगें।

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बता दें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लंबे समय से लंबित सुधार पर जोर देने के प्रयासों में भारत सबसे आगे रहा है, भारत इस बात पर समय समय पर जोर देता रहा है कि वह संयुक्त राष्ट्र के स्थायी सदस्य के रूप में सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य बनने का सबसे मजबूत हकदार है। लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था और एक प्रमुख दक्षिण एशियाई शक्ति के रूप में इसके महत्व को दर्शाने के लिए एक स्थायी सदस्यता की मांग कर रहा है। इतना ही नहीं भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता दिलाये जाने के लिए कई देशों न केवल भारत का समर्थन किया है बल्कि समय समय पर यह मुद्दा मजबूती से उठाया हैं।

वर्तमान समय में जब भारत के कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये के फैसले को सुरक्षा परिषद ने अपौचारिक बैठक में इसे भारत का आंतरिक मामला बता कर पाकिस्तान को दो टूक जवाब दिया इससे साफ हो चुका है कि सुरक्षा परिषद के सदस्य भारत के पक्ष में खड़े हैं। ऐसे में भारत के लिए सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के लिए सकारात्मक माहौल बनता दिख रहा हैं। उम्मीद जतायी जा रही है कि आने वाले समय में जब भी सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता देंने की बात होगी तो भारत की राह में रोड़े कम आएंगे। भारत सदा से सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य का दावा करता रहा है।

वहीं विगत मई माह में फ्रांस ने कहा था कि भारत को यूएन में स्थायी सदस्यता दिए जाने की सख्त जरूरत हैं। फ्रांस ने भारत समेत जर्मनी, ब्राजील और जापान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सदस्यता दिलाने पर जोर दिया। फ्रांस के राजदूत फ्रांसुआ डेलातर ने यूएन में कहा था कि इन सभी देशों को स्थायी सदस्यता दिए जाने की सख्त जरूरत है,जिससे ये देश अपनी स्थिति को रणनीतिक रूप से सुधार सकें। संयुक्त राष्ट्र में भारत को सदस्यता दिलाना फ्रांस की प्राथमिकताओं में से एक है। उसी समय राजदूत ने कहा था कि भारत इस पद के लिए मजबूत दावेदार है। उसने कई चुनौतियों का सामने रहकर और डटकर सामना किया है।

यूके भी UNSC में स्थायी सदस्यता के लिए भारत की इस मांग का समर्थन कर चुका है। ब्रिटिश विदेश सचिव बोरिस जॉनसन ने एक बैठक में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारत को सही दावेदार बताया था। उन्होंने इसके पीछे दलील दी थी कि भारत विश्व व्यवस्था में "यथार्थवादी" है। "हमें यह स्वीकार करने के लिए पर्याप्त यथार्थवादी होना चाहिए कि अंतर्राष्ट्रीय आदेश को बदलने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि यही कारण है कि ब्रिटेन भारत सहित अन्य वैश्विक शक्तियों वाले देशों का (यूएन) सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता बनान का समर्थन करता है।

मई माह में भारत में जर्मनी के नए राजदूत वाल्टर जे लिंडनर ने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के पास एक स्थायी सीट होनी चाहिए क्योंकि इसकी अनुपस्थिति संयुक्त राष्ट्र प्रणाली की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाती है। लिंडनर ने कहा था कि भारत के पास संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक स्थायी सीट होनी चाहिए। 1.4 बिलियन लोगों के साथ भारत अभी तक सुरक्षा परिषद में एक स्थायी सदस्य नहीं है यह न्यायपूर्ण नहीं है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो यह संयुक्त राष्ट्र प्रणाली की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाता है।

सूत्रों के अनुसार 2015 में भारत इसके संबंध में लिखित पत्र भी भेज चुका है। जिसमें उन पांच मानदंडों पर एल-69, अफ़्रीका या कैरिकॉम ग्रुप्स या जी-4 जैसे विभिन्न समूहों के विभिन्न नजरिए का सारांश दस्तावेज था। इनमें सुरक्षा परिषद के स्थायी और अस्थायी श्रेणियों में विस्तार के आकार, क्षेत्रीय वितरण, सुरक्षा परिषद के काम करने का तरीक़ा,यूएनजीए के साथ इसका संबंध और वीटो पावर के मुद्दे शामिल थे। ये ऐसे जटिल मुद्दे थे जिन पर अभी तक कोई सहमति नहीं बनी हैं।

यहां तक कि उन देशों के बीच भी,जो सुरक्षा परिषद के सुधार और विस्तार के समर्थक हैं। इस पर अमेरिका ने तो इस कोशिश को नजरअंदाज ही कर दिया था। फ्रांस और ब्रिटेन ने अपना नजरिया पेश करते हुए भारत का पक्ष लिया था और भारत को दोनों का ही समर्थन दिया था। लेकिन उस समय लिखित बातचीत के ख‌िलाफ रूस के सक्रिय विरोध ने भारत को हैरान कर दिया था।

रूस ने उस समय तर्क दिया था कि दो तिहाई मतों सुरक्षा परिषद का विस्तान करना संयुक्त राष्‍ट्र चार्टर का उलंघन है और इस मुद्दे सहमति में असफल होने पर संयुक्त राष्‍ट्र पहले से अधिक विभाजित हो जाएगा। जबकि उसका यह तर्क उस समय भारत के गले नही उतर रहा था क्योंकि स्थायी सदस्यता के मसले पर द्विपक्षीय वार्ताओं में तो रूस भारत की उम्मीदवारी का समर्थन करता रहा था। लेकिन बहुपक्षीय स्तर पर सुरक्षा परिषद के विस्तार की प्रक्रिया का विरोध करता रहा है। बीते शुक्रवार को चीन के दबाव में कश्‍मीर मुद्दे पर सुरक्षा परिषद की अनौपचरिक बैठक में रुस ने भारत का साथ देकर एक बार साबित कर दिया है कि वह भारत का मित्र है और उम्मीद जतायी जा रही है कि आने वाले समय में जब भी सुरक्षा परिषद का विस्तार होगा तो भारत के स्थायी सदस्य बनने में बाधाएं कम होगी।

विश्लेषकों का मानना है कि इस संबध में कुछ भी कहना बहुत जल्‍दी होगा कि भविष्य में सुरक्षा परिषद में सुधार या विस्तार हो पाएगा और भारत को स्थायी सदस्यता मिलेगी।उनका मानना है कि भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सदस्यता को लेकर भारत की कोशिशें जारी है। परन्‍तु जब भी भारत ने प्रयास किया तो सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों में कुछ देशों ने भारत की राह में रोड़े अटकाए। लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पिछले और वर्तमान कार्यकाल में अन्य विदेशी राज्यों से हमारे देश के संबंध मजबूत हुए है और हर रक्षा, व्यापार, अर्थव्यवस्था समेत हर क्षेत्र में पूरे विश्‍व ने भारत लोहा माना है।

राजनायिकों की मानें तो सुरक्षा परिषद में स्थायी दावेदारी के लिए अंतराष्‍ट्रीय माहौल भारत के पक्ष में दिख रहा हैं।
चूंकि संयुक्त राष्ट्र के अधिकांश सदस्य यूएनएससी के विस्तार और सुधार का समर्थन करते हैं इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि गंभीर चुनौतियों के बावजूद इस दिशा में प्रगति होगी और आख‌िरकार कोई नतीजा निकलेगा। नहीं तो सुरक्षा परिषद अपनी वो साख भी गंवा देगा जो उसके पास इस समय है।

यूएनएससी की शक्तियां और कार्य

संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद सबसे शक्तिशाली और संयुक्त राष्‍ट्र के छी प्रमुख अंगों में से एक है । संयुक्त राष्‍ट्र चार्टर के तहत अंतराष्‍ट्रीय शांति और सुरक्षा का संरक्षण इसकी प्राथमिक जिम्‍मेदारी है,
इसमें वीटो की शक्ति वाले पांच स्थायी देशों के अलावा कुल 15 सदस्य होते हैं।यूएनएससी में पांच स्थायी सदस्य चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका हैं। 10 गैर-स्थायी सदस्य मात्र दो वर्ष के लिए चुने जाते हैं। इसकी शक्तियों में शांति नियंत्रण संचालन की स्‍थापान, अंतराष्‍ट्रीय प्रतिबंधों की स्थापना, और यूएनएससी संकल्पों के माध्‍यम से सैन्य कार्रवाई के प्राधिकरण शामिल हैं। यह एक संयुक्त राष्‍ट्र निकाय है जिसके पास सदस्य देशों के बाध्‍यकारी प्रस्ताव जारी करने का अधिकार है।

इन पांच देशों के पास है वीटो पॉवर

सुरक्षा परिषद के पांचों स्थायी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार है। रूस, चीन, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के पास यह शक्ति है और इनमें से कोई इसे छोड़ना नहीं चाहता। इसलिए सुरक्षा परिषद में भारत को शामिल करने में सबसे बड़ा अडंगा इसी वीटो पॉवर का हैं भारत ने हमेशा से यूएनएसी में वीटो पॉवर के साथ स्थायी सदस्यता की मांग की हैं।

विश्व में जी 4 समूह -

भारत, जर्मनी, जापान और ब्राजील - सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के विस्तार के लिए लड़ रहा है। भारत, जर्मनी, ब्राजील और जापान ने मिलकर जी-4 (G4) नामक समूह बनाया है। ये देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यता के लिये एक-दूसरे का समर्थन करते हैं।

भारत सात बार रह चुका है सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य

इससे पहले भारत 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92 और 2011-12 में यूएनएससी का अस्थाई सदस्य रह चुका है। प्रत्येक वर्ष 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा दो साल के कार्यकाल के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के पांच अस्थाई सदस्यों का चुनाव करती है। यूएनएससी की 10 अस्थाई सीटों का बंटवारा क्षेत्रीय आधार पर किया जाता हैं। अफ्रीका और एशिया के हिस्से में पांच जबकि पूर्वी यूरोप के हिस्से में एक, लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई देशों के हिस्से में दो, पश्चिमी यूरोप के हिस्से में दो सीटें हैं।

भारत को एशिया-प्रशांत समूह के 55 देशों का समर्थन

यूएएससी में दो साल की अस्थायी सदस्यता के लिए पिछले एशिया प्रशांत समूह ने भारत की उम्मीदवारी का समर्थन किया था जो भारत की महत्पूर्ण कूटनीतिक जीत मानी जा रही थी और विश्‍व मंच पर भारत देश की बढ़ती साख का वह सबूत था। मालूम हो कि अस्थाई सदस्यों का चुनाव जून 2020 में होगा है। जिसका कार्यकाल 2021 से शुरू होगा। यह जानकारी संयुक्त राष्‍्ट्र के स्थायी सदस्य अबरुद्दीनकबरुद्दीन ने पिछले दिनों दी थी। उन्होंने बताया था कि एशिया-प्रशांत समूह के 55 देशों ने यूएनएससी में अस्थााई सदस्यता के लिए भारत की उम्मीदवारी का समर्थन किया। भारत की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले 55 देशों में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, इंडोनेशिया, ईरान, जापान, कुवैत, किर्गिजिस्तान, मलेशिया, मालदीव, म्यामां, नेपाल, पाकिस्तान, कतर, सऊदी अरब, श्रीलंका, सीरिया, तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात और वियतनाम शामिल हैं।

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English summary
Permanent and non-permanent members of the UNSC have supported India, raising the expectation that there will be fewer obstacles in the future to claim permanent membership in the Security Council
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