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EXCLUSIVE: जब डॉन दाऊद इब्राहिम से हुई एक मुलाकात

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नयी दिल्ली (ब्यूरो)। मुंबई के नागपाड़ा और डोंगरी इलाके से निकल कर दुबई तक पहुंचने वाले अंडरवर्ल्ड डॉन शेख दाऊद इब्राहीम कासकर उर्फ दाऊद इब्राहिम की दुनिया 11 फरवरी 1981 को एक दम से बदल गई। जी हां ये वही तारीख है जब दाऊद इब्राहिम के भाई शब्बीर इब्राहिम की सिद्धीविनायक मंदिर के पास हत्या कर दी गई थी। एक समय में दाऊद इब्राहिम का खास रह चुके अमीरजदा और आलमजेब ने इस हत्या की पूरी साजिश रची थी। ये दोनों करीम लाल गैंग से थे।

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When I met Dawood Ibrahim- Journalist recounts the meeting

दाऊद चुप बैठने वालों में से नहीं था। भाई की हत्या का बदला लेने के लिए दाऊद ने लाशों की झड़ी लगा दी। दाऊद इब्राहिम ने 2 महीने में 18 कत्ल कर करीमलाला और उससे जुड़े लोगों को एक दम साफ कर दिया। मुंबई अब एक बड़े गैंगवार के लिए तैयार था। और इस पूरे मामले को नजदीक से कवर करने के लिए तैयार थे जाने-माने पत्रकार जॉय सी रफेल। दाऊद के भाई की हत्या कवर करने के दौरान रफेल को दाऊद से मिलने का भी मौका मिला। तो आईए रफेल के उसी मुलाकत की कुछ बातें आपसे सांझा करते हैं जो खुद रफेल ने वनइंडिया से खास बातचीत में बताया है।

सामान्य आदमी की तरफ था दाऊद

रफेल ने बताया कि ''जब मैं दाऊद से मिला तो वो बिल्कुल एक सामान्य आदमी की तरह नजर आया। उसके अंदर कोई दिखावा नहीं था। उसने भाई की हत्या की सारी कहानी बड़ी सहजता से सुनाई। उसने बातें बड़ी-बड़ी बोली लेकिन मुस्कुराया तक नहीं। भाई की हत्या को लेकर वो काफी गंभीर था।''

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रफेल ने बताया कि जिस वक्त उनकी मुलाकात दाऊद से हुई थी उस वक्त दाऊद एक गैंगस्टर था। सपने भी किसी ने नहीं सोचा होगा कि दाऊद आगे चलकर एक मोस्टवांटेड क्रिमिनल और भारत का सबसे बड़ा दुश्मन बन जाएगा। उस वक्त बातचीत के दौरान दाऊद ने अपने विरोधी गैंग को किसी तरह की धमकी नहीं दी। उसने सिर्फ इतना कहा कि ''कैसे सभी गैंग के लोग उसकी भाई की हत्या के लिए एक साथ हो सकते हैं''। दाऊद ने उस वक्त रफेल से एक फोटो शेयर की जिसमें वो खुद आलमजेब और अमीरजदा के साथ खड़ा था।

दाऊद से मिलने से पहले की तैयारी

दाऊद इब्राहिम के भाई शब्बीर की हत्या के बाद पूरा मुंबई एक बड़े गैंगवार के साए में था। रफेल ने बताया कि उस वक्त मेरे एडिटर ने मुझे बुलाया और मुझे 200 रुपए देते हुए कहा कि ''जाओ अब सोमवार को आना लेकिन हत्याकांड पर एक एक्सक्लूसिव स्टोरी के साथ। रफेल मनोरमा मैगजीन में काम करते थे। रफेल कहते हैं कि उस समय 200 रुपए बहुत हुआ करते थे। अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक वड़ा पाव की कीमत 30 पैसे हुआ करती थी।

रफेल बताते हैं कि ''मैं वहां से सीधे अपने मित्र वी मेनन के घर गया। उसके बाद फिर हम दोनो डिनर पर गए ताकि स्टोरी के बारे में कुछ डिसकस कर सकें। डिनर करते-करते मैने और मेनन ने डिसाइड किया कि हम दाऊद से मिलने पकमोडिया स्ट्रीट उसके घर जाएंगे।

दाऊद से मिलने से पहले लग रहा था डर

रफेल बताते हैं कि सोमवार की सुबह जब मैं डोंगरी इलाके के पकमोडिया स्ट्रीट पहुंचा जहां दाऊद का घर था तो मुझे बहुत डर लग रहा था। दिल में डर लिए मैंने दाऊद के घर का दरवाजा खटखटाया। एक आदमी ने दरवाजा खोला और उसने मुझसे पूछा कौन हो तुम। मेरा जवाब था ''मैं प्रेस से हूं और शब्बीर हत्याकांड मामले में दाऊद से मिलना चाहता हूं''। उस आदमी ने मुझे इंतजार करने को कहा। करीब आधे घंटे बाद क्रिम कलर की शर्ट में एक‍ छोटे कद का आदमी कमरे में आया। वो मुछों पर ताव देते हुए मेरी तरफ देख रहा था। उसके बाद एक भारी आवाज में उसने मुझसे कहा ''मैं दाऊद हूं''।

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वो मुझे अपने घर से दूर एक छोटे से रेस्त्रां में ले गया और मेरे लिए चाय ऑर्डर किया। कई कप चाय के साथ दाऊद से करीब एक घंटे तक बात हुई। वो बातूनी था और उसने अपने विरोध्िायों के बारे में विस्तार से बताया। दाऊद ने बताया कि आलमजेब और अमीरजदा एक समय में उसके अच्छे दोस्त थे। दाऊद ने कहा कि ये लोग मेरी शादी तक में शरीक हुए थे। अब मैं धीरे-धीरे सजह हो रहा था और खुश भी क्योंकि मुझे स्टोरी मिल चुकी थी।

जब मैं वहां से जाने के लिए निकला तो दाऊद ने हाथ मिलाते हुए कहा कि वो स्टोरी छपने से पहले एक बार देखना चाहता है। मेरा जवाब था ''मैं अपने बॉस से बात करुंगा''। अगले दिन मैं स्टोरी के साथ दाऊद के पास फिर गया। दाऊद के एक खास गुर्गे ने कहा कि स्टोरी ठीक है। उस वक्त मैंने एक फोटो की मांग कर दी। वो घर के अंदर गया और एक तस्वीर के साथ वापस आया जिसमें दाऊद इब्राहिम, अमीरजदा, आलमजेब और कांट्रैक्ट किलर शमद खान के साथ खड़ा था।

दाऊद ने पूछा, स्टोरी पास हो गई

फोटो लेकर जब मैं वहां से निकल रहा था उस वक्त दाऊद ने मुझसे पूछा कि स्टोरी पास हो गई। मेरा जवाब था अभी नहीं। इतने पर दाऊद ने कहा कि मेरे दो लड़के तुम्हारे ऑफिस जाएंगे और तबतक वहां रहेंगे जबतक स्टोरी छप नहीं जाती। रफेल बताते हैं कि उस वक्त वो थोड़ा घबड़ा गए थे। दाऊद ने फौरन एक टैक्सी बुलायी और मेरे साथ अपने दो लड़कों को भेज दिया। ऑफिस आने के बाद मैं अपने डिप्टी एडिटर से मिला।

मैंने उनसे कहा कि इस स्टोरी को पास कर दीजिए क्योंकि दाऊद के दो लोग ऑफिस में ही बैठे हैं। उन्होंने पूरी स्टोरी पढ़ी और फिर फोटो देखा और प्रिंट के लिए अप्रूव कर दिया। रफेल कहते हैं यह मेरा ऐसा अनुभव था जिसे में शब्दों में बयां नहीं कर सकता। स्टोरी छपी और मेरी खूब तारीफ हुई थी। बाद में इसी फोटो को कई मीडिया ने छापा।

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English summary
When I met Dawood Ibrahim- Journalist recounts the meeting.
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