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जब रेस में कार को भी पछाड़ दिया था हिमा दास ने

हिमा दास के गांव में उनसे जुड़ी कई बातें हैं जो उनकी सफ़लता की कहानी कहती हैं.

By BBC News हिन्दी
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हिमा दास, असम, आईएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप
Getty Images
हिमा दास, असम, आईएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप

गांव की मिट्टी पर अपने छोटे-छोटे पैरों के निशान छोड़ने वाली हिमा दास आज पूरी दुनिया में अपने कदमों की छाप छोड़ चुकी हैं, लेकिन गांव के लोगों के ज़हन में अपनी हिमा से जुड़ी कई यादें और किस्से हैं.

हिमा दास के गांव के लोग बताते हैं कि हिमा की सफलता कोई पल भर का चमत्कार नहीं बल्कि उनकी बचपन से की गई मेहनत का फल है.

इसी मेहनत का नतीजा है कि हिमा ने आईएएएफ़ अंडर-20 वर्ल्ड एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में 400 मीटर की स्पर्धा का गोल्ड जीता है. उनसे पहले भारत की कोई महिला खिलाड़ी विश्व चैम्पियनशिप में गोल्ड नहीं जीत सकी है.

हिमा दास, असम, आईएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप
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हिमा दास, असम, आईएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप

असम के नौगांव ज़िले में स्थित हिमा के गांव कांदुलीमारी में उनके परिवार और गांव के लोगों से बीबीसी ने बात की.

हिमा के पिता रंजीत दास को पूत के पांव पालने में ही दिखने लगे थे. वो कहते हैं, ''बचपन से ही हिमा में एक खिलाड़ी की क्षमता थी. वो खेलने-कूदने और दौड़ने में बहुत रुचि लेती थी. उन्हें तभी एहसास हो गया था कि उसके अंदर एक खिलाड़ी है.''

इसका अंदाजा होते ही रंजीत ​दास ने अपनी बेटी की ज़िंदगी में एक पिता के साथ-साथ एक कोच की भूमिका भी निभानी शुरू कर दी. वह हिमा के पहले कोच बने और उनकी प्रतिभा को तराशा.

हिमा दास, असम, आईएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप
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हिमा दास, असम, आईएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप

कार से जीती रेस

भारत को सोना दिलाने वाली हिमा की काबिलियत सिर्फ़ उनके पिता को ही नहीं बल्कि गांव के दूसरे लोगों ने भी देखी.

जैसे ही हिमा के बारे में पूछा तो लोगों के पास सुनाने के लिए कई किस्से थे.

हिमा को बचपन से जानने वाले गांव के ही शख़्स बेहद उत्साह के साथ बताते हैं, ''हिमा में इतना जोश था कि वो कार से रेस लगा लेती थी. आठ-नौ साल की उम्र में वो एक बार कार के पीछे भागने लगी और देखते ही देखते उससे आगे निकल गई. उसने हमें हैरान कर दिया.''

हिमा दास, असम, आईएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप
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हिमा दास, असम, आईएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप

हिमा के बचपन के दोस्त ने बताया कि 'उन्हें क्रिकेट और फ़ुटबॉल खेलना भी काफ़ी पसंद था. उनके तीनों भाई क्रिकेट ​खेलते थे और वो भी बॉलिंग करती थी. वो बहुत साहसी रही है. कॉमनवेल्थ में मेडल न जीत पाने से वो बिल्कुल नहीं टूटी.'

यहां तक कि गांव के एक शख़्स ने बताया कि जब हिमा ने फ़ुटबॉल खेला तो उन्होंने दो-तीन दिन बाद ही गोल कर दिया. उनके अंदर खेलने और सीखने का ज़बरदस्त जज़्बा रहा है.

आज हिमा के माता-पिता ही नहीं पूरा गांव बेहद खुश है. उनकी मां बताती हैं, ''जब से हिमा ने ये मेडल जीता है गांव में अलग तरह का उत्साह और आनंद है. लोग प्रार्थना करते हैं कि हिमा आगे भी ऐसा ही कारनामा दिखाती रहे.''

हिमा दास, असम, आईएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैम्पियनशिप
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हिमा दास, असम, आईएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैम्पियनशिप

घर पर त्योहार-सा माहौल

हिमा के घर पर लगातार बधाई देने वालों का आना-जाना लगा हुआ है. लोग आगे भी उनसे ऐसा ही कारनामा कर दिखाने की उम्मीद कर रहे हैं.

उनके परिवार से मिलने के लिए गुवाहाटी हाईकोर्ट के जज भी आए थे. जब बीबीसी ने उनसे हिमा की इस उपलब्धि पर बात की तो उन्होंने कहा कि हिमा का ध्यान नहीं भटकना चाहिए ताकि वो ओलंपिक और अन्य प्रतियोगिताओं में अच्छा कर सकें.

फ़िलहाल हिमा अपने घर नहीं पहुंची हैं, लेकिन सभी को उनके घर लौटने का इंतज़ार है. वह अपने गांव में एक मिसाल बन चुकी हैं और लोग खुशी से कहते हैं कि हिमा ने गांव का नाम रोशन कर दिया है.

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English summary
when Hima Das beat car in race
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