कांग्रेस जब पार्टी चुनाव से भाग रही है तो नरेंद्र मोदी-BJP से कैसे लड़ेगी
नई दिल्ली- सोनिया गांधी को पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं की लिखी चिट्ठी का जो मजमून सामने आया है, उससे तो यही जाहिर होता है कि उन्होंने पार्टी नेतृत्व के सामने कई जायज सवाल उठाए गए हैं। उस खत का मुख्य विषय ये है कि उन नेताओं ने संगठन को लोकतांत्रिक बनाने की मांग की है। पार्टी अध्यक्ष से लेकर ब्लॉक स्तर तक चुनाव कराने का सुझाव दिया गया है। लेकिन, जिस तरह से पार्टी को असल मुद्दों पर ध्यान दिलाने की कोशिश करने वालों को निशाना बनाया जाना शुरू किया गया है, उससे सवाल उठता है कि पार्टी को जब संगठन के अंदर चुनाव से डर लगता है तो वह किस दम पर भाजपा जैसे मजबूत संगठन वाली पार्टी और नरेंद्र मोदी जैसे प्रभावशाली नेता का चुनावों में सामना कर सकेगी?
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चुनाव की मांग करने वालों के साथ क्या किया
कांग्रेस संगठन में चुनाव की मांग उठाई गई तो ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी में प्रभावी लोगों के उकसावे पर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में स्थानीय नेताओं ने जितिन प्रसाद, पृथ्वीराज चव्हाण, मुकुल वासनिक और मिलिंद देवड़ा जैसे नेताओं को निशाना बनाना शुरू कर दिया। दरअसल, इसकी शुरुआत कांग्रेस वर्किंग कमिटी में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की मौजूदगी से ही हो गई थी। सोनिया को चिट्ठी लिखने वाले 23 नेताओं के अगुवा रहे, गुलाम नबी आजाद ने खुद एएनआई को दिए इंटरव्यू में अपना दर्द बयां किया है। उनका कहना है कि उन लोगों ने संगठन में चुनाव की ही तो मांग की है, फिर उन्हें गालियां देने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई। उलटे, चिट्ठी लीक करने वालों के नाम पर कुछ को बलि का बकरा बनाने की कोशिश हो रही है। कहना सही है, सोनिया को लिखी गई जो पूरी चिट्ठी सामने आई है उसमें तो पार्टी को मजबूत करने की ही मांग की गई है। फिर, अगर उचित सुझाव देने वाले अपने ही लोगों पर कांग्रेस का ऐसा रवैया होगा तो कौन सही बोलने की हिम्मत करेगा? स्थिति ये है कि जो नेता मनोनीत होकर संगठन में कब्जा जमाकर बैठ गए हैं, उनके इशारे पर यह सब हो रहा है। यही वजह है कि कपिल सिब्बल को कहना पड़ा है कि पार्टी को सर्जिकल स्ट्राइक करनी है तो भाजपा पर करे, अपने ही लोगों पर नहीं।
चुनाव जीतने वाले नेताओं को आवाज उठाने पर मुंह बंद कर दिया
कांग्रेस संगठन में ऊपर से नीचे तक बदलाव, पूर्णकालिक अध्यक्ष और हर स्तर पर चुनाव की मांग करने वालों में लोकसभा के सिर्फ दो कांग्रेस सांसद हैं- केरल से शशि थरूर और पंजाब से मनीष तिवारी। दोनों बीते एक दशक से हर मंच पर पार्टी की वकालत करते आए हैं। इनकी विश्वनीयता इसीलिए ज्यादा है कि यह लोकसभा चुनाव जीतकर भी आए हैं और अपने अनुभव से पार्टी का हित भी साधते रहे हैं। लेकिन, इन्होंने पार्टी नेतृत्व को संगठन को मजबूत करने का सुझाव क्या दिया, इन्हीं की गर्दन पर तलवार चला दी गई। इनकी जगह नौसिखिए सांसद गौरव गोगोई को लोकसभा में डिप्टी लीडर बना दिया गया और रवनीत बिट्टू को सदन में पार्टी का व्हीप नियुक्त कर दिया गया। गोगोई को जो पद दिया गया है, उसपर उनसे पहले मुख्यमंत्री बनने से ठीक पहले तक कैप्टन अमरिंदर सिंह काबिज थे। इन दोनों में थरूर और तिवारी के मुकाबले विशिष्टता यही है कि वो राहुल गांधी के ज्यादा करीब हैं। मतलब क्या सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष रहते राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ये संकेत देना चाहते हैं कि उन्हें सब कुछ पता है और कोई भी नेता उन्हें समझाने की कोशिश ना करे। गांधी परिवार के दोनों भाई-बहनों का नाम इसलिए लिया जा रहा है क्योंकि कांग्रेस के शीर्ष स्तर पर हुई पिछली दो बैठकों में ये दोनों ही सभी वरिष्ठ नेताओं पर भारी पड़े हैं। इनके बर्ताव पर दबी-जुबान में बुजुर्ग नेता सवाल भी उठा रहे हैं, लेकिन इज्जत बचाने के लिए अपना नाम जाहिर नहीं होने देना चाहते।
पार्टी से वफादारी पर परिवार की चापलूसी भारी ?
कांग्रेस ने संसद में पार्टी में समन्वय बनाए रखने के लिए 10 नेताओं के नाम का ऐलान किया है। इस लिस्ट में गांधी परिवार के करीबियों को तबज्जो मिली है। नाम तो गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा की भी शामिल है, लेकिन अहमद पटेल, केसी वेनुगोपाल और जयराम रमेश को उसमें शामिल करके चुनाव की आवाज उठाने वालों को साफ संकेद दे दिया गया है। रमेश राज्यसभा में पार्टी के चीफ व्हीप भी होंगे। आलम तो ये है कि यूपी के लखीपुर जिला कांग्रेस कमिटी ने जितिन प्रसाद के खिलाफ आधिकारिक प्रस्ताव पारित किया है। इसको लेकर मीडिया में एक ऑडियो क्लिप भी लीक हुआ है, जिसमें जिलाध्यक्ष कथित रूप से कहते सुने गए हैं कि प्रसाद के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने का हुक्म एआईसीसी के एक सचिव ने दिया था। सवाल है कि क्या प्रियंका गांधी वाड्रा के इशारे पर ये सब हो रहा है? क्योंकि, उनके द्वारा नियुक्त यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय लल्लू ने प्रस्ताव का यह कहकर बचाव किया है कि प्रसाद के खिलाफ कार्यकर्ताओं ने गुस्सा दिखाया है। उन्होंने सोनिया और दिल्ली को अपनी भावना जाहिर की है। यहां गौर करने लायक बात ये है कि जिस तरह से लल्लू जैसे नेताओं के मनोयन का कांग्रेस ने बीते करीब ढाई दशकों में परंपरा बना ली है, चिट्ठी लिखने वाले 23 नेताओं ने उसी परंपरा को सुधारने की मांग की है। ताकि, पार्टी को भाजपा के मुकाबले जनाधार वाला नेता चाहिए, हवा-हवाई नहीं।
तो 50 साल तक विपक्ष में बैठने के लिए तैयार रहे कांग्रेस....
गुलाम नबी आजाद ने एएनआई को दिए इंटरव्यू में भी यही मांग की है कि ब्लॉक स्तर से लेकर पार्टी अध्यक्ष तक का चुनाव होना चाहिए। इसके पीछे उन्होंने पार्टी के सामने जो तर्क दिया है, वह उचित ही जाहिर होता है, चाहे उनके खुद के राजनीतिक इरादे जो भी हों। उनका कहना है कि अगर संगठन में किसी पद के लिए चुनाव करवाते हैं तो कम से कम इतना तो तय होता है कि जीतने वाले को 51 फीसदी कार्यकर्ताओं और नेताओं का समर्थन होता है। ऊपर से थोप दिए जाने पर (जैसा कि करीब ढाई दशकों से हो रहा है), जिसको एक भी बंदा नहीं पसंद करता वह भी नीचे से ऊपर तक प्रभावी पदों पर बैठ जाता है। अगर ऐसे ही नेताओं की बदौलत पार्टी सत्ता में वापसी चाहती है तो उसे आने वाले 50 साल विपक्ष में ही बैठने के लिए तैयार रहना चाहिए।
कांग्रेस के सामने वाला दल कभी भी इतना ताकतवर नहीं रहा
देश की सियासत की जमीनी हालात को खुद कांग्रेस नेताओं ने स्वीकार किया है। पार्टी के 23 नेताओं ने सोनिया को जो चिट्ठी लिखी है, उसमें कहा गया है कि पार्टी का जनाधार लगातार खिसकता जा रहा है। खासकर युवा मतदाता उससे पूरी तरह मुंह मोड़ चुके हैं। पिछले दो लोकसभा चुनावों में 18.7 करोड़ फर्स्ट टाइम वोटर जुड़े हैं। 2014 में 10.15 करोड़ और 2019 में 8.55 करोड़। जिनमें से ज्यादातर वोट मोदी और भाजपा को गए हैं। भाजपा का वोट शेयर 2009 के 7.84 करोड़ से 2014 में 17.6 करोड़ और 2019 में 22.9 करोड़ तक पहुंच गया। लेकिन, इसके ठीक उलट कांग्रेस को 2009 में जो वोट मिले थे, उसमें भी 1.23 करोड़ की गिरावट ही आ गई। पिछले लोकसभा चुनावों में नाममात्र के लिए 2009 से वोट शेयर में इजाफा हुआ है। लेकिन, पिछले लोकसभा चुनाव के 14 महीने बाद भी कांग्रेस को अबतक अपने अंदर झांकने की फुर्सत नहीं मिली है। जबकि, उसका सामना भाजपा से है, जिसके पास 40 से ज्यादा संगठन हैं। पार्टी करीब 18 करोड़ सदस्य होने का दावा करती है। केंद्र में वह दोबारा 303 सीटें जीत कर लौटी है। नरेंद्र मोदी जैसा मास लीडर उसके पास है। ऐसे में कांग्रेस के कर्ताधर्ताओं को निश्चित तौर पर सोचना पड़ेगा कि आधे-अधूरे मन और हवा-हवाई संगठन के दम पर वह बीजेपी और मोदी का मुकाबला कैसे करेंगे।