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India-China war: जब गलवान घाटी छोड़ने के 97 दिनों के अंदर चीन ने बोला भारत पर हमला

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नई दिल्‍ली। सोमवार को पूर्वी लद्दाख में एक छोटा ही सही मगर सकारात्‍मक कदम चीन की तरफ से उठाया गया है। यहां से पीपुल्‍स लिब्रेशन आर्मी (पीएलए) के जवानों ने पीछे हटना शुरू कर दिया है। लेकिन इसके बाद भी भारत की सेनाएं चौकस हैं और किसी भी तरह से चीन पर भरोसा करने के मूड में नहीं हैं। इस भरोसे की वजह है सन् 1962 में दोनों देशों के बीच हुई जंग है। इससे जुड़ी अखबार की एक क्लिप भी तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। इस बार भारत और चीन के बीच टकराव के केंद्र में है गलवान घाटी। यह वही जगह है जहां पर 1962 में हुई जंग में पहली गोली चली थी।

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वायरल हो रही है अखबार की एक क्लिप

वायरल हो रही है अखबार की एक क्लिप

एक अखबार की क्लिप वह टाइम्‍स ऑफ इंडिया की है और 15 जुलाई 1962 की यह क्लिप सोमवार को ट्विटर पर वायरल हो गई थी। इसमें जो आर्टिकल था उसकी हेडिंग थी, 'चाइनीज ट्रूप्‍स विदड्रॉ फ्रॉ गलवान पोस्‍ट।' इस वायरल क्लिप को एक प्रकार की चेतावनी माना जा रहा है और इसी वजह से शायद भारत की सेनाएं कम्‍फर्ट जोन में आने के मूड में नहीं हैं। उस वर्ष भी सीमित संख्‍या में हुए डिएस्‍केलेशन के बावजूद चीन ने 97 दिन के अंदर भारत पर हमला बोल दिया था। सूत्रों के मुताबिक एक छोटा कदम उठाया गया है लेकिन चीनियों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

20 अक्‍टूबर 1962 को शुरू हुई थी जंग

20 अक्‍टूबर 1962 को शुरू हुई थी जंग

20 अक्‍टूबर 1962 को भारत और चीन के बीच जंग की शुरुआत हो गई थी। इस जंग की शुरुआत गलवान घाटी ही थी। सन् 62 की गर्मियों में भारत ने गलवान घाटी को बिल्‍कुल किसी किले में तब्‍दील कर दिया था। यहां पर गोरखा सैनिकों को तैनात किया गया था। छह जुलाई को पीएलए की एक प्‍लाटून ने गोरखा सैनिकों को देखा और अपने हेडक्‍वार्टर पर इसकी जानकारी दी थी। चार दिन बाद ही 300 चीनी जवानों ने 1/8 गोरखा रेजीमेंट को घेर लिया था। 15 जुलाई को जो अखबार आया उसमें रिपोर्ट में दावा किया गया था कि चीनी सैनिक गलवान पोस्‍ट से 200 मीटर पीछे हो गए हैं। लेकिन यह स्‍तर कुछ ही दिन तक रहा और चीनी जवान वापस आ गए।

गोरखा रेजीमेंट की जगह आई जाट कंपनी

गोरखा रेजीमेंट की जगह आई जाट कंपनी

अगले तीन माह तक भारत और चीन के बीच चिट्ठियों के जरिए संपर्क हुआ। गोरखा रेजीमेंट के सैनिकों का नेतृत्‍व नायक सूबेदार जंग बहादुर कर रहे थे और आज तक उन्‍हें एक योद्ध माना जाता है। अक्‍टूबर माह की शुरुआत में जब तापमान जीरो से भी नीचे चला जाता है, तत्‍कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने तय किया कि गोरखा सैनिकों को हटाया जाएगा। इसके बाद 5 जाट अल्‍फा कंपनी को मेजर एसएस हसबनिस के नेतृत्‍व में तैनात किया गया। एमआई-4 हेलीकॉप्‍टर्स ने 4 अक्‍टूबर से उड़ान भरनी शुरू कर दी थी और अगले कुछ दिनों के अंदर ही इस तैनाती को अंजाम दिया गया।

चीन की फायरिंग में शहीद 36 भारतीय सैनिक

चीन की फायरिंग में शहीद 36 भारतीय सैनिक

20 अक्‍टूबर 1962 को चीनी सेना ने गलवान पोस्‍ट पर फायरिंग शुरू कर दी जिसमें 36 सैनिक शहीद हो गए। मेजर हसबनिस को चीनियों ने पकड़ लिया था। इसके बाद आधिकारिक तौर पर चीन के साथ जंग की शुरुआत हो गई। मेजर हसबनिस को सात माह तक युद्धबंदियों के कैंप में बिताने पड़े थे और जब युद्ध खत्‍म हुआ तो वह वापस लौटे। आज उनके बेटे लेफ्टिनेंट जनरल हसबनिस उप-सेना प्रमुख हैं। सैन्‍य अधिकारी भी अब 1962 की जंग का उदाहरण देते हुए चीन पर कभी भी भरोसा न करने की बात कह रहे हैं। युद्ध शुरू होने से पहले कई हफ्तों तक इसी तरह से चिट्ठियों के जरिए भारत और चीन के बीच वार्ता होती रही थी। भारत और चीन के बीच हुई 62 की जंग एक माह एक दिन तक चली थी। इस युद्ध में भारत के एक हजार से ज्‍यादा सैनिक शहीद हो गए थे।

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English summary
When China pulled back from Galwan valley but after 97 days attacked India in 1962.
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