जब राजस्थान में डूब रहा था अशोक गहलोत का राजनीतिक कैरियर, तब सचिन पायलट ने संभाला था मोर्चा!
बेंगलुरू। ज्यादा दूर नहीं, बस आपको वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव नतीजों तक लेकर चलूंगा, जहां कांग्रेस राजस्थान में 25 लोकसभा सीटों में से एक सीट भी जीतने में नाकाम रही थी, जिसकी बागडोर राजस्थान में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष पांच बार के सांसद और तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बन चुके अशोक गहलोत के हाथ में थी।
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गहलोत की यह नाकामी 2019 लोकसभा चुनाव तक ही सीमित नहीं थी, यह क्रम लोकसभा चुनाव 2014 और राजस्थान विधानसभा चुनाव 2013 में भी जारी था, लेकिन कांग्रेस आलाकमान के निष्ठावान सिपाही अशोक गहलोत की कुर्सी को कैडर भी आंच नहीं पहुंचा पाई।
सचिन पायलट पहले और आखिरी नहीं, जानिए कांग्रेस के गांधी परिवार तक सिमटने की असली कहानी?
2013 में कांग्रेस को ऐतिहासिक और शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा
यह अलग बात है कि लगातार लोकसभा चुनावों में राजस्थान कांग्रेस के खाते में डबल जीरो और राजस्थान विधानसभा चुनाव 2013 में कांग्रेस को ऐतिहासिक और सबसे शर्मनाक 21 सीटों तक पहुंचाने वाले अशोक गहलोत ने खुद को मार्गदर्शक मंडल की ओर समेटने की कोशिश कर ली थी। शायद यही कारण था कि आशंकित अशोक गहलोत ने लोकसभा चुनाव 2019 में बेटे वैभव गहलोत को जोधपुर से सांसद बनाना चाहा था।
बेटे वैभव गहलोत को सांसद बनाने के लिए जोधपुर में पसीना बहान पड़ा
लोकसभा चुनाव 2019 में अशोक गहलोत ने बेटे वैभव गहलोत को टिकट देने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया और बेटे को सांसद बनाने के लिए जोधपुर की उस लोकसभा सीट पर खून-पसीना एक करना पड़ गया, जहां से गहलोत एक नहीं, बल्कि पांच-पांच बार सांसद चुने जा चुके थे। राजस्थान में यह कालावधि अवसान का था, क्योंकि लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान गहलोत ने किए 130 रैलियों में से अकेल 93 रैली बेटे के समर्थन में की थी।
अशोक गहलोत 93 रैलियों के बाद भी बेटे को सांसद नहीं बना पाए थे
नतीजा सभी का मालूम हो, कांग्रेस न केवल पूरे प्रदेश में नकार दी गई थी, बल्कि गहलोत 93 रैलियों के बाद भी बेटे को सांसद नहीं बना पाए थे। यह गहलोत की राजस्थान में खिसकती जमीनी हकीकत थी। गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को बीजेपी उम्मीदवार गजेंद्र सिंह शेखावत ने बड़े मार्जिन से हराया था। करीब 2 लाख 70 हजार से हारे वैभव गहलोत की हार के बाद गहलोत के नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठना लाजिमी थी।
राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत का जादू रसातल पर पहुंच गया था
राजस्थान में राजनीति के जादूगर के नाम मशहूर अशोक गहलोत का जादू कम हो गया था, जिसकी तस्दीक राजस्थान विधानसभा चुनाव 2013 और लोकसभा चुनाव 2014 और लोकसभा चुनाव 2019 में हो जाता है। यहां राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस की जीत पर चर्चा इसलिए जरूरी नहीं है, क्योंकि उसकी बागडोर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के हाथों में थी और कांग्रेस की जीत का श्रेय युवा नेतृत्व सचिन पायलट को जाता है।
विधानसभा चुनाव 2018 में जीत का सेहरा अशोक गहलोत के सिर पर सजा
क्योंकि राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 में जीत का सेहरा अशोक गहलोत के सिर पर सजाया गया था, तो 2019 लोकसभा चुनाव में पार्टी की दुर्गति क्यों हो गई और पार्टी एक बार लोकसभा चुनाव 2014 की तरह लोकसभा चुनाव 2019 में भी खाता खोलने में पूरी तरह से नाकाम रह गई। यह ऐसे सवाल थे, जो कांग्रेस आलाकमान को भी चुभ रहे थे, उन्हें भी पता था कि अशोक गहलोत का जादू राजस्थान में फीका पड़ चुका है, लेकिन युवा नेतृ्त्व को नकार दिया और राजस्थान कांग्रेस में गुटबाजी का दौर चल पड़ा।
राहुल गांधी ने हार के बाद CM गहलोत को मिलने का समय तक नहीं दिया
विधानसभा चुनाव और फिर दो लोकसभा चुनाव में अशोक गहलोत के नेतृत्व में हो रही लगातार हार का ही परिणाम था कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कांग्रेस की हार का ठीकरा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर फोड़ना चाहते थे, लेकिन गांधी परिवार और कांग्रेस आलाकमान के निष्ठावान नेताओं में शुमार अशोक गहलोत के खिलाफ कुछ नहीं किया गया, जिससे सचिन पायलट का गुस्सा और असंतोष गुब्बारे की तरह फूलता चला गया।
लगातार हार के बाद अशोक गहलोत के खिलाफ कार्रवाई की मांग उठी
हालांकि कहा जाता है कि कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की बैठक में राहुल गांधी ने बेटे वैभव गहलोत को टिकट देने को लेकर अशोक गहलोत पर सवाल उठाए थे, जिसके बाद राजस्थान कांग्रेस के नेताओं ने भी गहलोत की मुश्किलें बढ़ा दी है। कई मंत्रियों और विधायकों ने चुनाव दर चुनाव में शिकस्त के लिए जवाबदेही तय करने के साथ अशोक गहलोत के खिलाफ कार्रवाई के लिए भी दांव चल दिए थे, लेकिन अंत तक कुछ नहीं हुआ।
बुरे प्रदर्शन से राहुल गांधी से अशोक गहलोत के रिश्ते बेहद तल्ख हो गए थे
बताया जाता है कि 2018 चुनाव में जीते के बाद राजस्थान में तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाए गए अशोक गहलोत के नेतृत्व में लगातार दो लोकसभा चुनाव में पार्टी के बुरे प्रदर्शन से राहुल गांधी से अशोक गहलोत के रिश्ते बेहद तल्ख हो गए थे। यह इतना तल्ख हो गया था कि हार की समीक्षा के लिए दिल्ली में डटे अशोक गहलोत से मुलाकात के लिए राहुल गांधी ने समय तक नहीं दिया था। निःसंदह गहलोत पर इस्तीफे का दबाव है, लेकिन गहलोत तैयार नहीं थे।
गहलोत की जादूगरी नहीं, सचिन पायलट के युवा नेतृत्व में मिली थी जीत
2018 में हुए राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खाते में आई जीत में गहलोत की जादूगरी नहीं, बल्कि सचिन पायलट का युवा नेतृत्व काम आया था, लेकिन सेहरा अशोक गहलोत के सिर पर बांधकर कहा जा सकता है कि पार्टी आलाकमान ने राजस्थान के जनादेश का अपमान किया। सचिन पायलट और अशोक गहलोत गुट में गोलबंदी और बढ़ गई। यहां तक इसका खुलासा खुद अशोक गहलोत कर चुके है।
राहुल गांधी ने राजस्थान, MP और छत्तीसगढ़ में हार पर विशेष नाराजगी जताई
आपको याद दिला दूं कि लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारण इकाई कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश करते हुए राहुल गांधी ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में करारी हार पर विशेष रूप से नाराजगी जताई थी, क्योंकि तीनों ही प्रदेशों में कांग्रेस को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था।
राजस्थान में 0 सीट, मध्य प्रदेश में 1 सीट और छत्तीसगढ़ में 2 लोकसभा सीट
कांग्रेस राजस्थान में 25 में से 0 सीट, मध्य प्रदेश में 29 में से एक सीट और छत्तीसगढ़ में पार्टी 11 सीटों में 2 सीट जीतने में सफल हो गई थी, जबकि बीजेपी राजस्थान में 25 में 25 सीट जीतने में कामयाब रही थी। वहीं, मध्य प्रदेश में भी बीजेपी 29 सीटों में से 28 सीट और छत्तीसगढ़ में बीजेपी 11 सीटों में से 9 सीट पर कब्जा किया था। यह सीधे-सीधे युवा नेतृत्व को तीनों प्रदेशों में नकारने का परिणाम कहा जा सकता है।
बेटों को चुनाव जिताने की कोशिश में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा
सूत्रों के मुताबिक सीडब्लयूसी की बैठक कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश के दौरान राहुल गांधी ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ समेत कुछ बड़े क्षेत्रीय नेताओं का उल्लेख करते हुए कहा था कि इन नेताओं ने बेटों-रिश्तेदारों को टिकट दिलाने के लिए जिद और उनके द्वारा सिर्फ बेटों और रिश्तेदारों को चुनाव जिताने की कोशिश में ही पार्टी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा।
जब गहलोत पार्टी नेतृत्व के आगे सरेंडर करने को लगभग तैयार हो गए थे
यही वह समय था जब अशोक गहलोत पार्टी नेतृत्व के आगे सरेंडर करने को लगभग तैयार हो गए थे। उन्हीं दौरान जब अशोक गहलोत से तत्कालीन कांग्रेस राहुल गांधी के बयान के बारे में पूछा गया तो गहलोत ने कहा कि यह जरूर कहा कि राहुल गांधी की बात को संदर्भ से अलग करके पेश किया गया, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी शासित राज्यों की सरकारों में बदलाव के लिए कांग्रेस अध्यक्ष कोई भी फैसला करने के लिए अधिकृत हैं।
राहुल गांधी को पूरा अधिकार है कि नेतृत्व की जवाबदेही तय करेंः खाचरियावास
राजस्थान के परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास, जिन्होंने वर्तमान में सचिन पायलट पर कार्रवाई के बाद पाला बदल लिया है। तब उन्होंने अशोक गहलोत पर तंज कसते हुए कहा था कि अगर राहुल गांधी जी वरिष्ठ नेताओं की कमी पाते हैं तो उनका पूरा अधिकार है कि वह जवाबदेही तय करें और कार्रवाई करें। यही नहीं, राजस्थान सरकार के एक और मंत्री भंवरलाल मेघवाल ने भी कहा कि पार्टी की हार के लिए तत्काल जवाबदेही तय होनी चाहिए।
के सी बिश्नोई ने चुनावी हार के लिए अशोक गहलोत पर निशाना साधा था
हनुमानगढ़ जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के सी बिश्नोई ने चुनावी हार के लिए गहलोत पर निशाना साधते हुए कहा था कि संगठन (सचिन पायलट) ने कड़ी मेहनत की और पार्टी को राज्य की सत्ता में वापस लेकर आए, लेकिन तीन महीनों के भीतर लोग सरकार से नाराज हो गए। मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी होनी चाहिए और उन्हें इस्तीफे की पेशकश करनी चाहिए। हालांकि सच्चाई यह थी कि राजस्थान के वोटर गहलोत से वर्ष 2013 से नाराज थे।
कांग्रेस 5 % गुर्जर (सचिन पायलट) 4 % (गहलोत-माली) की रणनीति से जीती
माना जाता है कि लगभग सात करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले राजस्थान प्रदेश में जातिगत आंकड़े चुनावी दृष्टिकोण से बहुत अह्म हैं और कांग्रेस 5 फीसदी गुर्जर (सचिन पायलट) और 4 फीसदी (गहलोत-माली) के संयोजन से चुनावी रणनीति की वजह से 2018 विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाब हुई थी और राजस्थान की राजनीति में वर्चस्व वाले जाति क्रमशः ब्राह्मण, जाट और राजपूत मतदाताओं में सर्वाधिक 9 फीसदी जनसंख्या वाले जाट के बार वोट आधार तैयार किया, जिससे उसको जीत हासिल हुई थी।
राजस्थान की राजनीति में ब्राह्मण, जाट और राजपूत नेताओं का वर्चस्व रहा है
राजस्थान की राजनीति में ब्राह्मण, जाट और राजपूत नेताओं का वर्चस्व रहा है, जिनकी पहली पसंद वसुंधरा राजे हैं। राजस्थान में ब्राह्मण 7 फीसदी, गुर्जर 5 फीसदी, मीणा 7 फीसदी, जाट 9 फीसदी और राजपूत 6 फीसदी हैं। पिछले चुनावों पर यदि नजर डाली जाय तो यही जातियां राजस्थान का चुनावी समीकरण बनाती बिगाड़ती रही हैं और गुर्जर और माली कॉम्बिनेशन से कांग्रेस ने 99 सीट जीतकर सत्ता के करीब पहुंचने में कामयाब रही थी।
कांग्रेस ने सचिन पायलट को आगे करके गुर्जरों के वोट को हथियाए लिए
कांग्रेस ने सचिन पायलट को आगे करके गुर्जर वोट को हथियाने की कोशिश जरूर की है, लेकिन इनकी संख्या सिर्फ 5 प्रतिशत है, वहीं अशोक गहलोत जिस माली समुदाय से आते हैं उसकी संख्या 4 फीसदी है, जो दोनों मिलाकर 9 प्रतिशत जाट समुदाय के बराबर होती है। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस प्रकार राजस्थान भाजपा के भीतर एक वसुंधरा विरोधी पार्टी बन गई है, उसी प्रकार राजस्थान कांग्रेस के भीतर भी गहलोत कांग्रेस और सचिन कांग्रेस बन गई थी। राजस्थान की वर्तमान राजनीतिक संकट का यही बड़ा कारण है।
70 वर्षीय अशोक गहलोत राजस्थान का भविष्य नहीं हो सकते हैं
करीब 70 वर्ष के हो चुके अशोक गहलोत राजस्थान का भविष्य नहीं हो सकते हैं, राजस्थान सचिन पायलट में राजस्थान के भविष्य देखते हुए संभवतः कांग्रेस के पक्ष में वोट किया था, लेकिन चुनाव परिणाम के बाद सत्ता के करीब पहुंची कांग्रेस ने एक बार फिर कैड़र को किनारे रखकर सचिन पायलट को किनारे ढकेल दिया और अशोक गहलोत को कमान सौंप दी, जो बाद में 93 रैली करके भी बेटे को अपने गढ़ में सांसद बनाने में सफल नहीं हो सका।
एक उम्र के बाद गहलोत की राजनीतिक क्षमता में भी गिरावट आई है
निःसंदेह एक उम्र के बाद अशोक गहलोत की राजनीतिक क्षमता में भी गिरावट आई है, जिसका सीधा लाभ 2013 के विधानसभा चुनाव में ही भाजपा को नहीं मिला, बल्कि लोकसभा चुनाव 2014 और लोकसभा चुनाव 2019 में भी दोनों हाथों से कैश किया। राजस्थान में जारी राजनीतिक संकट का अंत कब होगा, यह हफ्ते में तय हो जाएगा। लेकिन कांग्रेस का भविष्य केंद्र के साथ-साथ प्रदेश में भी आसन्न संकट में है।
निष्ठावान नेताओं के बीच युवा नेतृत्व को बलि बेदी पर चढ़ाती आ रही है कांग्रेस
कैडर और निष्ठावान नेताओं के बीच युवा नेतृत्व को बलि बेदी पर चढ़ाती आ रही कांग्रेस मध्य प्रदेश से भी सबक नहीं सीख पाई है। ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट एक ही गाड़ी में सवार थे और मध्य प्रदेश में कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जो भूमिका निभाई, वह आज नहीं तो कल राजस्थान में होना तय है। फिलहाल मामला हाईकोर्ट में हैं और तब तक बागी विधायकों पर राजस्थान स्पीकर कोई भी निर्णय नहीं ले सकते हैं।
अशोक गहलोत अभी कुर्सी से चिपके रहना चाहते हैं
यह सौ फीसदी सच है कि अशोक गहलोत उम्र के जिस पड़ाव पर है, उन्हें सत्ता की बागडोर युवाओ को सौंप देना चाहिए, लेकिन अशोक गहलोत अभी कुर्सी से चिपके रहना चाहते हैं, जिसमें उनकी मदद उनकी गांधी परिवार के प्रति निष्ठा मददगार रही है। यह गहलोत की कुर्सी और सत्ता का मोह ही था कि राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 में भी वो मीडिया के सामने अपनी महत्वाकांक्षा दबा नहीं पाते थे।
CM पद के लिए सचिन को लंबी अवधि तक इंतजार करना होगाः गहलोत
अशोक गहलोत अपने भाषणों में अक्सर एक बात का जिक्र करना कभी नहीं भूलते हैं कि वह 14 साल तक राजस्थान कांग्रेस का अध्यक्ष रहने के बाद मुख्यमंत्री बने थे। इस बात का जिक्र करके गहलोत धुर विरोधी सचिन पायलट को संकेत देते रहते हैं कि मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी के लिए उन्हें भी लंबी अवधि तक इंतजार करना होगा और चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद सचिन पायलट को डिप्टी सीएम पद से संतोष करना पड़ गया, जबकि 2018 विधानसभा चुनाव में राजस्थान की जनता ने युवा सचिन पायलट के पक्ष में वोट किया था।
गहलोत ने राजस्थान में किसी और कांग्रेस नेता को पनपने नहीं दिया है
गहलोत के साथ समस्या यह है कि, वह बरगद के पेड़ की तरह हैं और उन्होंने पिछले दो दशकों में राजस्थान में किसी और कांग्रेस नेता को पनपने नहीं दिया है। राजस्थान कांग्रेस पर गहलोत का कड़ा नियंत्रण रहा है और अपने विश्वासपात्रों और मीडिया के अपने दोस्तों के माध्यम से वो पार्टी की राज्य इकाई पर लगातार नियंत्रण रखते आ रहे हैं। इस कवायद के जरिए गहलोत पार्टी में अपनी छवि बरकरार रखने में कामयाब रहे हैं।
तीन करारी शिकस्त के बाद भी गहलोत की महत्वाकांक्षाएं कम नहीं हुई
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एक के बाद एक तीन करारी शिकस्त के बाद भी गहलोत की महत्वाकांक्षाएं कम नहीं हुई हैं। 2013 की करारी हार के बाद भी गहलोत ने राज्य में पार्टी के नए नेताओं को मौका देना शुरू किया। साथ ही अपने जैसे वरिष्ठ कांग्रेसियों के लिए एक मार्गदर्शक मंडल बनाया, लेकिन वह अपने मन से मुख्यमंत्री पद की लालसा कभी नहीं निकाल पाए। गहलोत ने खुद को सीएम पद की दौड़ में हमेशा बनाए रखा।
तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछली चुनाव में पायलट को दी थी कमान
साल 2013 विधानसभा चुनाव में हार के बाद अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गए थे। इसी के चलते कांग्रेस आलाकमान ने गहलोत को सम्मान के साथ राजस्थान की राजनीति से दूर रखने का हर संभव प्रयास किया था। कांग्रेस आलाकमान चाहता था कि इन दोनों नेताओं की कलह के चलते राज्य में पार्टी के सम्मान और साख को दोबारा हासिल करने में दिक्कत पेश न आए, क्योंकि पार्टी का ध्यान चुनाव जीतने पर अधिक केंद्रित था। कांग्रेस चुनाव तो जीत गई, लेकिन सचिन और गहलोत की गुटबाजी को रोक नहीं पाई।
सचिन को राजस्थान कांग्रेस को मन मुताबिक चलाने का लाइसेंस मिला था
पिछले विधानसभा चुनाव में हार के बाद पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सचिन पायलट को राजस्थान कांग्रेस को मन मुताबिक चलाने का लाइसेंस दे दिया था। यह एक पीढ़ीगत बदलाव का संकेत था। इसके साथ ही गहलोत को गुजरात जैसे अहम राज्य का चुनाव प्रभारी नियुक्त किया गया था, लेकिन गहलोत गुजरात में रहते हुए भी राजस्थान की राजनीति से दूर नहीं रह पाते, जिसकी गूंज उनके बयानों में अक्सर सुनाई देती थी।
यूं ही नहीं, सचिन पर फिर भारी साबित हुए थे अशोक गहलोत
इसमें कोई दो राय नहीं कि राजस्थान की राजनीति में अशोक गहलोत कांग्रेस का सबसे लोकप्रिय चेहरा है। पिछले दो दशक से पार्टी संगठन पर मजबूत पकड़ रखने वाले गहलोत की लोकप्रियता का अंदाजा उनकी सोनिया गांधी तक पहुंच से समझी जा सकती है। गांधी परिवार के प्रति निष्ठावान गहलोत के प्रदेश में जबर्दस्त नेटवर्क भी उनके हक में चला जाता है। इसलिए गहलोत राहुल गांधी के लिए मुश्किल बन गए और सचिन पायलट को किनारे करना पड़ा।
सचिन पायलट के पक्ष में 18 विधायक खड़े हैं, लेकिन एक मंत्री नहीं है
गहलोत भले ही एक अच्छे वक्ता नहीं हैं, लेकिन ध्यान से सुनना उनकी खासियत है। अगर राजस्थान की तुलना मप्र की हालात से करें तो वहां ज्योतिरादित्य सिंधिंया के साथ कई मंत्री भी थे। वे अपने खेमे के विधायकों को भाजपा सरकार में मंत्री बनवाने में सफल भी हुए। सिंधिया परिवार के भाजपा और संघ से पहले जुड़ाव रहा है, लेकिन, राजस्थान में ऐसा नहीं दिखता है। राजस्थान में फिलहाल कोई भी मंत्री अभी सचिन पायलट के साथ नहीं जाना चाहता है, यही पक्ष राजस्थान में सचिन पायलट के खिलाफ जा सकती है। उनके पक्ष में 18 विधायक खड़े हैं, लेकिन मंत्री नहीं है।