जब प्रणब मुखर्जी की एक बात ने शर्मिष्ठा को झकझोर दिया था, भाई-बहन के झगड़े की इनसाइड स्टोरी
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The presidential years: पूर्व राष्ट्रपति और भारत रत्न प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी और पुत्र अभिजीत मुखर्जी आखिर क्यों लड़ रहे हैं? अगर प्रणब मुखर्जी की लिखी किताब- द प्रेसिडेंसियल इयर्स ज्यों की त्यों छप गयी तो इससे किसको दिक्कत हो सकती है ? अभिजीत मुखर्जी इस किताब का प्रकाशन तब तक रोके रखना चाहते हैं जब तक कि वे इसकी मूल पांडुलिपि पढ़ ने लें। दूसरी तरफ शर्मिष्ठा मुखर्जी इस किताब का अक्षरस: वैसा ही प्रकाशन चाहती हैं जैसा कि उनके पिता ने लिखा है। वे किसी फेरबदल के खिलाफ हैं। जनवरी 2021 में इस किताब का लोकार्पण प्रस्तावित है। लेकिन किताब छपने के पहले ही इसके कुछ अंश सार्वजनिक हो गये हैं जिसमें मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी की गलतियों का जिक्र है। शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपने भाई का विरोध करते हुए लिखा है, वे सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए किताब के छपने में अनावश्यक बाधा न डालें। किताब के अंतिम प्रारूप में मेरे पिता के हस्तलिखित नोट और टिपण्णियां हैं। जो भी विचार हैं, उनके अपने हैं। किसी को भी इसे रोकने या बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
पूर्व राष्ट्रपति के पुत्र अभिजीत मुखर्जी
प्रणब मुखर्जी की तीन संतान हैं। अभिजीत मुखर्जी, इंद्रजीत मुखर्जी और शर्मिष्ठा मुखर्जी। प्रणब मुखर्जी का राजनीतिक वारिस कौन है ? इस सवाल का जवाब आसान नहीं है। अभिजीत मुखर्जी और शर्मिष्ठा मुखर्जी दोनों राजनीति में हैं। जब कि इंद्रजीत मुखर्जी राजनीति से दूर एक तरह से गुमनाम जिंदगी जीते हैं। वे लाइमलाइट में रहना भी नहीं चाहते। अभिजीत मुखर्जी पेशे से इंजीनियर रहे हैं। वे इंजीनियर के रूप में भेल, सेल और मारुति में काम कर चुके हैं। फिर राजनीति में आ गये। अभिजीत, प्रणब मुखर्जी के लोकसभा क्षेत्र जंगीपुर से सांसद चुने जा चुके हैं। 2012 में जब प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति चुने गये थे तब उन्होंने जंगीपुर सीट से इस्तीफा दे दिया था। जब उपचुनाव हुआ तो अभिजीत ने कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में यहां से जीत हासिल की। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी उन्हें जीत मिली। 2019 के लोकसभा चुनाव में वे तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार से हार गये थे।
शर्मिष्ठा मुखर्जी कैसे आयीं राजनीति में ?
शर्मिष्ठा मुखर्जी ने शुरू में खुद को राजनीति से दूर रखा था। वे कत्थक की मशहूर नृत्यांगना हैं। 40 से अधिक देशों में कार्यक्रम पेश कर चुकी हैं। 2012 में वे अपने पिता के साथ इसलिए राष्ट्रपति भवन में रहने नहीं गयीं थीं क्योंकि उन्हें राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन एक दो साल के बाद जब उनकी मां शुभ्रा मुखर्जी बीमार रहने लगीं तो उनकी देखभाल के लिए उन्हें राष्ट्रपति भवन जाना पड़ा। इसके बाद शर्मिष्ठा की व्यस्ततता बढ़ गयी। वे अपनी मां की देखभाल तो करती ही थीं, पिता की दिनचर्या को भी व्यवस्थित करने में समय देना पड़ता। राष्ट्रपति की हैसियत से कब उनके पिता की मीटिंग है, किन-किन लोगों ने मुलाकात के लिए समय लिया है और कैसे उन्हें मिलना है आदि बातों की रूपरेखा शर्मिष्ठा ही बनातीं। न चाहते हुए भी उन्हें राजनीतिक भागीदारी निभानी पड़ी। कुछ दिनों के बाद उनकी राजनीति में दिलचस्पी भी हो गयी। 2014 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें ग्रेटर कैलाश विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया। लेकिन वे आप उम्मीदवार सौरभ भारद्वाज से हार गयीं। उन्हें सिर्फ 6102 वोट मिले और वे तीसरे स्थान पर फिसल गयीं। 2019 में उन्हें राहुल गांधी ने दिल्ली महिला कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था।
प्रणब मुखर्जी की किताब में चौंकाने वाला खुलासा, सोनिया-मनमोहन की वजह से हारे थे 2014 का चुनाव
प्रणब मुखर्जी को बेटी से अधिक लगाव
शर्मिष्ठा मुखर्जी के मुताबिक, वे अपने परिवार में अकेली ऐसी शख्स रहीं जो अपने पिता ( प्रणब मुखर्जी) से बहस कर सकती थी या जिद कर सकती थीं। उन्होंने जिस तरह से अपनी बीमार मां की सेवा की थी उससे भी प्रणब मुखर्जी बहुत प्रभावित रहते थे। पूर्व राष्ट्रपति को अपनी बेटी से गहरा लगाव था। दोनों के बीच कैसा संबंध था, ये बात एक किस्से से साफ हो जाती है। शर्मिष्ठा जब 12वीं क्लास में थीं तब वे दिन रात अपने कत्थक नृत्य को लेकर व्यस्त रहती थीं। ये बात उनकी मां शुभ्रा को पसंद नहीं थी। उनके घर में पढ़ाई को लेकर ऊंचे मानदंड तय थे। एक दिन उनके पिता के पास इसकी शिकायत पहुंची। प्रणब दा बिल्कुल शांत रहे। उन्होंने शर्मिष्ठा को बुलाया और कहा, तुम नृत्य के क्षेत्र में नाम कमाओ इससे मुझे कोई दिक्कत नहीं। लेकिन अगर परीक्षा में कम नम्बर आये और किसी अच्छे कॉलेज में एडमिशन के लिए मुझसे फेवर मांगोगी, तो यह बिल्कुल नहीं होगा। इस बात ने शर्मिष्ठा के आत्मसम्मान को झकझोर दिया। उन्होंने जीतोड़ मेहनत की। फिर तो 12वीं में इतने अच्छे नम्बर आये कि उन्हें भारत के नम्बर एक कॉलेज, सेंट स्टीफंस में दाखिला मिल गया। यहां से ग्रेजुएशन करने के बाद शर्मिष्ठा ने जेएनयू से एमए की डिग्री ली। पढ़ाई और नृत्य दोनों में बेहतर प्रदर्शन किया।
पिता के सम्मान के लिए कांग्रेस से भी लड़ी
2017 में कांग्रेस पार्टी ने राजीव गांधी और प्रणब मुखर्जी की एक तस्वीर जारी की थी। इस तस्वीर के कैप्शन में लिखा था- श्री राजीव गांधी और प्रणब मुखर्जी 1985 में। उस समय प्रणब दा राष्ट्रपति के पद पर आसीन थे। शर्मिष्ठा ने इस तस्वीर के कैप्शन पर विरोध प्रगट किया। उन्होंने कांग्रेस पार्टी की आलोचना करते हुए कहा कि उनके पिता के नाम के आगे श्री क्यों नहीं लगाया गया ? वह भी तब जब वे राष्ट्रपति जैसे अतिसम्मानित पद पर आसीन हैं। इसके बाद कांग्रेस को बैकफुट पर आना पड़ा था। ‘द प्रेसिडेंसियल इयर्स' के मूल तथ्य प्रकाशित होने से कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवि धूमिल हो सकती है। कहा जा रहा है कि अभिजीत मुखर्जी किताब से इस तथ्य को हटाना चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि शर्मिष्ठा को कांग्रेस से निष्ठा नहीं है। लेकिन वे किसी को खुश करने के लिए अपने पिता की लिखी बात को बदलना नहीं चाहतीं। 2018 में जब प्रणब मुखर्जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय नागपुर गये थे तब इस बात की पुरजोर अफवाह उड़ी थी कि शर्मिष्ठा भाजपा में शामिल होने वाली हैं। तब उन्होंने कहा था मैंने कांग्रेस में विश्वास के कारण इस दल को चुना था। मैं राजनीति छोड़ दूंगी लेकिन कांग्रेस नहीं छोड़ूंगी।