जब भारत में पहली बार हुआ था एक सीटिंग MLA का एनकाउंटर
ये कहानी एक पॉलिटिकल थ्रिलर है। भारत के राजनीतिक इतिहास में पहली बार किसी सीटिंग एमएलए का एनकाउंटर किया गया था। इस घटना के बाद राजनीति में जैसे जलजला आ गया। ऐसा जनाक्रोश फूटा कि कांग्रेस सरकार की चूलें हिलने लगीं। सत्ता के मद में डूबे मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा। विधायक ने मर कर भी अपनी सीट पर कांग्रेस को जीतने नहीं दिया। सत्ता का अहंकार चूर-चूर हो गया।
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जनता का ‘राजा’
भारत की आजादी के बाद समाज और राजनीति का चेहरा बदल रहा था। राजे- रजवाड़े खत्म हो रहे थे। कुछ राजा ऐसे भी थे जो जमीन से जुड़ कर जनसेवक बन रहे थे। ऐसे ही एक राजा थे मान सिंह। वे राजस्थान के भरतपुर रियासत से ताल्लुक रखते थे। उन्होंने अपने नाम नहीं बल्कि काम से जनता के दिल में जगह बनायी। वे भरतपुर के एतिहासिक शहर डीग से लगातार सात बार निर्दलीय विधायक चुने गये। 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में जीत का जो सिलसिला शुरू हुआ वे 1984 तक लगातार जारी रहा। डीग इलाके में वे इतने लोकप्रिय थे कि कोई उन्हें चुनौती देने की स्थिति में नहीं था। कई बार राजा और रंक की भावना भड़का कर डीग में राजा मान सिंह के खिलाफ हवा बनाने की कोशिश हुई। लेकिन कामयाब नहीं रही। मान सिंह राजा से जनता के नेता बन चुके थे। वे कांग्रेस के विरोधी थे। कांग्रेस को ये बात हमेशा खटकती थी कि एक वह एक निर्दलीय विधायक से पार नहीं पा रही है।
1985 का विधानसभा चुनाव
फरवरी 1985 में राजस्थान विधानसभा का चुनाव हो रहा था। राजा मान सिंह फिर डीग से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। उनके खिलाफ इस बार कांग्रेस ने एक रिटायर आइएएस अधिकारी ब्रजेश सिंह को मैदान में उतारा था। उस समय राजस्थान में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री थे शिवचरण माथुर। कहा जाता है कि शिवचरण माथुर ने डीग सीट के चुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बना दिया था। वे राजा मान सिंह को हरा कर अपनी राजनीतिक ताकत दिखाना चाहते थे। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस सहानुभूति लहर पर सवार थी। 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने राजस्थान की सभी 25 सीटें जीत कर तहलका मचा दिया था। शिवचरण माथुर को लगा कि यदि इस बार जोर लगाया तो सात बार के विधायक मान सिंह को हराया जा सकता है। 20 फरवरी 1985 को डीग में मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर की चुनावी सभा तय हुई। सीएम माथुर आये। लेकिन उस दिन ऐसी घटना हुई जिसने भारत की राजनीति में तूफान ला दिया।
घटना की पृष्ठभूमि
20 फरवरी 1985 को सीएम शिवचरण माथुर हेलीकॉप्टर से डीग आये। हेलीपैड पर उतरने के बाद वे डीग अनाज मंडी में जनसम्पर्क के लिए चले गये। जनसम्पर्क के बाद एक सभा का भी आयोजन होना था। मंच तैयार हो गया था। कांग्रेस के कार्यकर्ता कुछ अधिक ही जोश में थे। राजा मान सिंह ने लोगों को पुराने दिनों की याद दिलाने के लिए जगह-जगह अपनी पूर्व रियासत के झंडे लगा रखे थे। इन झंडों से राजघराने और जनता की भावनाएं जुड़ी हुई थी। जोस में होश खो कर कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने राजा मान सिंह को झंडे के उखाड़ कर कांग्रेस का झंडा लगा दिया। जब ये बात राजा मान सिंह को मालूम हुई तो वे आपे से बाहर हो गये। इस बीच कुछ समर्थकों ने मान सिंह यह भी कह दिया कि सीएम माथुर ने उनके राजपरिवार के लिए कुछ कड़वी बातें भी कही हैं। इतना सुनने के बाद गुस्से से लाल मान सिंह अपनी जोंगा जीप पर सवार हो कर निकल पड़े। वे ब्रिटिश फौज में सेकेंड लेफ्टिनेंट रहे थे। जोंगा जीप सेना में इस्तेमाल होती रही है। सेना छोड़ने के बाद भी मान सिंह को जोंगा जीप से लगाव था।
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सीएम के हेलीकॉप्टर को जीप से तोड़ा
राजा मान सिंह सबसे पहले उस सभास्थल पर पहुंचे जहां मंच बना था। उन्होंने अपनी मजबूत जोंगा जीप से मंच को तहस नहस कर दिया। फिर वे हेलीपैड के पास गये जहां सीएम का हेलीकॉप्टर खड़ा था। उन्होंने अपनी जोंगा जीप से हेली कॉप्टर को भी तोड़ दिया। उस समय मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर जनसम्पर्क कर रहे थे। इस घटना के बाद बवाल हो गया। एक विधायक ने कानून तोड़ कर सीएम को सीधे चुनौती दे दी थी। टूटे मंच को देख कर शिव चरण माथुर ने जैसे-तैसे वहीं कुछ लोगों से बात की और जयपुर के लिए निकल पड़े। उन्हें सड़क मार्ग से जयपुर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस घटना ने उन्हें झकझोर दिया।
MLA का एनकाउंटर
राजा मान सिंह का उस दिन जरूर अपमान हुआ था लेकिन उन्हें कानून नहीं तोड़ना चाहिए था। उनके खिलाफ पुलिस ने दो एफआइआर दर्ज किये। सीएम को सीधे चुनौती देने से पुलिस के अफसर भड़के हुए थे। डीग शहर में दंगा फसाद रोकने के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया था। 21 फरवरी को राजा मान सिंह फिर अपने समर्थकों के साथ जीप में निकले। इसके बाद आरोप लगा कि ने पुलिस ने घेर कर राजा और उनके दो समर्थकों को गोलियों से भून दिया और उसे एनकाउंटर के रूप में दिखाया। आरोप यह भी लगा कि पुलिस ने मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर के इशारे पर इस वारदात को अंजाम दिया। इसके खिलाफ राजा मान सिंह के दामाद विजय सिंह ने पुलिस पर हत्या का आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया। राजा मान सिंह के सीने में गोली लगी थी जो बहुत नजदीक से मारी गयी थी। मुठभेड़ में दूर से गोली चलती है। उस दिन राजा चुनाव प्रचार में निहत्थे निकले थे जब कि पुलिस ने उनके हथियार उठाने पर आत्मरक्षा में गोली चलाने की बात कही थी। पुलिस के इस झूठ से डीग में भयंकर जनाक्रोश भड़क गया। पुलिस और सरकार के खिलाफ न केवल राजस्थान बल्कि अन्य पड़ोसी राज्यों में गुस्सा फूट गया। जाट समुदाय उग्र हो गया। उस समय राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। ऐन चुनाव के पहले ऐसी घटना होने से कांग्रेस घबरा गयी। आखिरकार शिवचरण माथुर पर गाज गिर गयी। उन्हें इस एनकाउंटर के दो दिन बाद ही मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया।
फिर भी नहीं जीती कांग्रेस
मान सिंह की गुजरने के बाद डीग से उनकी बड़ी बेटी कृष्णेन्द्र कौर दीपा ने निर्दलीय चुनाव लड़ा। 1985 में कांग्रेस की लहर के बाद भी दीपा ने इस सीट पर बहुत बड़ी मार्जिन से जीत हासिल की। 1991 के लोकसभा चुनाव में दीपा ने भाजपा के टिकट पर भरतपुर से लोकसभा का चुनाव जीता। बाद में वे तीन बार विधायक बनीं और वसुंधरा सरकार में मंत्री भी रहीं। उन्होंने अपने पिता की हत्या के खिलाफ मुस्तैदी से मुकदमा लड़ा। आखिकार कोर्ट के फैसले से यह साबित हो गया कि पुलिसवालों ने योजना बना कर राजा मान सिंह को गोलियों से ढेर किया था।
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