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फ़लस्तीन दौरे से मोदी को क्या हासिल होगा?

प्रधानमंत्री मोदी शुक्रवार को तीन देशों की यात्रा पर रवाना हो रहे हैं. इस दौरान वो फ़लस्तीन के वेस्ट बैंक में मौजूद रामल्लाह जाएंगे.

By BBC News हिन्दी
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मोदी और महमूद अब्बास
PRAKASH SINGH/AFP/Getty Images
मोदी और महमूद अब्बास

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को फ़लस्तीन, संयुक्त अरब अमीरात और ओमान की यात्रा के लिए रवाना हो रहे हैं. इस दौरान वो 10 फरवरी को फ़लस्तीन के वेस्ट बैंक में मौजूद रामल्लाह जाएंगे.

हाल में भारतीय प्रधानमंत्री ने इसराइल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू से मुलाक़ात की थी, जिसके बाद माना जा रहा है कि फ़लस्तीनी की उनकी यात्रा उनकी विदेश नीति के बारे में काफी कुछ कहती है.

बीते महीने इसराइली प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू और उनकी पत्नी भारत दौरे पर आए थे. इस दौरान अहमदाबाद के साबरमति आश्रम में चरखा चलाने की उनकी और उनकी पत्नी की तस्वीरें हमारे ज़ेहन में अभी भी ताज़ा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चार दिवसीय तीन देशों के दौरे का पहला पड़ाव होगा फ़लस्तीन जहां वो राष्ट्रपति महमूद अब्बास से मुलाकात करेंगे और यासिर अराफात की याद में बने म्यूज़ियम में भी जाएंगे.

इसराइल और फलस्तीन के बीच जारी गतिरोध में उनकी इस यात्रा को बेहद अहम माना जा रहा है.

भारत के पूर्व राजनयिक और संयुक्त राष्ट्र उप महासचिव रह चुके चिनमय गरेख़ान कहते हैं, "वहां से हमारे देश में कच्चे तेल की सप्लाई होती है, देश में होने वाली खपत का 60-70 फीसदी वहीं से आता है. बहुत से हिंदुस्तानी लोग वहां काम कर रहे हैं जो वहां से हमारे देश में पैसा भेजता हैं. उनका वेलफेयर हमारे लिए महत्व का विषय है. इस लिहाज़ ये इन देशों में जाना ज़रूरी है."

चिनमय गरेख़ान मानते हैं कि फ़लस्तीन और इसराइल के रिश्ते अच्छे नहीं हैं. वो कहते हैं, "ये भी देखना पड़ेगा कि जब मोदी रामल्लाह जाएंगे तो वहां कोई साझा डिक्लेरेशन निकलेगा या नहीं. अगर ऐसा कुछ हुआ तो देखना पड़ेगा कि उसमें ख़ास कर पूर्वी येरूशलम के बारे में कुछ कहा गया है कि नहीं. फलस्तीन चाहेंगे कि वो उसकी राजधानी पूर्वी येरूशलम में हो, जो कि इसराइल को बिल्कुल पसंद नहीं है."

हाल में अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने येरूशलम को इसलराइल की राजधानी मानने की घोषणा कर दी. संयुक्त राष्ट्र में यरूशलम को लेकर वोटिंग हुई तो भारत ने फलस्तीनियों के पक्ष में वोट दिया था. इससे पहले जुलाई 2015 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में इसराइल के ख़िलाफ़ निंदा प्रस्ताव की वोटिंग से ख़ुद को अलग रखा.

डोनल्ड ट्रंप
NICHOLAS KAMM/AFP/Getty Images
डोनल्ड ट्रंप

चिनमय गरेख़ान कहते हैं, "इसराइल हमसे नाराज़ हुआ था, उन्होंने हमारे ऊपर काफी दवाब डाला था कि भारत इस रेज़ोल्यूशन को सपोर्ट ना करे. लेकिन ये अच्छी बात है कि भारत में इस तरह से वोट डाला."

फ़लस्तीन इस तनाव में अमरीका की भूमिका बिल्कुल पसंद नहीं करता, "इस मामले में एक अंतरराष्ट्रीय ग्रुप बने जिसमें ऐसे देश हों जो इस मामले पर चर्चा करें. इन देशों की सूची में फलस्तीन ने भारत का नाम शामिल किया है."

हालांकि वो कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि ऐसा ग्रुप बनेगा क्योंकि आखिर में जा कर इसराइल पर कौन प्रेशर डाल सकता है. अमरीका ऐसा कर सकता है लेकिन मौजूदा राष्ट्रपति ट्रंप वो ऐसा करेंगे नहीं. तो ये मसला कभी सुलझने वाला नहीं है."

यासिर अराफ़ात
BBC
यासिर अराफ़ात

भारत की विदेश नीति के बारे में मध्य-पूर्व में भारतीय राजदूत रहे तलमीज़ अहमद कहते हैं कि जब पिछले साल मोदी इसराइल गए थे तो इन दोनों को ले कर भारत का रवैया साफ़ कर दिया गया था.

वो कहते हैं, "वहां हमें समझाया गया था कि भारत का इसराइल और फ़लस्तीन के साथ रिश्ता डी-हाइफनेटेड हो जाएगा, यानी दोनों देशों के साथ हम अलग-अलग और स्वतंत्र रूप से संबंध बनाए रखेंगे. जब वो इसराइल गए तो फ़लस्तीन नहीं गए. लेकिन उनके इसराइल जाने से पहले फ़लस्तीन के प्रधानमंत्री महमूद अब्बास भारत आए थे."

"इसराइल के साथ हमरा रिश्ता रक्षा, तकनीकी और खेती से जुड़े समझौते हैं. फ़लस्तीन के साथ हमारे रिश्ते अलग हैं लेकिन हम उनकी ख्वाहिशों की इज्ज़त करते हैं."

तलमीज़ अहमद आगे कहते हैं, "लेकिन ये बात भी सच है कि इसराइल किसी भी शांति प्रक्रिया में हिस्सा लेना नहीं चाहता और भारत कभी भी ऐसी स्थिति में नहीं आएगा कि वो इस दिशा में कोई कदम उठा सके. अमरीका ने बिल क्लिंटन, जॉर्ज बुश, ओबामा के ज़माने में भी किसी कि ये हिम्मत नहीं हुई कि इसराइल पर कोई दवाब डाले."

इस मामले में भारत की विदेश नीति के बारे में चिनमय गरेख़ान कहते हैं, "भारत इस मामले में एक बैलेन्सिंग रोल कर रहा है. लेकिन अगर मोदी पिछले साल के जब इसराइल गए थे तो दो घंटे रामल्लाह से हो आते तो उन्हें अभी ऐसा करने की ज़रूरत नहीं पड़ती. कोई भी नेता जो इसराइल जाता है वो रामल्लाह भी ज़रूर जाता है, लेकिन हमारे प्रधानमंत्री उस वक्त इसराइल को शायद खुश करने के लिए रामल्लाह नहीं गए. पहले ऐसा कर लेते तो अभी वहां जाना नहीं पड़ता."

अपने विदेशी दौरों के लिए मोदी कई बार विपक्ष के निशाने पर आए हैं. विपक्ष आरोप लगा चुकी है कि कई देशों की यात्रा करने के बाद भारत में जिस तरह का विदेशी निवेश होने की उम्मीद थी वैसा हुआ नहीं.

मोदी की विदेश यात्रा
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मोदी की विदेश यात्रा

तलमीज़ अहमद कहते हैं, "प्रधानमंत्री संयुक्त राज्य अमीरात जा रहे हैं जहां 12 समझौतों पर हस्ताक्षर होंगे. वहां भारत कुछ राजनयिक कदम भी उठा सकता है. ओमान के साथ हमारे काफी पुराने ताल्लुकात हैं और वहां पर हमारी बहुत बड़ी कम्युनिटी है और उनके साथ हमारे गाढ़े रिश्ते हैं."

वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि हमें वहां भारतीय महासागर के बारे में बात करनी चाहिए. ये एक ऐसी जगह है जहां किसी तरह की कोई संस्था नहीं है जहां अब धीरे-धीरे प्रतियोगिता बढ़ रहा है. यहां कई देशों की नौसेना पहुंच रही है- भारत, अमरीका, यूरोपीय देशों की सेनाएं और चीन वहां पर हैं. लेकिन वहां पर ऐसी कोई संस्था नहीं जहां सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की जा सके."

"मुझे लगता है कि इंडियन रिम एसोसिशन में हमारे सहयोगी जिनमें ओमान और संयुक्त राज्य अमीरात शामिल हैं - को रिफॉर्म कर के उसे एक ऐसे मंच बनाया जाना चाहिए जहां मुद्दों पर बात की जा सके."

मोदी के इस दौरे से जहां फिलस्तीन में खुशी है, इस पर अब तक इसराइल की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.

माना ये जा रहा है कि उनके इस दौरे में कई अहम समझौतों पर हस्ताक्षर होंगे. लेकिन इसके बाद सीधे तौर पर भारत को कितना फायदा होगा और भारत के संबंध इनके साथ और कितने गहरे होंगे ये तो आने वाला वक्त बताएगा.

BBC Hindi
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English summary
What will Modi get from the Palestine tour
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