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कन्हैया कुमार के सभाओं की भीड़ पटना में आ गई तो क्या होगा?

शुक्रवार की रात को दस बजने वाले थे. पूरा भागलपुर शहर सोने की तैयारी कर रहा था. सड़क की हलचल शांत होने लगी थी. भागलपुर के हबीबपुर, नाथनगर और चंपानगर जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों के अधिकांश घरों को दरवाजे बंद हो चले थे. लेकिन सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ दिल्ली के शाहीन बाग़ की तर्ज पर हबीबपुर में धरना पर बैठी महिलाओं में जोश बढ़ता जा रहा था  

By नीरज प्रियदर्शी
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कन्हैया कुमार की जनसभा
Rakesh Kumud, Neeraj Priyadarshy
कन्हैया कुमार की जनसभा

"मैं उन औरतों को

जो अपनी इच्छा से कुएं में कूदकर और चिता में जलकर मरी हैं

फिर से ज़िंदा करूँगा और उनके बयानात..."

रमाशंकर यादव ' विद्रोही' की कविता 'औरतें' की ये लाइनें सुनकर भागलपुर के हबीबपुर में सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ 20 दिनों से धरने पर बैठी सैकड़ों महिलाएं समवेत स्वर में तालियां बजाने लगती हैं.

शुक्रवार की रात को दस बजने वाले थे. पूरा भागलपुर शहर सोने की तैयारी कर रहा था. सड़क की हलचल शांत होने लगी थी. भागलपुर के हबीबपुर, नाथनगर और चंपानगर जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों के अधिकांश घरों को दरवाजे बंद हो चले थे. लेकिन सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ दिल्ली के शाहीन बाग़ की तर्ज पर हबीबपुर में धरना पर बैठी महिलाओं में जोश बढ़ता जा रहा था क्योंकि उनके बीच कन्हैया कुमार के कुछ साथी मौजूद थे, जो इप्टा के सदस्य हैं, साथ ही कन्हैया कुमार की यात्रा के सहभागी भी हैं.

कन्हैया कुमार इस वक्त सीएए, एनआरसी और एनपीआर के ख़िलाफ़ एक यात्रा कर रहे हैं. इस यात्रा को नाम दिया गया है: 'जन-गण-मन यात्रा'. बिहार के सभी 38 ज़िलों में यह यात्रा सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ लोगों को एकजुट करने के लिए की जा रही है.

कन्हैया कुमार की जनसभा
Rakesh Kumud, Neeraj Priyadarshy
कन्हैया कुमार की जनसभा

शुक्रवार को कटिहार से होते हुए यात्रा भागलपुर पहुंची, जहां शाम को चंपानगर के नीलमही मैदान में एक सभा का भी आयोजन हुआ जिसमें करीब एक लाख से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया.

सभा ख़त्म करने के बाद कन्हैया हबीबपुर के एक गेस्ट हाउस में ठहरे थे. साथी यात्रियों के साथ मिलकर अगले दिन की यात्रा और सभाओं की प्लानिंग कर रहे थे.

हबीबपुर में धरने पर बैठी महिलाओं की तरफ़ से कन्हैया के लिए प्रदर्शन में शामिल होने का बुलावा आया था. लेकिन स्थानीय पुलिस कन्हैया को रात में बाहर जाने से रोक रही थी क्योंकि इसके पहले यात्रा के दौरान कई दफे उनके काफ़िले पर हमले और पथराव की घटनाएं घट चुकी थी़ं.

पुलिस की बात मानकर कन्हैया ख़ुद तो नहीं गए महर उन्होंने यात्रा में साथ चल रहे पार्टी की कल्चरल टीम को वहां भेज दिया.

कन्हैया के नहीं आने की ख़बर सुनकर हबीबपुर में धरना पर बैठी महिलाओं को चेहरे पर थोड़ी देर के लिए उदासी जरूर छा गई थी, लेकिन इप्टा के कलाकारों ने जनवादी गीतों और कविताओं से तुरंत ही उन महिलाओं के चेहरे पर चमक पैदा कर दी.

उनके नारों और गीतों पर खुश होकर वे ज़ोर-ज़ोर से मुट्ठी बांधे हाथ उठाकर 'इंक़लाब ज़िंदाबाद' के नारे लगा रही थीं. थोड़ी ही देर में प्रदर्शन स्थल पर इतने लोग जमा हो गए कि जब तालियां बजाते तो लग ही नहीं रहा था कि वहां कन्हैया कुमार मौजूद न हों.

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कन्हैया कुमार की जनसभा
Rakesh Kumud, Neeraj Priyadarshy
कन्हैया कुमार की जनसभा

हमारे पूछने पर धरने में सबसे आगे की पंक्ति में बैठी एक महिला कहती हैं, "हमलोग इस बात को समझते हैं कि कन्हैया जी क्यों नहीं आए. उन्हें अभी और भी बहुत जगह जाना है. ऊपर से सुरक्षा का भी मसला है. लेकिन उन्होंने अपने दूत हमारे बीच भेजे हैं ये ही हमारे लिए कम बड़ी बात नहीं है."

कन्हैया कुमार के साथ उनकी यात्रा में हम कटिहार से शामिल हुए जहां दिन के 11 बजे राजेंद्र स्टेडियम में उन्होंने एक सभा को संबोधित किया. फिर वहां से चलकर भागलपुर आए और वहां भी एक सभा की.

गांधी के शहादत दिवस यानी 30 जनवरी को शुरू हुई कन्हैया की यह यात्रा उसी दिन सुर्खियों में आ गई थी जब चंपारण के भितिहरवा गांधी स्मारक स्थल में कन्हैया को जाने से रोक दिया गया था और सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए कथित तौर पर पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया था.

पुलिस ने उन्हें उस दिन सभा करने की इजाजत नहीं दी लेकिन थोड़ी ही देर में कन्हैया को हिरासत से मुक्त भी कर दिया जिसके बाद कन्हैया गांधी आश्रम के बाहर ही अपने समर्थकों को संबोधित किया और वहीं से यात्रा की शुरुआत कर दी.

यात्रा के दौरान आगे कन्हैया के काफ़िले पर कई बार हमले हो चुके हैं.गोपालगंज और छपरा में पत्थरबाजी की घटनाएं भी घट चुकी हैं जिनमें यात्रा में शामिल तीन यात्रियों को चोटें आईं. यात्रा में शामिल गाड़ियों को भी नुक़सान हुआ था.

कटिहार की सभा करने के बाद भी जब कन्हैया अपने काफ़िले के साथ भागलपुर निकल रहे थे तब कुछ लोगों के समूह ने शहीद चौक पर उनका बहिष्कार किया. कन्हैया की गाड़ी की तरफ़ चप्पल भी फेंके गए. बावजूद इसके कन्हैया की यात्रा रुकी नहीं है और ना ही यात्रा के शेड्यूल में कोई बदलाव आया है.

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कन्हैया कुमार की जनसभा
Rakesh Kumud, Neeraj Priyadarshy
कन्हैया कुमार की जनसभा

कन्हैया की टीम में उनके साथी पटना आर्ट्स एंड क्राफ़्ट कॉलेज के छात्र राकेश हर सभा में कन्हैया के संबोधनों के वीडियोज बनाते हैं, तस्वीरें खींचते हैं और उन्हें सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं.

सीएए और एनआरसी का विरोध कर रहे लोगों के खिलाफ़ जिस तरह का माहौल देश में बना है और जैसी घटनाएं घट रही हैं, क्या उन्हें इससे डर नहीं लग रहा है?

इसके जवाब में राकेश कहते हैं, "विरोध करने वाले लोग मुट्ठी भर हैं लेकिन हमें समर्थन लाखों लोगों का मिल रहा है. कहीं भी ऐसा नहीं हुआ कि हमला करने वाले 100 से अधिक की संख्या में आए हों, मगर हमारी सभाओं में लाखों लोग जुट रहे हैं. यही हमारी ताकत हैं. हम उन लोगों का भी जो हमपर हमला कर रहे हैं, सम्मान करते हैं. क्योंकि हम गांधी को मानने वाले लोग हैं. हम उनसे उलझना नहीं चाहते. बल्कि उन्हें अपने तरीके से समझाना चाहते हैं."

जहां तक बात कन्हैया की सभाओं में जुटने वाली भीड़ की है तो कटिहार और भागलपुर की सभा में तकरीबन एक लाख से अधिक लोग जुटे होंगे. राकेश और उनकी टीम ने ही मिलकर शाहीन बाग़ में तीन टन वजनी लोहे से भारत के नक्शे की प्रतिकृति बनायी है.

उन्होंने कहा, "हमलोग रोज दो सभाएं कर रहे हैं. अगर दोनों सभाओं में जुटी भीड़ को मिलाकर कहा जाए तो कन्हैया रोज़ कम से कम एक लाख लोगों को संबोधित करते हैं. और जहां सभा होती है वहां सैकड़ों लोग ऐसे होते हैं जो फ़ेसबुक और अन्य सोशल मीडिया पर कन्हैया के भाषण को लाइव करते हैं. जिससे और हज़ारों लोग हमारे साथ अप्रत्यक्ष रूप से जुड जाते हैं. हमें ऐसी 50 सभाएं करनी है और लोगों को जोड़ना है."

कन्हैया कुमार की जनसभा
Rakesh Kumud, Neeraj Priyadarshy
कन्हैया कुमार की जनसभा

कन्हैया की यह यह यात्रा 'संविधान बचाओ, नागरिकता बचाओ' रैली के लिए है, जो 29 फ]रवरी को पटना के गांधी मैदान में प्रस्तावित है. कन्हैया की टीम के साथियों के मुताबिक़ उस रैली में देश-विदेश के कला, सिनेमा और साहित्य जगत से जुड़ी सैकड़ों हस्तियां भी शामिल होंगे और यह लेफ़्ट की परंपरागत रैलियों से अलग बहुत सारे आयाम लिए होगी.

अपनी सभाओं में कन्हैया बार-बार लोगों से इस बात की अपील करते हैं कि वे 29 फ़रवरी को पटना के गांधी मैदान में शामिल हों और संगठित होकर विरोध करके सरकार पर दबाव बनाएं.

कन्हैया लगभग हर भाषण में कहते हैं, "हम 29 फरवरी को पटना में जमा होकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाएंगे. उनसे सीएए कानून वापस लेने को कहेंगे. उन्होंने पहले ही कह दिया है कि वे एक इंच पीछे नहीं हटेंगे. हम भी कहते हैं कि उन्हें एक इंच आगे नहीं बढ़ने देंगे. पहले नीतीश सरकार से एक अप्रैल को शुरू हो रहे एनपीआर को काम के ख़िलाफ़ प्रस्ताव लाने की मांग करेंगे और अगर वे भी नहीं मानेंगे तो हम गांधी का अनुसरण करते हुए इस सरकार के ख़िलाफ़ सविनय अवज्ञा आंदोलन करे़गे."

कन्हैया की इस यात्रा के आयोजक सीएए, एनआरसी और एनपीआर विरोधी संघर्ष मोर्चा है, जिसमें सैकड़ों संगठन शामिल हैं.

आयोजकों का दावा है कि कन्हैया की ज़िलों की सभाओं में जितनी भीड़ आ रही है, वो ही इतनी है जितनी आजकल गांधी मैदान में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की सभाओं में जुटती है.

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कन्हैया कुमार की जनसभा
Rakesh Kumud, Neeraj Priyadarshy
कन्हैया कुमार की जनसभा

कन्हैया की गांधी मैदान की प्रस्तावित रैली पर कुछ सवाल भी हैं.

पहला तो ये कि क्या कन्हैया इतनी भीड़ इकट्ठा कर पाएंगे? और दूसरा ये कि अगर दावे के अनुसार भीड़ आ गई तो क्या होगा?

पहला सवाल इसलिए क्योंकि इसके पहले भी कन्हैया कुमार गांधी मैदान में रैली कर चुके हैं. भीड़ तो तब भी जुटी थी मगर उतनी नहीं जितनी कि लेफ़्ट वालों का दावा था.

पटना में भीड़ जुटाने का सवाल इसलिए भी क्योंकि यात्रा के दौरान कन्हैया का विरोध भी देखने को मिल रहा है. अब तक जितनी जगह यात्रा हुई है, ऐसा कहीं नहीं हुआ जहां कि विरोध नहीं हुआ.

भीड़ जुटाने और नहीं जुटाने का सवाल इस बात पर भी निर्भर करता है कि कन्हैया को पुलिस और प्रशासन का किस हद तक सहयोग मिल पाता है.

कन्हैया के साथी राकेश कहते हैं, "जिस तरह से लोगों का समर्थन हमें मिल रहा है, हम उम्मीद करते हैं कि उस दिन पटना का कोना-कोना भर जाएगा. ऐसी रैली होगी जैसी गांधी मैदान में इसके पहले कभी नहीं हुई."

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कन्हैया कुमार की जनसभा
Rakesh Kumud, Neeraj Priyadarshy
कन्हैया कुमार की जनसभा

हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि ज़िलों में होनी वाली कन्हैया कुमार की सभाओं में लाखों लोग जुट जा रहे हैं. पूर्णिया में हुई उनका एक सभा सबसे ज़्यादा सुर्खियो में थी. ऐसा अनुमान लगाया गया था कि उस सभा में तीन लाख से अधिक लोग शामिल थे. बाकी की सभाओं के विजुअल और फुटेज भी स्पष्ट बताते हैं कि भीड़ बहुत ज्यादा जुट रही है.

अगर ये सारी भीड़ पटना में जुट जाएगी तो उसके बहुत सारे मायने होंगे.

ऐसा कहा जाता है कि गांधी मैदान में सबसे अधिक भीड़ जेपी के आंदोलन के समय उमड़ी थी. उस वक़्त न केवल पूरा गांधी मैदान बल्कि पटना शहर की अधिकांश सड़कें ब्लॉक थी. पुराने पत्रकार कहते हैं कि जेपी की रैली के समय जहां देखो लोग ही लोग नज़र आते थे.

वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि "कन्हैया अगर अपने उम्मीद के मुताबिक भीड़ इकट्ठा कर लेते हैं तो वे बिहार के विपक्ष के आंख की किरकिरी बन सकते हैं. इस वक्त बिहार का विपक्ष वैसे भी टूटा सा लग रहा है और यह बात कन्हैया बख़ूबी समझ रहे हैं. बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव भी है. इस लिहाज से भी पटना की रैली बहुत मायने रखती है. तब बहुत से समीकरण बनेंगे, बिगड़ेंगे."

जहां तक बात विधानसभा चुनाव की है तो कन्हैया के भाषणों से भी इसकी तस्दीक हो सकती है कि कन्हैया इस यात्रा में केवल एनआरसी, एनपीआर और एनआरसी की ही बात नहीं कर रहे हैं. वो स्थानीय मुद्दों पर भी खूब बोल रहे हैं.

कन्हैया के भाषणों में सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा की बातें तो होती ही हैं, साथ ही वे ऐसे मुद्दों को भी उठा रहे हैं जो अभी प्रदेश में ज्वलंत हैं.

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कन्हैया कुमार की जनसभा
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कन्हैया कुमार की जनसभा

कटिहार की सभा में भी कन्हैया ने शिक्षकों के लिए समान काम के बदले समान वेतन की मांग की, नगर निगम के सफ़ाई कर्मचारियों के हड़ताल पर बात की, कटिहार की सड़कों की खस्ताहाल के बारे में बताया और नौजवानों के लिए रोज़गार का मसला भी उठाया.

कन्हैया के भाषणों की सबसे खास बात उनकी हाज़िरजवाबी और शैली है. पेंशन की बात करते हुए वे मंच से नीचे सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों से पूछते हैं, "क्या जी, आपको पेंशन मिलता है?" पुलिसकर्मी जवाब देते हैं, "नहीं".

इस बात पर कन्हैया मंच पर बैठे कांग्रेस विधायक शकील अहमद खान की तरफ देखते हुए पूछते हैं, " क्या विधायक जी आपको तो पेंशन मिलता है न?" विधायक हां के अभिवादन में सिर हिला देते हें. पूरी सभा ठहाकों से गूंज जाती है. कन्हैया आगे पुलिस वालों की तरफ देखते हुए कहते हैं, " जानते हैं आपको पेंशन क्यों नहीं मिलता, और विधायक साहब को क्यों मिलता है, क्योंकि ये सरकार हैं. "

कन्हैया से हमनें अलग से बात करने की बहुत कोशिशें की. मगर सुरक्षा कारणों से वे यात्रा के दौरान अलग समय देने को तैयार नहीं हो रहे थे.

सुरक्षा का मसला इतना महत्वपूर्ण है कि कन्हैया की कोर टीम के अलावा और किसी को मालूम भी नहीं रहता कि काफ़िला किस रास्ते से और कहां गुजरने वाला है. यहां तक कि किसी को ये भी नहीं बताया जाता कि वे रात्रि-विश्राम कहां करने वाले हैं. कन्हैया जहां रुकते हैं वहां की व्यव्स्था इतनी चाक-चौबंद रहती है कि बिना कार्ड के अगर उनके साथी भी मिलना चाहें तो पुलिसवाले मिलने नहीं देते.

कन्हैया की यह यात्रा कितनी सफल हो पाएगी और आने वाली 29 फ़रवरी को पटना में कितनी भीड़ जुटा पाएगी, यह तो वक्त बताएगा लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कन्हैया सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ पूरे देश सबसे बड़ी राजनीतिक आवाज बनकर उभरे हैं.

कन्हैया कुमार की जनसभा
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कन्हैया कुमार की जनसभा

कन्हैया के साथ चलने वाले साथी डीके धीरज कहते हैं, "पहाड़ (दार्जिलिंग) से लेकर समुद्र (बंगाल) तक हम लोगों के बीच पहुंचे हैं. कन्हैया एकमात्र ऐसे राजनेता हैं जो पहले दिन से इस कानून के ख़िलाफ सड़क पर हैं. जब यह कानून नहीं बना था, तभी 15 अगस्त 2019 को ही हमलोगों ने कोलकाता की सड़कों पर निकलकर इसका विरोध किया था. बंगाल में वह विरोध आज भी उतनी ही मजबूती के साथ हो रहा है."

एक ख़बर यह भी है कि 29 फ़रवरी को पटना में होने वाली कन्हैया कुमार की गांधी मैदान की प्रस्तावित रैली को आयोजन की अनुमति नहीं मिली है.

आयोजकों की मानें तो बातचीत अभी भी चल रही है, स्थानीय प्रशासन ने उस दिन गांधी मैदान में जदयू को सम्मेलन करने की अनुमति दे दी है, जबकि आयोजकों के अनुसार उन्होंने अपना प्रस्ताव पहले भेजा था.

BBC Hindi
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English summary
What will happen if the crowd of Kanhaiya Kumar's meetings comes to Patna?
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