UP में पुलिस कमिश्नरों की तैनाती के बाद अब क्या करेंगे DM, जानिए
नई दिल्ली- उत्तर प्रदेश के दो जिलों में सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता करने के इरादे से पुलिस कमिश्नरों की तैनाती से एक सवाल उठ रहा है कि अब लखनऊ और गौतमबुद्ध नगर यानि नोएडा के जिलाधिकारियों (डीएम) के पास क्या अधिकार रह जाएंगे? क्योंकि, कानून-व्यवस्था बहाल रखने की पूरी जिम्मेदारी तो अब राज्य सरकार ने इन दोनों जिलों में तैनात किए गए डीएम से दो रैंक ऊपर के पुलिस कमिश्नरों और बाकी आला आईपीएस अधिकारियों को सौंप दिए हैं। आइए जानते हैं कि इन दोनों जिलों के डीएम के पास अभी भी कौन से महत्वपूर्ण अधिकार बचे हुए हैं और पुलिस कमिश्नरी बनाए जाने से कैसे कानून-व्यवस्था में सुधार आने की उम्मीद बढ़ गई है।
नोएडा और लखनऊ में पहले क्या व्यवस्था थी?
उत्तर प्रदेश के बाकी जिलों में अभी भी यह व्यवस्था है कि पुलिस अधीक्षक (एसपी) को लॉ एंड ऑर्डर के ज्यादातर मामलों में संबंधित जिलाधिकारी (डीएम) से इजाजत लेनी पड़ती है। अभी तक लखनऊ और नोएडा में भी यही व्यवस्था थी, लेकिन, दोनों शहरों में एडीजी रैंक के पुलिस अधिकारी की पुलिस कमिश्नर के तौर पर तैनाती होने के बाद यह व्यवस्था पूरी तरह से बदल गई है। क्योंकि, पुलिस कमिश्नरों के पास मैजिस्ट्रेट के भी अधिकार होते हैं। इस बदलाव की अहमियत बताते हुए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है, 'यह दंगाइयों और उपद्रवियों के लिए बुरी खबर है, क्योंकि अब पुलिस को सख्ती के इस्तेमाल के लिए मैजिस्ट्रेट के इंतजार करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अब पुलिस दंगाइयों, उपद्रव करने वालों और साधारण आदमी और पुलिस पर हमला करने वालों और सार्वजनिक संपत्ति को तबाह करने वालों से सीधे निपटेगी। " बता दें कि जिन जिलों में पुलिस कमिश्नर नहीं होते वहां हिंसक भीड़ को नियंत्रित करने के लिए एसपी को भी फायरिंग के आदेश देने के अधिकार नहीं होते, बल्कि यह अधिकार मैजिस्ट्रेट के पास होती है, जो जिलाधिकारी के नीचे के सिविल अधिकारी होते हैं। लेकिन, पुलिस कमिश्नर को मैजिस्ट्रेट के भी अधिकार मिल जाते हैं।
पुलिस कमिश्नरों की तैनाती के बाद आया बदलाव
यूपी सरकार के फैसले के मुताबिक लखनऊ और नोएडा दोनों शहरों में एडीजी रैंक के पुलिस अफसरों को पुलिस कमिश्नर के तौर पर तैनात किया गया है। इसके तहत आईपीएस सुजीत पांडे को लखनऊ और आलोक सिंह को गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) का पहला पुलिस कमिश्नर बनाया गया है। लखनऊ में पुलिस कमिश्नर के अलावा आईजी रैंक के दो अफसरों को ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर के तौर पर तैनाती की जाएगी। जबकि, नोएडा में पुलिस कमिश्नर की सहायता के लिए डीआईजी रैंक के दो अफसरों की तैनाती बतौर एडिश्नर कमिश्नर ऑफ पुलिस (एसीपी) की जाएगी। इसके अलावा एसपी रैंक के 9 आईपीएस अधिकारियों की भी तैनाती होगी। यही नहीं महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध के मामलों को देखने का जिम्मा एसपी रैंक की एक महिला आईपीएस को सौंपा जाएगा। जानकारी के मुताबिक हिंसक प्रदर्शनों के दौरान ऐसे कई मौके आए हैं, जब जिलाधिकारी की मंजूरी के इंतजार में पुलिस को कार्रवाई करने में देरी हुई है। लेकिन, पुलिस कमिश्नरी सिस्टम लागू होने के बाद वैसी स्थिति आने की नौबत नही आएगी।
अब लखनऊ और नोएडा के डीएम क्या करेंगे?
लखनऊ और नोएडा में पुलिस कमिश्नरों की तैनाती की वजह से इन दोनों जिलों के जिलाधिकारियों (डीएम) के लॉ एंड ऑर्डर से जुड़े सारे अधिकार खत्म हो जाएंगे। अभी तक इन दोनों जिलों में सीआरपीसी के तहत सेक्शन 144 (शांति बहाल रखने के लिए लोगों को इक्ठा नहीं होने देने, हथियार लेकर नहीं चलने जैसी पाबंदी का अधिकार) और सेक्शन 107 (शांति बनाए रखने) जैसे अधिकार यहां के डीएम के हाथों में थे, लेकिन अब ये पॉवर पुलिस कमिश्नरों के पास चले गए हैं। इसके बाद इन दोनों जिलों के जिलाधिकारियों के पास क्या अधिकार रह जाएंगे? ये सवाल जब वन इंडिया ने रिटायर्ड आईएएस हृदय नारायण झा से किया तो उनका कहना था कि 'अभी भी यहां के जिलाधिकारियों के पास ही रेवेन्यू और सप्लाई जैसे विभागों की जिम्मेदारी रहेगी। यही नहीं, चुनाव कार्यों से जुड़ी जिम्मेदारी और जिले में विकास से जुड़े तमाम कार्यों की जिम्मेदारी भी कलेक्टरों के पास ही मौजूद रहेगी।' यही नहीं सरकारें जो भी नीतिगत फैसले लेगी उसे जमीन पर लागू करवाने से लेकर सभी तरह की कल्याणकारी योजनाओं से जुड़े तमाम जिम्मेदारियां भी कलेक्टर के पास ही रहेंगी।
पहले भी उठ चुकी थी पुलिस कमिश्नरी सिस्टम की मांग
बता दें कि पहले भी कई बार उत्तर प्रदेश के कुछ शहरों में पुलिस कमिश्नरों की बहाली पर विचार किया जा चुका था, लेकिन आईएएस-आईपीएस अधिकारियों के आपस में ही विवाद होने से इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। 2018 के दिसंबर में यूपी के तत्कालीन गवर्नर राम नाईक ने भी राज्य सरकार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में कानून-व्यवस्था की स्थिति सुधारने के लिए यह सिस्टम शुरू करने का सुझाव दिया था। नाईक ने तब राज्य के 20 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों मसलन, लखनऊ, कानपुर और गाजियाबाद में इसे लागू करने को कहा था। उनके मुताबिक तब देश में 19 शहरों की आबादी 20 लाख से ज्यादा थी, जिसमें यूपी के ये तीनों शहर शामिल थे।
यूपी के ये जिले भी बन सकते हैं पुलिस कमिश्नरी
बता दें कि लखनऊ और नोएडा से पहले देश के 15 राज्यों के 71 शहरों में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू था, जिसमें यूपी और बिहार के जिले नहीं थे। चर्चा है कि नोएडा और लखनऊ में पुलिस कमिश्नर सिस्टम की शुरुआत होने के बाद कानपुर, वाराणसी, गोरखपुर, आगरा, बरेली, अलीगढ़ और गाजिबाद जैसे यूपी के बड़े शहरों में भी पुलिस कमिश्नर सिस्टम शुरू की जा सकती है।
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