लगातार 15 वर्षों तक बिहार के डिप्टी CM रहे सुशील मोदी का क्या होगा राजनीतिक भविष्य?
नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के नतीजे में जैसे बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में आई है, तब से ही कयास लगाए जा रहे थे कि इस बार बिहार मंत्रिमंडल में नीकु और सुमो की जोड़ी टूटनी तय है। इसकी प्रमुख वजह बिहार में भाजपा को जदयू से मिली 31 अधिक सीट है, जिसकी पटकथा बिहार विधानसभा चुनाव से पूर्व ही लिखी जा चुकी थी और दिग्दर्शन एलजेपी-बीजेपी मिलीभगत से प्रदेश में जदयू को कमजोर हुई हालत से समझा जा सकता है।
7 ऐसी मजबूरी, जिसके चलते 31 सीट अधिक जीतकर भी बीजेपी को नीतीश को CM कुर्सी देनी पड़ी
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टूट गई 15 साल पुरानी सुशील मोदी और नीतीश कुमार की जोड़ी?
माना जाता है कि बीजेपी की शह पर चुनावी कैंपेन में जदयू चीफ चिराग पासवान ने नीतीश के खिलाफ आक्रामक रवैया अपनाया और बिहार में सत्तारूढ़ एनडीए सरकार का नेतृत्व कर रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शासन पर जबर्दस्त हमला किया। चूंकि सुशील मोदी और नीतीश कुमार की जोड़ी पिछले 15 वर्षों के कार्यकाल में सीएम और डिप्टी सीएम रही है इसलिए बीजेपी ने पहले इस जोड़ी को तोड़ने का निश्चय किया ताकि जदयू को छोटे भाई होने का संदेश दी जा सके और हुआ भी यही। इसके संकेत नीतीश कुमार ने सरकार बनाने का दावा पेश करने अकेले राज्यपाल फागू चौहान के पास चले गए।
बीजेपी को भाई का बड़ा ओहदा देकर 7वीं मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार
जदयू चीफ नीतीश कुमार बीजेपी को भाई का बड़ा ओहदा देकर ही बिहार में रिकॉर्ड 7वीं मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने पहुंचे है, जिसके लिए उन्होंने सुशील मोदी की कुर्बानी देनी पड़ी। सुशील मोदी पर आरोप लगता रहा है कि वह बिहार में बीजेपी को जदयू की पिछलग्गू बनाने में बड़ा योगदान है। बीजेपी आलाकमान के साथ सुशील मोदी के बारे में बनी यह छवि संभवतः इसी दिन का इंतजार कर रहा था और इस बार जदयू से ज्यादा सीट जीत कर बड़े भाई की हैसियत में पहुंची बीजेपी ने सबसे पहला काम यही किया है।
बीजेपी ने यह फैसला 2025 बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए लिया है
बीजेपी ने यह फैसला 2025 बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए लिया है जब बीजेपी अकेले दम पर बिहार में सरकार बनाने की हैसियत के लिए संगठन को बिहार में मजबूत करने की कोशिश में है। यही कारण है कि बीजेपी ने नए मंत्रिमंडल में बीजेपी कोटे के दो उप मुख्यमंत्री और विधानसभा स्पीकर पद के साथ एनडीए की सरकार बनवाने में कामयाब रही है। यह पहली बार है जब जदयू-बीजेपी गठबंधन सरकार में बीजेपी मनमानी करने की स्थिति में है वरना हर बार बीजेपी से ज्यादा सीट जीतने वाली जदयू ही बड़े भाई की भूमिका में हुआ करता था और सरकार गठन में उसकी मनमानी चलती थी।
बड़ा सवाल यह है कि सुशील का राजनीतिक भविष्य क्या होगा?
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि सुशील का राजनीतिक भविष्य क्या होगा। क्या बीजेपी उन्हें केंद्रीय नेतृत्व में शामिल करेगी या संगठन के कामों में लगाएगी। एक आसार यह भी हैं कि बीजेपी सुशील मोदी को सक्रिय राजनीति से रिटारमेंट भी करवा सकती है और उन्हें किसी प्रदेश में राज्यपाल बना कर भेज सकती है। बीजेपी आलाकमान ने ऐसा गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल के साथ कर चुकी है, जब उन्हें हटाकर विजय रूपानी की कुर्सी सौंप दी गई है और विजय रूपानी को उनकी जगह दी गई और उन्हें राज्यपाल बना दिया गया।
वर्ष 2012 में ही सुशील मोदी बीजेपी आलाकमान के किरकिरी बन गए थे
सुशील मोदी को बिहार की राजनीति से बाहर करने के लिए यह रणनीति बीजेपी आलाकमान ने तभी बनानी शुरू कर दी थी, जब वर्ष 2012 में सुशील मोदी ने नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री मैटेरियल बताकर सुशील मोदी एकाएक किरकिरी बन गए थे। नीतीश और सुशील मोदी की दोस्ती काफी मशहूर है और बिहार में 74 सीट जीतकर बीजेपी आलाकमान जैसा सांगठनिक विस्तार करना चाहती है, उसमें सुशील मोदी सबसे ज्यादा आड़े आते, क्योंकि वो नीतीश के खिलाफ नहीं जाते। यही कारण है कि उनके पर कतरे गए हैं, क्योंकि बीजेपी को पिछलग्गू नहीं, तगड़ा नेता चाहिए, जो बिहार में बीजेपी जमीन तैयार कर सके।
सुशील मोदी के राजनीतिक भविष्य को लेकर कोई निर्णय नहीं हुआ है
अभी तक बीजेपी आलाकमान ने सुशील में राजनीतिक भविष्य को लेकर कोई निर्णय नहीं किया है, क्योंकि बिहार में सरकार बनवाने के लिए बतौर पर्यवेक्षक पहुंचे राजनाथ सिंह ने भी सुशील मोदी को लेकर कुछ नहीं कहा। कहा जा रहा है कि बीजेपी आलाकमान सुशील मोदी को दिवंगत एलजेपी नेता राम विलास पासवान की जगह केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर सकती है, लेकिन नीतीश और सुशील की जय-वीरू की दोस्ती को देखते हुए इसमें दम नहीं नजर आता है, क्योंकि महागठबंधन सरकार में सीएम रहे नीतीश के साथ मकर संक्रांति पर दही-चूड़ा खाने वाले सुशील मोदी पर भरोसा जता पाएगी, कहना मुश्किल है।
बिहार में विस्तार के लिए भीतरघात का जोखिम नहीं लेना चाहती है बीजेपी
उल्लेखनीय है नीतीश कुमार और सुशील मोदी पिछले 15 वर्षो से एक साथ सरकार में रहे हैं और दोनों की दोस्ती ही सुशील मोदी की बिहार की राजनीति से बाहर होने की बड़ी वजह है, क्योंकि बीजेपी बिहार में बदले समीकरण में पार्टी के विस्तार के लिए कोई भीतरघात का जोखिम नहीं लेना चाहती है। नीतीश कुमार को पीएम मैटेरियल बताने के बाद से सुशील मोदी पर दिल्ली से कड़ी निगाह रखी जाती रही है।
बीजेपी अब तक चुप थी, क्योंकि वह बिहार में छोटे भाई की भूमिका में थी
यह वह समय था जब 2012 में नरेंद्र मोदी को पीएम कैंडीडेट घोषित करने की मुहिम चलाई जा रही थी। तब से सुशील मोदी से PM मोदी ही नहीं, सिपहसालार अमित शाह भी उनसे नाराज चल रहे है। इस दौरान सुशील मोदी ने न केवल नीतीश को पीएम मैटेरियल बताया था, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के कैंडीडेचर को लेकर नीतीश के साथ खड़े नजर आए थे। बीजेपी आलाकमान अब तक चुप रही थी, क्योंकि बीजेपी बिहार में छोटे भाई की भूमिका में थी, लेकिन अब समीकरण बदला है तो सबसे पहले सुशील मोदी ही शिकार हुए हैं, जिनके विरोधी बिहार बीजेपी नेता गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे भी हैं।