बेरोज़गारी से निपटने के लिए मोदी सरकार को क्या करना चाहिए?
जाने-माने अर्थशास्त्री कौशिक बसु का कहना है कि भारत में जिस तेज़ी से ग्रामीण खपत में कमी आई है और देश भर में बेरोजगारी की दर में बढ़ी है, उसे आपातकालीन स्थिति की तरह लिया जाना चाहिये. उनका मानना है कि रोजगार गारंटी जैसे अल्पकालीन उपायों के अलावा भारत को निवेश पर भी ध्यान देना होगा. उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा कि पिछले दो सालों से जो आंकड़े सामने आ रहे हैं
जाने-माने अर्थशास्त्री कौशिक बसु का कहना है कि भारत में जिस तेज़ी से ग्रामीण खपत में कमी आई है और देश भर में बेरोजगारी की दर में बढ़ी है, उसे आपातकालीन स्थिति की तरह लिया जाना चाहिये. उनका मानना है कि रोजगार गारंटी जैसे अल्पकालीन उपायों के अलावा भारत को निवेश पर भी ध्यान देना होगा.
उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा कि पिछले दो सालों से जो आंकड़े सामने आ रहे हैं, वो बता रहे हैं कि अर्थव्यवस्था की हालत बिगड़ रही है. एक समय भारत की वार्षिक विकास दर 9 प्रतिशत के आसपास थी. आज सरकार का अधिकृत तिमाही विकास दर का आंकड़ा 4.5 प्रतिशत है. जो चिंता का विषय है.
विश्व बैंक के सीनियर वाइस-प्रेसिडेंट और मुख्य आर्थिक सलाहकार पद पर काम कर चुके कौशिक बसु ने बीबीसी से कहा, "विकास दर का 4.5 प्रतिशत पर पहुंच जाना बेशक़ हमारी चिंता का विषय होना चाहिए लेकिन हरेक सेक्टर से जो माइक्रो लेबल के विस्तृत आंकड़े आ रहे हैं, वह कहीं ज़्यादा बड़ी चिंता का विषय है. हमें उस पर गौर करने की ज़रुरत है. हमें इसे दुरुस्त करने के लिए नीतिगत फैसले लेने होंगे."
अमरीका की कार्नल यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत 67 वर्षीय कौशिक बसु, 2017 से इंटरनेशनल इकॉनमिक एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं.
उन्होंने यूपीए सरकार के कार्यकाल में 2009 से 2012 तक भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार के तौर पर भी काम किया है. कौशिक बसु को 2008 में पद्मभूषण से सम्मानित किया जा चुका है.
क्या इसलिए भारत में बेरोजगारी बढ़ रही है?
क्या विनिवेश से भारत में बेरोज़गारी बढ़ने वाली है?
बेरोजगारी कैसे रुकेगी?
डॉ. बसु ने कहा, "ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों की औसत उपभोग में वृद्धि की बात तो छोड़िये, उसमें गिरावट आई है. पिछले 5 सालों में ग्रामीण भारत में औसत खपत में लगातार कमी आ रही है. 2011-12 और 2017-18 के बीच, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले भारतीयों के लिए खपत न केवल धीमी नहीं हुई है, बल्कि लगातार गिरती चली गई है. पांच साल पहले की तुलना में ग्रामीण क्षेत्र में प्रति व्यक्ति खपत में 8.8 प्रतिशत की कमी आई है. इसके साथ-साथ देश में गरीबी की दर में वृद्धि हो रही है. यह मेरे लिये अत्यंत गंभीर चिंता का विषय है."
उन्होंने कहा कि ग्रामीण इलाकों में खपत की कमी के आंकड़े उस तरह से लोगों का ध्यान आकर्षित नहीं कर पाते क्योंकि अधिकांश मीडिया और प्रेस, शहर केंद्रित हैं. लेकिन भारत की दूरगामी अर्थव्यवस्था के लिये ग्रामीण क्षेत्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं. उस पर हमें ध्यान देना होगा.
कौशिक बसु ने कहा, "अगर आप बेरोजगारी के आंकड़े देखेंगे तो यह 45 सालों में सर्वाधिक है. पिछले 45 सालों में कभी भी बेरोजगारी की दर इतनी अधिक नहीं रही. युवा बेरोजगारी की दर काफी अधिक है. 4.5 प्रतिशत का विकास दर कुछ चिंताजनक तो है लेकिन बेरोजगारी की दर में बढ़ोत्तरी और ग्रामीण खपत में कमी को आपातकालीन स्थिति की तरह लिया जाना जरुरी है. सरकार को तुरंत नीतिगत निर्णय लेने होंगे, जिससे दूरगामी नुकसान को रोका जा सके."
उन्होंने कहा कि भारत में लंबे समय से रोजगार की स्थिति ठीक नहीं है. 2005 से भारत की विकास दर हर साल, चीन के समान 9.5 प्रतिशत थी लेकिन रोजगार में बहुत तेज़ी से बढ़ोत्तरी नहीं हो रही थी. उसकी वजह से कुछ समय बाद तनाव की स्थिति पैदा होने लगी कि रोजगार के अवसर पैदा नहीं हो रहे हैं. इसके राजनीतिक परिणाम भी ज़रूर भुगतने होंगे. लेकिन पिछले दो सालों से जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था की हालत बिगड़ी है, उसके भी राजनीतिक परिणाम आएंगे.
कौशिक बसु ने कहा, "भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में जो गिरावट आई है, उस पर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है. अल्पकालिक उपाय के रूप में हमें ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना जैसे कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना होगा. विकास को पुनर्जीवित करने और इसे बेहतर ढंग से विस्तारित करने के लिए राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों के बारे में विचार करना होगा."
कैसे संभव है दीर्घकालिक विकास?
अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक नीतियों को लेकर कौशिक बसु ने कहा कि भारत में निवेश की दर में लगातार कमी आ रही है. 2008-2009 में जीडीपी के भीतर करीब 39 प्रतिशत हिस्सा निवेश का था. जो कम हो कर आज 30 प्रतिशत पर पहुंच गया है. निवेश दर को अख़बारों में भी नहीं छापा जाता क्योंकि इसकी चिंता केवल अर्थशास्त्रियों को है. लेकिन दीर्घकालिक विकास, निवेश से ही संभव है और इसमें राजनीति की बड़ी भूमिका है.
कौशिक बसु ने कहा, "लोगों में अगर आत्मविश्वास होगा, सहकारिता की भावना अधिक होगी, भरोसा ज्यादा है तो लोग निवेश करेंगे. वे भविष्य को सुरक्षित करेंगे. लेकिन अगर आप चिंतित हैं तो आप अपने पैसे को अपने पास रखना चाहेंगे. आप उसे अपनी तात्कालिक जरुरत पर खर्च करना चाहेंगे. इसलिये दीर्घकालीन नीति के लिये निवेश को लेकर हमें चिंता होनी चाहिए."
उन्होंने मोदी सरकार द्वारा भारत को 'फाइव ट्रिलियन डॉलर इकॉनामी' बनाये जाने के दावे को खारिज़ करते हुए कहा, "भविष्य में ऐसा हो सकता है लेकिन फाइव ट्रिलियन डॉलर इकॉनामी की अर्थव्यवस्था अगले 4-5 सालों में तो असंभव है क्योंकि इसकी गणना यूएस डॉलर के आधार पर होती है. अब तो विकास दर गिर कर 4.5 प्रतिशत पर पहुंच गई है, ऐसे में तो यह सवाल ही नहीं उठता."
उनका मानना है कि दीर्घकालीन अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिये नैतिक मूल्य अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. नैतिक मूल्य और उसके प्रति प्रतिबद्धता के बिना आर्थिक विकास संभव नहीं है. वे इसी विषय पर कोलकाता में एक महत्वपूर्ण व्याख्यान भी देने वाले हैं.
उन्होंने कहा कि लोगों के भीतर इस बात का नैतिक बोध होना चाहिए कि कोई व्यक्ति चाहे वह मेरे जैसा हो या न हो, उसके प्रति दया भाव हो. हमें ज़रूरतमंद लोगों तक पहुंचना चाहिए.
उन्होंने कहा, "आम आदमी को सोचना चाहिये कि मुझे पैसे जमा करने हैं, लेकिन नैतिक स्थिति में और नैतिक प्रतिबद्धता के साथ जीना है. यह दीर्घकाल के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है. नैतिकता, सदाचार और दीर्घकालिक विकास का आपस में गहरा संबंध है. ग़रीब व्यक्ति तक पहुंच कर ही हम एक अमीर राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं. मुझे उम्मीद है कि लोग इस नैतिक प्रतिबद्धता से जुड़ेंगे."
भारत की अर्थव्यवस्था मंदी से बस चंद क़दम दूर है?
मोदी सरकार सुस्त अर्थव्यवस्था को रफ़्तार क्यों नहीं दे पा रही
अर्थव्यवस्था के विरोधाभासी और संदेहास्पद आंकड़े?
पिछले कुछ सालों में अर्थव्यवस्था के विरोधाभासी और संदेहास्पद आंकड़ों को लेकर कौशिक बसु ने कहा, "मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिये, अगर भारत के आंकड़ों की विश्वसनीयता गिरती है तो यह बेहद दुखद होगा. मैं चार सालों तक वर्ल्ड बैंक में था, जहां दुनिया भर से आंकड़े आते थे. न केवल उभरती हुई अर्थव्यवस्था बल्कि विकसित अर्थव्यवस्था के बीच भारतीय आंकड़े हमेशा विश्वसनीय होते थे. भारतीय आंकड़ों को जिस तरह से एकत्र किया जाता था और जो सांख्यिकीय प्रणाली उपयोग में लाई जाती थी, वो उच्चतम स्तर की होती थी. वर्ल्ड बैंक में हम सभी इससे सहमत थे कि शानदार आंकड़े आ रहे हैं. हम उन आंकड़ों की पवित्रता का आदर करते थे. 1950 से बहुत ही व्यवस्थित तरीके का इस्तेमाल हो रहा था."
उन्होंने कहा कि कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां आंकलन बहुत मुश्किल है. रोज़गार का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि अमीर देशों में दो ही स्थितियां होती हैं- या तो आपके पास रोज़गार है या आप बेरोजगार हैं. लेकिन भारत में आप कई अनौपचारिक काम से जुड़े होते हैं. जिसका आंकलन मुश्किल है. जीवन के कुछ आयाम ऐसे होते हैं, जहां आंकलन करना आसान नहीं है.
कौशिक बसु ने कहा, "अगर हम कहें कि आंकड़ों में पारदर्शिता होनी चाहिए तो भारत इसके लिये ही तो जाना जाता रहा है. भारत में कुछ क्षेत्र जहां आंकलन का काम आसान है, वहां आंकड़े अच्छे हैं या बुरे हैं, उसे सार्वजनिक करना होगा. हमें स्वीकार करना होगा कि हां, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस-इस क्षेत्र में गिरावट है और हमें ज्यादा मेहनत करनी होगी."