जानिये फांसी के बाद शव को परिवार को सौंपे जाने पर क्या कहता है नियम
नागपुर। मुंबई धमाके के आरोपी याकूब मेमन को आज सुबह 6.30 बजे फांसी दे दी गयी। अब मेमन के शव को उनके परिवार को सौंपे जाने के बाद मेमन का अंतिम संस्कार किया जाएगा। लेकिन ऐसे में शव को परिवार को दिये जाने के बारे में जेल के नियमों को जानना काफी अहम हो जाता है। दरअसल जब किसी आरोपी को फांसी दी जाती है तो इसके बाद यह सुनिश्चत करना होता है कि शव के अंतिम संस्कार में किसी तरह की कानून-व्यवस्था ना बिगड़ने पाये।
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इस नियम के अनुसार जब किसी आरोपी को फांसी दी जाती है तो उसके शव के अंतिम संस्कार के लिए परिवार को एक लिखित दरख्वास्त देनी होती है। ऐसे में परिवार को यह भी लिखित पत्र देना होता है कि शव के अंतिम संस्कार के दौरान किसी भी तरह का प्रदर्शन नहीं किया जाएगा। लेकिन अगर सुप्रीटेंडेंट को ऐसा लगता है कि शव के अंतिम संस्कार के दौरान किसी तरह का प्रदर्शन हो सकता है को वह शव को परिवाक को सुपुर्द किये जाने की अपील को खारिज कर सकते हैं।
सुप्रीटेंडेंट इसके लिए शहर के डीएम से कानून व्यवस्था को सुनिश्चित करने के बाद इसका फैसला लेते हैं कि शव को परिवार को सौंपा जाए या नहीं। शव के अंतिम संस्कार के लिए यह डीएम की जिम्मेदारी होती है कि कानून-व्यवस्था को बरकार रखे।
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इस नियम के अनुसार आरोपी को फांसी दिये जाने के बाद उसके शव को पूरे सम्मान के सात जेल से बाहर भेजा जाता है। इसके लिए एंबुलेंस का इस्तेमाल के द्वारा उसे अंतिम संस्कार के स्थल पर पहुंचाया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया के खर्च को सुप्रीटेंडेंट वहन करते हैं जिसमें शव को अंतिम संस्कार स्थल तक पहुंचाने और अंतिम संस्कार की प्रक्रिया आती है। फांसी के दौरान परिवार को सूचित किया जाता है। आरोपी को फांसी दिये जाने के बाद उसके परिवार को इसकी सूचना दी जाती है। यह सूचना परिवार को टेलीग्राम के जरिये दी जाती है जिसमें लिखा होता है मृत्यु दंड।
- फांसी दिये जाने के समय सुप्रीटेंडेंट को इन बातों को सुनिश्चित करना होता है
- आरोपी के परिवार को दी गयी सूचना की प्रति की तारीख को रजिस्टर में दर्ज कराना।
- इसके बाद सुप्रीटेंडेंट की अनुमति में फांसी पर आखिरी अनुमति ली जाती है।
- कैदी और उसके परिवार को फांसी की तारीख और समय के बारे में सूचना दी जाती है।
- किसी भी आरोपी को राष्ट्रीय अवकास के दिन फांसी नहीं दी जा सकती है।