क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

उस लड़की पर क्या गुजरती है, जब कोई पीछा करता है

मैं कह सकती हूं कि उन दिनों से पहले मैं आज़ाद थी लेकिन उसके बाद तो जैसे किसी की निगरानी में कैद हो गई. मैं किसी बंद कमरे में कैद नहीं थी.

कहीं भी जा सकती थी, कुछ भी कर सकती थी लेकिन फिर भी एक मायने में नज़रबंद थी. बात तब की है जब मैं दिल्ली के एक स्कूल में आठवीं क्लास में पढ़ती थी.

हमारे स्कूल की छुट्टी होने पर बाहर लड़कों का तांता लगा रहता था. 

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
सांकेतिक तस्वीर
iStock
सांकेतिक तस्वीर

मैं कह सकती हूं कि उन दिनों से पहले मैं आज़ाद थी लेकिन उसके बाद तो जैसे किसी की निगरानी में कैद हो गई. मैं किसी बंद कमरे में कैद नहीं थी.

कहीं भी जा सकती थी, कुछ भी कर सकती थी लेकिन फिर भी एक मायने में नज़रबंद थी. बात तब की है जब मैं दिल्ली के एक स्कूल में आठवीं क्लास में पढ़ती थी.

हमारे स्कूल की छुट्टी होने पर बाहर लड़कों का तांता लगा रहता था. वो घूरते, गंदे कमेंट करते और लड़कियां उन्हें सुनकर, कभी विरोध करके आगे निकल जातीं.

उन दिनों मैंने देखा कि एक लड़का कुछ दिनों से मेरा पीछा कर रहा है. उसके साथ एक-दो दोस्त भी होते थे जो मुझे देखकर कभी इशारे करते तो कभी मुस्कुराते.

उस मुस्कुराहट से मेरी बैचेनी बढ़ जाती थी कि वो क्या सोच रहे हैं और क्या करने वाले हैं. धीरे-धीरे वो लड़का स्कूल से मेरे घर तक पहुंच गया.

मेरी गली के बाहर ही उसने डेरा डाल दिया. मैं खेलने निकलती तो वो घूरता रहता. बार-बार मेरी गली के चक्कर लगाता और मेरे घर के सामने से गाना गाते हुए निकलता.

अगर कोई पीछा करे, तो लड़कियां क्या करें

दिन था, मैंने फैशनेबल कपड़े नहीं पहने थे फिर भी...

मेरी धड़कनें बढ़ गईं...

एक बार गली की औरतों का भी उस पर ध्यान गया और वो मुंह चिढ़ाकर बोली, "होगी कोई, जिसके लिए आता है."

ये सुनते ही मेरी धड़कनें बढ़ गईं कि अगर इन्हें पता चल गया कि वो मैं हूं, तो फिर क्या होगा. मेरे पीछे कैसी बातें होंगी.

अब तो मैं ये सोचने लगी कि जब वो आए तो भगवान करे कोई आंटी घर के बाहर न हो. उसने कई बार मेरे सामने दोस्ती का प्रस्ताव रखा.

लेकिन मेरे बार-बार मना करने पर भी वो नहीं रुका. एक बार तो राह चलते हुए उसने मुझे धमकी तक दी, "मैं हां तो करवाकर रहूंगा."

अब वो उस 'हां' के लिए क्या करने वाला है, मैं नहीं जानती थी. वो और ज्यादा मेरी ज़िंदगी में घुसता गया.

उसने मेरी क्लास के लड़कों के जरिये मुझसे बात करने की कोशिश की और पूरी क्लास को उसके बारे में पता चल गया.

बचपन में 'गंदी हरक़त' के शिकार बच्चों कैसे मिले न्याय

मैं अब भी रात में अकेले बाहर जाती हूं: वर्णिका कुंडू

स्टॉकिंग, रेप, आत्महत्या
Thinkstock
स्टॉकिंग, रेप, आत्महत्या

जिंदगी का डरवाना हिस्सा

अब कुछ बच्चों को मुझे चिढ़ाने के लिए एक नाम मिल गया. मेरे सामने जानबूझकर उसका नाम लिया जाता और मेरी परेशानी का लुत्फ़ उठाया जाता था.

कुछ ही हफ्तों में वो मेरी जिंदगी का डरवाना हिस्सा बन गया. मैं जहां भी जाती वो मुझसे पहले मौजूद होता था.

मेरे ट्यूशन, स्कूल, मंदिर, बाजार, पार्क जाने का समय जैसे उसने अलार्म की तरह अपने​ दिमाग में फिट कर लिया था.

वह साये की तरह मेरा पीछा करता रहता और हर जगह मुझे घूरता रहता.

जहां मैं पहले घर से बेफि​क्री से निकलती थी अब गली के दोनों कोनों पर देखकर तसल्ली कर लेती थी कि कहीं वो तो नहीं बैठा है.

मुझे कहीं भी जाना होता तो पहले दिमाग में आता कि वो बाहर खड़ा होगा. अपने आस-पास देखती रहती कि कहीं अचानक से वो रास्ता न रोक ले.

अब वो बेफिक्री नहीं थी

हाथ पकड़कर बदतमीजी न कर दे. मैं लगातार एक खौफ में जी रही थी. मेरे दिमाग़ में यही चलता रहता कि अगर उसने ऐसा किया तो मुझे क्या जवाब देना चाहिए.

मुझे उस वक्त क्या करना चाहिए. ऐसा भी कई बार हुआ कि मैं अपनी सहेलियों के साथ हंसने से भी डरती थी कि कहीं वो ये न समझ ले कि मैं उसे देखकर हंस रही हूं.

वो भी फ़िल्मों की तरह ये न मान ले कि हंसी तो फंस ही गई. सोच कर देखें कि कोई अगर थोड़ी देर भी आपको घूरकर देखता है तो बेचैनी होने लगती है.

आपकी हर छोटी-बड़ी एक्टिविटी पर नज़र रखता है तो आप परेशान होकर उसे टोक देते हैं. लेकिन, मैं ऐसा कुछ नहीं कर सकती थी.

वो किसी कैमरे की तरह मेरी हर हरकत पर नजर रखता था. ज़िंदगी बहुत अनिश्चित हो गई थी. वो कब क्या कर देगा मुझे नहीं पता था.

मैं हमेशा सावधान और डरी हुई ही बाहर निकलती थी. फिर जब पीछा करने से बात नहीं बनी तो उसने मेरे ही पड़ोस के लड़के से मेरा लैंडलाइन नंबर ले लिया.

जब मां को बताया

अब एक नई समस्या शुरू हो गई. वो बार-बार फोन करने लगा. मैं जब भी फोन उठाती तो अपनी बात कहने लगता और मैं रॉन्ग नंबर कहकर फोन काट देती.

लेकिन, उसके फोन का डर इतना था कि मैं रिसीवर को इस तरह रखती कि बहुत समय तक फोन बिजी बताए.

मुझे डर लगता था कि मैं घर में क्या बताऊंगी कि किसका फोन है. उसके बाद मुझे सारी बातें बतानी पड़ेंगी. मुझे घर पर ये सब बताने में डर लगता था.

पहले कभी ऐसा मामला नहीं हुआ था. मुझे पता था कि घरवाले डर जाएंगे. मैं एक सामान्य परिवार से थी और वो लड़का कुछ दबंग था.

मेरे घरवाले इतने मजबूत नहीं थे कि उसे डरा धमका पाएं और पुलिस के पास जाने का तो दूर-दूर तक ख्याल ही नहीं था.

जितना हो सका मैंने उस खौफ, गुस्से और अपमान को सहन किया. लेकिन, जब तनाव बहुत बढ़ गया तो मैंने एक दिन अपनी मां को इस बारे में बताया.

पुलिस में शिकायत

सुनते ही मेरी मां के चेहरे पर शिकन आ गई. वो कुछ देर तक चुप रहीं और फिर बोलीं कि 'तू मंदिर और ट्यूशन जाने का रास्ता बदल दे.'

मुझे ये सुनकर बहुत तेज गुस्सा आया कि इससे क्या होगा. वो क्या दूसरे रास्ते पर नहीं आ सकता. इस सबके बाद हुआ ये कि मेरी मां मुझे स्कूल लेने आने लगीं.

मैं कहीं भी जाती तो किसी को साथ लेकर जाने के लिए कहने लगतीं. वो भी मुझे बहुत असहाय नजर आतीं. बेटी के लिए क्या करें, उन्हें नहीं पता था.

फिर निराश होकर मैंने भी घर में बताना बंद कर दिया. इसके बाद मैंने दसवीं पास की और फिर मेरा स्कूल बदल गया जो घर से दूर था.

मुझे लगा था कि शायद वो इतना दूर नहीं आएगा लेकिन पीछा करना अब भी चलता रहा. अब मैंने पुलिस में शिकायत करने की ठान ली.

उम्र बढ़ने के साथ अब तक कुछ हिम्मत भी आ चुकी थी. लेकिन, पुलिस का रवैया चारों तरफ से निराश करने वाला था.

माफी मांगने के बाद...

उन्होंने मेरी शिकायत तक दर्ज करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. उन्होंने पहले मुझ पर कई सवाल दाग दिए. जैसे मैंने पहले शिकायत क्यों नहीं की?

क्या मैंने उसे मना किया था? मेरा नंबर उसके पास कैसे पहुंचा? फिर उन्होंने लिखित शिकायत दर्ज करने की बजाय बातचीत से मामला सुलझाने पर जोर दिया.

लेकिन, मैंने जबरदस्ती लिखित में शिकायत दी. उस लड़के को पुलिस थाने बुलाया गया लेकिन माफी मांगने के बाद उसे छोड़ दिया.

मुझे भरोसा मिला कि वो अब पीछा नहीं करेगा. कुछ दिन के लिए सब ठीक भी रहा. मेरी सांस में सांस आई. अब वो स्कूल और घर के आस-पास नहीं दिखता था.

लेकिन, ये ज्यादा दिनों तक नहीं चला और वो फिर से मेरा पीछा करने लगा. मैं फिर पुलिस के पास गई.

लेकिन उन्होंने एक बार भी उसके घर आने और जांच करने की जहमत नहीं उठाई. अब आगे क्या ये मुझे नहीं पता था. सबकुछ वैसे ही चलता रहा.

मेरी किस्मत अच्छी थी...

तीन सालों तक वह साये की तरह मेरा पीछा करता रहा और मैं उस घुटन में जीती रही.

लेकिन, अंत में शायद मेरी किस्मत अच्छी थी कि उसने खुद मेरा पीछा करना कम कर दिया.

कभी सामने पड़ने पर ज़रूर पीछे-पीछे चला आता पर पहले जैसी परेशानी नहीं थी.

पर जब भी मैं एक तरफा प्यार में होने वाले अपराधों के बारे में पढ़ती हूं ​तो लगता है कि बहुत हैरानी नहीं कि मैं भी एसिड अटैक या हत्या की शिकार हो गई होती.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
What passes on that girl when someone chases
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X