प्रशांत किशोर को बगल वाली कुर्सी पर बैठाकर नीतीश ने दिए क्या संदेश?
पटना। नीतीश कुमार के मन की थाह लेना बहुत मुश्किल है। राजनीति में उनका अगला कदम क्या होगा, निकट सहयोगियों को भी मालूम नहीं होता। लालू यादव अक्सर कहते रहे हैं कि नीतीश के पेट में दांत है। यानी नीतीश की तरफ से आने वाल खतरा दिखायी नहीं पड़ता। वे शांत रहते हैं। कभी उग्र नहीं होते। लेकिन अपना काम कर जाते हैं। वे आत्मकेन्द्रीत राजनीतिज्ञ हैं। अपनी पहचान के लिए हमेशा सजग रहते हैं। राजनीति को साधने का उनका अपना तरीका है। ये बात जदयू और भाजपा दोनों के लिए मौजू है। वे भाजपा के साथ हैं लेकिन रह-रह नसीहतों की घुट्टी पिलाते रहते हैं। अब उन्होंने धारा 370, यूनिफॉर्म सिविल कोड और राम मंदिर के मुद्दे पर और भी कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है। दूसरी तरफ जब जदयू में कुछ नेताओं ने उड़ने की कोशिश तो उन्होंने पर कतरने में देर न की।
घटनाक्रम पर नीतीश की नजर
जब लोकसभा चुनाव में नीतीश ने उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर को दरकिनार कर दिया तो आरसीपी सिंह और ललन सिंह का पलड़ा भारी हो गया। ये लोग प्रशांत किशोर को चुका हुआ चौहान बताने लगे। इस बीच जब प्रशांत किशोर ने जब ममता बनर्जी का चुनावी रणनीतिकार बनना मंजूर कर लिया तो उन पर हमला और तेज हो गया। मंत्री और पार्टी प्रवक्ता नीरज कुमार ने सीधे-सीधे प्रशांत किशोर पर हमला बोल दिया। चूंकि नीतीश ने पार्टी में जड़ जमा रहे कुछ नेताओं को हैसियत बताने के लिए प्रशांत किशोर को प्रमोट किया था। इस लिए गुटबाजी शुरू हो गयी थी। जब लोकसभा चुनाव में जदयू की शानदार जीत हुई तो पार्टी का एक गुट प्रशांत किशोर को खारिज करने लगा। कहा जाता है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए पार्टी के दो बड़े नेता आरसीपी सिंह और ललन सिंह होड़ कर रहे थे। नीतीश ने कैबिनेट से अलग रहने की चाल चल दी। वे सब कुछ देख रहे थे लेकिन कुछ बोल नहीं रहे थे।
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फूट डालो, राज करो
अंग्रेजों ने कभी भारत में सत्ता सुरक्षित रखने के लिए फूट डालो, राज करो की नीति अपनायी थी। नीतीश अब दलीय गुटबाजी को खत्म करने के लिए इस नीति पर अमल कर रहे हैं। पटना में जब जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई तो सबकी नजरें इस बात पर ठिकी थीं कि नीतीश, प्रशांत किशोर पर क्या फैसला लेते हैं। बैठक में जब नीतीश ने प्रशांत किशोर को नम्बर दो की कुर्सी पर जगह दी तो विरोधी गुट के चेहरे पर मुर्दानी छा गयी। प्रशांत किशोर ठीक नीतीश की दायीं और बैठे। बायीं तरफ प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह बैठे। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव आरसीपी सिंह को हैसियत से कुछ कम जगह मिली। नीतीश ने आरसीपी सिंह, ललन सिंह समेत उन तमाम नेताओं को संकेत दे दिया कि फिलहाल प्रशांत किशोर की क्या स्थिति है। प्रशांत किशोर ने ममता के मुद्दे पर कोई सफाई नहीं दी। उनका कद फिर बड़ा हो गया। इसके पहले नीतीश ने प्रशांत की अनदेखी कर उनको शरणागत किया। फिर प्रशांत को खड़ा कर उनके विरोधी गुट को झुकाया। यानी जदयू में वही होगा जो नीतीश चाहेंगे। जो उड़ेगा वो नीचे गिरेगा।
भाजपा से लुका- छिपी का खेल
नीतीश का भाजपा से कोई भावनात्मक लगाव नहीं है। वे भाजपा को सियासी मकसद साधने का एक जरिया भर मानते हैं। अभी वे नरेन्द्र मोदी की लाख हिमायत करें, लेकिन पुरानी टीस अब भी बरकरार है। मोदी सीएम से पीएम बन गये, ये बात उनके दिमाग में हमेशा कौंधती रहती है। नीतीश भी अब विस्तार चाहते हैं। वे जदयू को बिहार से बाहर जमाना चाहते हैं। अरुणाचल प्रदेश में 7 विधायकों की जीत के बाद नीतीश के सपनों को पंख लग गये हैं। इसी मकसद से वो झारखंड समेत चार राज्यों में अकेले चुनाव लड़ने वाले हैं। हालांकि नीतीश पहले भी उत्तर प्रदेश , गुजरात और दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ चुके हैं। इनके नतीजे नीतीश के लिए बहुत निराशाजनक रहे हैं। लेकिन नीतीश अब भाजपा की छाया से मुक्त होना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि राममंदिर, यूनिफॉर्म सिविल कोड और धारा 370 के मुद्दे पर उनको अल्पसंख्यकों का भरपूर साथ मिलेगा। 2019 के लोकसभा चुनाव में इसका स्वाद मिल चुका है। अब बे बिहार के बाहर इसकी फसल काटना चाहते हैं। नीतीश को भरोसा है कि उनकी सेक्यूलर इमेज चुनाव में नया रंग जमाएगी। देर-सबेर उनको भाजपा से अलग होना है। फिलहाल लुका-छिपी का खेल रहे हैं।
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