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टीआरपी क्या है और इसे लेकर चैनलों में इतनी मारामारी क्यों है?

घरों में टेलिविज़न में क्या देखा जा रहा है इसे लेकर बड़े पैमाने पर सर्वे कराया जाता है. इसके लिए टीवी पर ख़ास तरह का मीटर लगाया जाता है जो टेलिविज़न पर जो चैनल देखा जा रहा है उसका हिसाब रखता है.

By BBC News हिन्दी
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टीवी देखता एक शख़्स
SOPA Images
टीवी देखता एक शख़्स

मुंबई पुलिस का कहना है कि उसने पैसे देकर चैनल की टीआरपी बढ़ाने की कोशिश करने वाले एक रैकेट का पर्दाफ़ाश किया है.

मुंबई पुलिस के अनुसार अभी तक इसमें तीन चैनलों के कथित तौर पर शामिल होने बारे में पता चला है.

पुलिस ने रिपब्लिक टीवी का नाम लेते हुए कहा कि उसने टीआरपी सिस्टम के साथ छेड़छाड़ की है. हालांकि रिपब्लिक टीवी ने इन तमाम आरोपों को ख़ारिज किया है.

लेकिन इस बीच सवाल ये उठता है कि टीआरपी है क्या और टेलिविज़न के लिए क्यों अहम है?

टीआरपी यानी टेलीविज़न रेटिंग प्वाइंट्स एक ख़ास टूल है जिससे इस बात का आकलन लगाया जाता है कि कौन से कार्यक्रम या चैनल टीवी पर सबसे अधिक देखे जाते हैं. ये लोगों की पसंद को दर्शाता है और इसका सीधा नाता टीवी पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम से है.

इस रेटिंग का फायदा कंपनियां और विज्ञापन देने वाली एजेंसियां लेती है क्योंकि इसके ज़रिए उन्हें ये तय करने में मदद मिलती है कि उनके विज्ञापन किस कार्यक्रम के दौरान अधिक देखे जा सकते हैं.

मतलब ये कि जो कार्यक्रम या टीवी चैनल टीआरपी रेटिंग में सबसे आगे उसे अधिक विज्ञापन मिलेगा, यानी अधिक पैसा मिलेगा.

हालांकि साल 2008 में ट्राई ने टेलिविज़न ऑडियंस मेज़रमेन्ट से संबंधित जो सिफारिशें दी थी उसके अनुसार "विज्ञापन देने वाले को अपने धन पर पूरा लाभ मिले इस कारण रेटिंग्स की व्यवस्था बनाई गई थी, लेकिन ये टेलिविज़न और चैनल के कार्यक्रमों में प्राथमिकताएं तय करने का बेंचमार्क बन गया है, जैसे कि सीमित संख्या में जो देखा जा रहा है वही बड़े पैमाने पर लोगों को भी पसंद होगा."

टीवी देखते कुछ लोग
Hindustan Times
टीवी देखते कुछ लोग

कौन देताहै टेलिविज़न रेटिंग्स?

साल 2008 में टैम मीडिया रीसर्च (टैम) और ऑडियंस मेज़रमेन्ट एंड एनालिटिक्स लिमिटेड (एएमएपी) तक टीआरपी व्यवसायिक आधार पर टीआरपी रेटिंग्स दिया करते थे.

भारतीय दूरसंचार नियामक (ट्राई) के अनुसार इन दोनों एजेंसियों का काम न केवल कुछ बड़े शहरों तक सीमित था बल्कि ऑडियंस मेज़रमेन्ट के लिए पैनल साइज़ भी सीमित ही था.

इसी साल ट्राई ने इसके लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय से इंडस्ट्री के प्रतिनिधियों के नेतृत्व में स्व-नियमन के लिए ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रीसर्च काउंसिल (बार्क) की सिफारिश की.

इसके बाद जुलाई 2010 में बार्क अस्तित्व में आया. हालांकि इसके बाद भी टेलिविज़न रेटिंग देने का काम टैम ने ही जारी रखा जबकि एएमएपी ने ये काम बंद कर दिया.

इस बीच इस मुद्दे पर चर्चाओं का दौर जारी रहा. जनवरी 2014 में सरकार ने टेलिविज़न रेटिंग एजेंसीज़ के लिए पॉलिसी गाइडलान्स जारी की और इसके तहत जुलाई 2015 में बार्क को भारत में टेलिविज़न रेटिंग देने की मान्यता दे दी.

चूंकि टैम ने संचार मंत्रालय में इसके लिए रजिस्टर नहीं किया था, उसने ये काम बंद कर दिया. इसके साथ भारत में बार्क वो अकेली एजेंसी बन गई जो टेलिविज़न रेटिंग्स मुहैय्या कराती है.

बार्क में इंडस्ट्री के प्रतिनिधि के तौर पर इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन, इंडियन सोसायटी ऑफ़ एडवर्टाइज़र्स और एडवर्टाइज़िंग एजेंसी एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया शामिल हैं.

कैसे की जाती है रेटिंग?

रेटिंग करने के लिए बार्क दो स्तर पर काम करता है -

पहला, घरों में टेलिविज़न में क्या देखा जा रहा है इसे लेकर बड़े पैमाने पर सर्वे कराया जाता है. इसके लिए टीवी पर ख़ास तरह का मीटर लगाया जाता है जो टेलिविज़न पर जो चैनल देखा जा रहा है उसका हिसाब रखता है.

दूसरा, लोग क्या अधिक देखना पसंद करते हैं ये जानने के लिए रेस्त्रां और खाने की दुकानों पर लगे टीवी सेट्स पर कौन सा चैनन और कौन सा कार्यक्रम चलाया गया है, इसका डेटा भी इकट्ठा किया जाता है.

फिलहाल 44,000 घरों से टीवी कार्यक्रमों का डेटा इकट्ठा किया जाता है. बार्क की कोशिश है कि साल 2021 तक इस टार्गेट पैनल को बढ़ा कर 55,000 किया जाए. वहीं रेस्त्रां और खाने की दुकानों के लिए कुल सैम्पल साइज़ 1050 है.

एकत्र किए हुए डेटा से जो हिसाब लगाया जाता है उसे हर सप्ताह जारी किया जाता है.

रेटिंग का विज्ञापन से नाता

सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत 1.3 अरब लोगों का देश है जहां घरों में 19.5 करोड़ से अधिक टेलिविज़न सेट हैं.

जानकारों के अनुसार ये एक बड़ा बाज़ार है और इस कारण लोगों तक पहुंचने के लिए विज्ञापन बेहद अहम है.

एफ़आईससीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार जहां साल 2016 में भारतीय टेलिविज़न को विज्ञापन से 243 अरब की आमदनी हुई वहीं सब्सक्रिप्शन से 90 अरब मिले. ये आंकड़ा साल 2020 तक बढ़ कर विज्ञापन से 368 अरब और सब्सक्रिप्शन से 125 अरब तक हो चुका है.

BBC Hindi
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English summary
What is TRP and why is there so much panic among the channels about it?
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