अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का 9 नवंबर से क्या है खास 'कनेक्शन' ?
नई दिल्ली- सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार यानि 9 नवंबर, 2019 को अयोध्या में राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ किया है। इस ऐतिहासिक फैसले का तीन दशक पहले इसी दिन से बहुत बड़ा कनेक्शन है। 30 साल पहले इसी तारीख को अयोध्या में उसी जगह पर विश्व हिंदू परिषद ने भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए शिलान्यास किया था, जहां अब भव्य राम मंदिर का निर्माण होना तय हुआ है। मंदिर के दावेदारों ने तब जिस जमीन पर दावे किए थे, अब सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों के विश्लेषण के आधार उसपर मुहर लगाई है कि उनका विश्वास पक्का था।
9 नवंबर, 1989 को हुआ था शिलान्यास
9 नवंबर, 1989 को विश्व हिंदू परिषद की ओर से अयोध्या में तत्कालीन विवादित स्थल के पास ही राम मंदिर के निर्माण के लिए शिलान्यास किया गया था। यह शिलान्यास बिहार के एक दलित नेता कामेश्वर चौपाल के हाथों कराया गया था। जिस जगह पर मंदिर निर्माण के लिए पहला पत्थर लगाया गया था, वह तत्कालीन ढांचे से 192 फीट की दूरी पर था। वीएचपी को इस शिलान्यास की इजाजत तत्कालीन सरकार की ओर से दी गई थी। इससे पहले उस साल 30 सितंबर से 9 नवंबर तक वीएचपी की ओर से श्रीराम शिला पूजन का कार्यक्रमआयोजित किया गया था।
ट्रस्ट को मिलेगा मंदिर बनाने का जिम्मा
राम जन्मभूमि मंदिर के शिलान्यास के ठीक 30 वर्ष बाद 9 नवंबर को ही सुप्रीम कोर्ट ने अध्योध्या में उस जमीन पर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ कर दिया है, जहां 9 नवंबर,1989 को उसकी नींव डाली गई थी। इस मंदिर के निर्माण के लिए केंद्र सरकार को तीन महीने में ट्रस्ट बनाना है, जो मंदिर का निर्माण भी करेगा और भविष्य में उसका प्रबंधन भी उसी के हाथों में होगा। कोर्ट ने कहा कि हिन्दुओं की यह आस्था अविवादित है कि भगवान राम का जन्म स्थल ध्वस्त संरचना है। सीता रसोई, राम चबूतरा, भंडार गृह की उपस्थिति के मिले सबूत इस तथ्य का दावा पेश करते हैं। मौजूद सबूत संकेत देते हैं कि 1857 में अंग्रेजों की दखल से पहले भी हिंदू वहां पूजा करते थे।
खाली जमीन पर नहीं बनी थी मस्जिद
कोर्ट ने कहा कि मुख्य गुंबद को ही जन्म की सही जगह मानते हैं। अयोध्या में राम का जन्म होने के दावे का किसी ने विरोध नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी। मस्जिद के नीचे विशाल संरचना थी। वह रचना इस्लामिक नहीं थी। वहां जो कलाकृतियां मिलीं, वो भी इस्लामिक नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि विवादित ढांचे में पुरानी संरचना की चीजें इस्तेमाल हुईं। कसौटी का पत्थर, खंभा आदि देखा गया। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि एएसआई यह नहीं बता पाया कि मंदिर तोड़कर विवादित ढांचा बना था या नहीं। कोर्ट ने कहा कि अयोध्या में विवादित स्थल के नीचे बनी संरचना इस्लामिक नहीं थी, लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने यह साबित नहीं किया कि मस्जिद के निर्माण के लिये मंदिर गिराया गया था।
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