सिंधिया और मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन के बीच क्या है खास कनेक्शन, जानिए
सिंधिया और मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन के बीच क्या है खास कनेक्शन, जानिए What is the Special Connection Between Sidhiya and Madhya Pradesh Governor Lalji Tandon,Know
बेंगलुरु। मध्यप्रदेश में निछले कुछ दिनों से सियासी घमासान मचा हुआ है। ज्योतियारादित्य सिंधिया के साथ एक साथ 22 विधायकों के इस्तीफा दिए जाने से मध्यप्रदेश की कमलनाथ पर संकट गहरा गया हैं। सरकार रहेगी या नए मुख्मंत्री शपथ लेंगे यह तो आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन सरकार पर गहराए संकट के बीच दशकों तक उत्तर प्रदेश की सियासत का चेहरा रहे और अब मध्यप्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं।
राज्यपाल ने अभी नहीं लिया हैं फैसला
बता दें मंगलवार को ज्योतिरादित्य के इस्तीफे के बाद 22 विधाायकों ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया था और इसी बीच मुख्यमंत्री कमलनाथ ने राज्यपाल के पास छह मंत्रियों को बर्खास्त करने के लिए पत्र भेजा था। परंतु राज्यपाल टंडन ने इस संबंध में कोई भी निर्णय लेने से इंकार कर दिया था। नया सीएम आएगा या कमलनाथ आगे सरकार चलाएंगे यह सब यूपी के भाजपा के दिग्गज नेता लालजी टंडन तय करेंगे। वर्तमान समय में टंडन होली की छुट्टी पर लखनऊ में ही हैं उन्होंने कहा हैं कि शुक्रवार को राजभवन पहुंचने के बाद ही कोई फैसला लूंगा।
सिंधिया और टंडन में खास कनेक्शन
दरअसल मध्यप्रदेश के राजनीतिक ताले की चाभी फिलहाल लालजी टंडन के हाथों में हैं। भाजपा ही नहीं ज्योतिरादित्य के लिए संकटमोचन की भूमिका में राज्यपाल टंडन ही हैं। जानिए सिधिंया और मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन के बीच क्या हैं खास कनेक्शन
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सिंधिया परिवार के लिए निभा चुके संकटमोचक की भूमिका
ये अलग बात है कि अपने संवैधानिक पद की गरिमा का ख़्याल रखते हुए लालजी टंडन इस समय कुछ नहीं बोल रहे। पर सच तो ये है कि सिंधिया परिवार के साथ जुड़ी एक घटना में पहले भी टंडन जी संकटमोचक की भूमिका निभा चुके हैं और एक बार फिर लालजी टंडन सिंधिया राजघराने के लिए अहम हो चुके हैं।
सिंधिया की दादी से जुड़ा हैं ये संबंध
सूत्रों के अनुसार 1980 में रायबरेली में चुनाव में इंदिरा गांधी के सामने ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयराजे सिंधिया को चुनाव में उतारा गया था। जो कि ज्योतिरादित्य की दादी हैं। राजमाता का नामांकन के दिन एम्बेसेडर कार से लखनऊ से रायबरेली जाना था। उस समय उनके साथ लालजी टंडन ही थे। तभी अचानक रेडिया पर प्रसारित एक समाचार सुना जिसको सुनकर राजमाता अचंभित हो गई थी।
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राजमाता के इस मुश्किल वक्त में टंडन बने थे संकटमोचक
रेडिया पर समाचार प्रसारित हुआ कि राजमाता के बेटे माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी के प्रति निष्ठा व्यक्त कर दी है और भाजपा छोड़ कांग्रेस ज्वाइन कर ली हैं। जिसको सुनकर राजमाता अत्यंत दुखी हो गयीं । इस खबर को सुनने के बाद वो सोचने लगी वो नामांकन के लिए रायबरेली जाए या वापस लौट जाएं। राजमाता की इस मुश्किल की घड़ी में उसके साथ रायबरेली जा रहे लाल जी टंडन जो उस समय युवा नेता थो उन्होंने अपनी समझ और व्यवहार कुशलता से उनको समझाया और शांत किया। इस वाकए का खुलासा लालजी टंडन ने काफी समय पूर्व लखनऊ मीडिया पत्रकार से साक्षा किया था।
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सिधिंया की तीसरी पीढ़ी में के लिए टंडन का फैसला होगा अहम
अब एक बार इतिहास ख़ुद को दोहराता नजर आ रहा हैं। वर्तमान में उसी सिंधिया परिवार की तीसरी पीढ़ी के ज्योतिरदित्य के क़दम से उठे सियासी बवंडर के समय लालजी टंडन जी मध्य प्रदेश के राज्यपाल हैं और जयोतिरादित्य सिंधिया भाजपा के लिए किंगमेकर की भूमिका निभा पाएंगे या नहीं ये राज्यपाल टंडन पर के फैसले पर ही निर्धारित करेगा।
राज्यपाल ने कमलनाथ को दिया ये जवाब
लालजी टंडन ने बताया कि पास मुख्यमंत्री कमलनाथ का फोन आया था, जिसपर कहा कि एमपी आकर बात करेंगे। उन्होंने कहा कि उनका 12 मार्च तक का लखनऊ प्रवास का कार्यक्रम पूर्व निर्धारित है। गुरूवार को मध्य प्रदेश जाने का कार्यक्रम है परन्तु कितने बजे जाएंगे अभी तय नहीं है। इसके बाद लोगों का कहना है कि महत्वपूर्ण संवैधानिक पद पर बैठे सूबे के राज्यपाल छुट्टी पर हैं। वह अपने गृहनगर लखनऊ में लोगों से होली मिल रहे हैं। राज्यपाल लालजी टंडन बुधवार को भी लखनऊ में मौजूद रहे और उनके गुरूवार को मध्य प्रदेश जाने के कार्यक्रम की रूपरेखा भी अभी तय नहीं है।
उत्तर प्रदेश के दिग्गज नेता हैं लालजी टंडन
गौरतलब हैं कि लालजी टंडन उत्तर प्रदेश भाजपा के दिग्गज नेता हैं। लालजी टंडन को दो बार यूपी विधान परिषद के सदस्य रहे हैं। उनका पहला कार्यकाल वर्ष 1078 से वर्ष 1984 और दूसरा कार्यकाल वर्ष 1090 से वर्ष1996 तक रहा। वहीं 1991-1992 तक लालजी टंडल यूपी सरकार में मंत्री रहें। फिर 1996 -2009 तक लगातार चुनाव जीतकर वो विधानसभा पहुंचते रहे। वर्ष 1997 में वह यूपी में नगर विकास मंत्री भी रहे। साथ ही यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे। लखनऊ लोकसभा क्षेत्र से वह पहली बार 2009 में चुनाव लड़े और जीतकर संसद पहुंचे। वर्ष 2014 में लालजी टंडन की जगह लखनऊ से राजनाथ सिंह चुनव लड़े।
मध्यप्रदेश में ये है सियासी गणित
मध्य प्रदेश में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं और इसमें से दो सीट खाली है, जिसके बाद कुल संख्या 228 है। सिंधिया की बगावत के साथ अब तक 22 कांग्रेस विधायकों ने इस्तीफा भेजा है। ऐसे में अगर इन कांग्रेसी विधायकों का इस्तीफा स्वीकार हो जाता है तो इसकी कुल संख्या 206 हो जाती है, जिसके बाद बहुमत के लिए 104 विधायकों की जरूरत होगी। कांग्रेस के पास पहले 114 विधायकों के अलावा 7 अन्य का समर्थन हासिल था। कांग्रेस के पास कुल मिलाकर 121 विधायकों का समर्थन हासिल था। वहीं जिन कांग्रेस विधायकों ने इस्तीफा दिया जिसके कारण उनका संख्या बल कम हो गया हैं। सरकार को बचाने के लिए कांग्रेस को कुल 104 विधायकों की जरुरत हैं। भाजपा के पास कुल 107 विधायक हैं।