राम मंदिर भूमि पूजन पर क्यों चुप रहे नीतीश कुमार ? जानिए
नई दिल्ली- बुधवार को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन कार्यक्रम का ज्यादातर सियासी दलों ने तहे दिल से स्वागत किया। यूपी में तो समाजवादी पार्टी और कांग्रेस तक के सुर बदल गए। खासकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने तो कई कदम आगे बढ़कर अपनी बातें रखीं। कई नेताओं ने सोशल मीडिया के जरिए अपनी भावनाओं का इजहार किया। लेकिन, बिहार में भाजपा की सहयोगी जेडीयू के नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इतने बड़े मौके पर भी चुप्पी ही साधे रखने में भलाई समझी। हालांकि, बिहार भाजपा नीतीश की चुप्पी को ज्यादा तूल नहीं देना चाहती, लेकिन यह राज जानना दिलचस्प है कि नीतीश कुमार ने इस मामले में इतनी उदासीनता क्यों दिखाई है?
भूमि पूजन पर क्यों चुप रहे नीतीश कुमार ?
बिहार में विपक्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर कोरोना और बाढ़ के बावजूद 100 दिनों से ज्यादा वक्त तक अपने आवास से बाहर कदम नहीं रखने के आरोप लगा रही थी। लेकिन, जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन किया, नीतीश कुमार हेलीकॉप्टर से दरभंगा दौरे पर निकल गए थे। वहां पर उन्होंने राहत शिविरों और कम्युनिटी किचन का जायजा लिया। पिछले करीब साढ़े तीन महीनों में पटना के बाहर उनका यह पहला दौरा था। वह जहां भी गए अयोध्या में आयोजित समारोह को लेकर पूरी तरह से चुप रहे। यहां तक कि उन्होंने सोशल मीडिया पर भी इस संबंध में अपनी किसी भावना का इजहार करना मुनासिब नहीं समझा। ऐसा नहीं है कि उन्होंने बुधवार को कोई ट्वीट नहीं किया। उन्होंने चार-चार ट्वीट किए। एक में अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत के केस को उनकी सिफारिश पर सीबाईआई को सौंपने के केंद्र के फैसले का स्वागत किया। दो ट्वीट बाढ़ग्रस्त इलाकों के हवाई सर्वेक्षण को लेकर थे और एक में उन्होंने खगड़िया, सहरसा और दरभंगा में नाव डूबने की घटनाओं का जिक्र किया था।
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नीतीश की पार्टी के सिर्फ एक नेता ने दी भूमि पूजन पर प्रतिक्रिया
भूमि पूजन मामले पर चुप्पी साधे रहने वाले नीतीश कुमार पार्टी के अकेले नेता नहीं रहे। जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा को छोड़कर लगभग सब ने कुमार का ही अनुसरण किया। अलबत्ता संजय कुमार झा ने जरूर ट्विटर पर अपनी भावनाएं व्यक्त कीं- "हमें विश्वास है, अयोध्या में लंबे विवाद के बाद बनने जा रहा राम मंदिर शांति व सौहार्द की सद्भावना को समृद्ध करने तथा रामकथा के आदर्शों के प्रति जन-जन को प्रेरित करने का सशक्त माध्यम बनेगा। सीता-राम मिथिलावासियों के रोम-रोम में बसते हैं।" मिथिलांचल क्षेत्र होने के चलते शायद उनकी यह निजी मजबूरी भी थी। वैसे जेडीयू के एक और मंत्री श्याम रजक से जब द प्रिंट ने सीएम की चुप्पी पर सवाल किए तो उन्होंने कहा, 'मैं नहीं जानता कि दूसरे क्या करते हैं और क्या नहीं करते हैं। हमारे मुख्यमंत्री की प्राथमिकता राज्य की जनता है।......वह बाढ़ में फंसे बाढ़ पीड़ितों की हालत देखने गए। राज्य इस समय बाढ़ और कोरोना से लड़ रहा है।'
नीतीश की चुप्पी को तूल नहीं देना चाहती भाजपा
हालांकि बिहार भाजपा इस मुद्दे को तूल नहीं देना चाह रही है। प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता आनंद झा ने वन इंडिया से खास बातचीत में कहा कि "मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काम करने का अपना तरीका है। बुधवार को मुख्यमंत्री का बहुत ही व्यस्त कार्यक्रम था। वह उन इलाकों के दौरे पर गए जो बाढ़ से प्रभावित हैं। मुख्यमंत्री जनता से जुड़े इन विषयों के प्रति बहुत ही ज्यादा सजग रहते हैं। हमें याद है उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है।"
16 फीसदी मुसलमान वोट की चिंता ?
जेडीयू और बीजेपी दोनों इस मामले पर ज्यादा चर्चा करने के मूड में नहीं है, लेकिन बिहार की राजनीति और प्रदेश के 16 फीसदी मुस्लिम आबादी से नीतीश का जिस तरह का जटिल संबंध रहा है, इस सवाल का जवाब उसी में खोजा जा सकता है। राम मंदिर आंदोलन का बिहार की राजनीति से बहुत ही बड़ा नाता है। 1990 में समस्तीपुर में आडवाणी के रामरथ को रोककर आरजेडी नेता लालू यादव ने जो मुसलमानों को अपने पाले में खींचा उसे आजतक कोई हिला नहीं पाया है। बिहार में मुसलमान तीन दशकों से लालू के नाम पर आंख मूंदकर समर्थन को तैयार रहे हैं। हालांकि, मुस्लिम कल्याण से जुड़े कई कार्यों मसलन, कब्रगाहों को दीवारों से घेरने, मुस्लिम लड़कियों के लिए स्किल डेवपलपमेंट और स्कॉलरशिप प्रोग्राम की बदौलत नीतीश कुमार ने भी उनके दिल के कोने में अपने लिए एक जगह जरूर बनाई है। 2010 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ होते हुए भी मुसलमानों के एक वर्ग का वोट जेडीयू के खाते में गया था। लेकिन, जब 2013 में नीतीश, नरेंद्र मोदी के नाम पर गुलाटी मारते हुए 2014 के लोगसभा चुनाव में अकेले मैदान में गए तो मुसलमानों ने बीजेपी के खिलाफ पूरी तरह से लालू का ही साथ दिया।
ताकि मुस्लिम जेडीयू के खिलाफ आक्रामक वोटिंग न करें.....!
मतलब, नीतीश कुमार और उनकी जेडीयू को पूरा इल्म है कि जब आरजेडी और जेडीयू में चुनने की नौबत आएगी तो वे राजद के साथ जाना ज्यादा पसंद करेंगे। हालांकि, फिर भी नीतीश कोई भी कदम उठाने से पहले हजार बार सोचते हैं कि यह 16 फीसदी आबादी को नाराज तो नहीं करेगा। इसके लिए वह भाजपा के साथ रहते हुए भी इस बात के लिए हमेशा सचेत रहते हैं कि उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि को बट्टा न लग जाए। इसके लिए उन्हें सख्त फैसले भी लेने पड़ते हैं तो वह पीछे नहीं हटते। उदाहरण के लिए रामनवमी के मौके पर भागलपुर में हुई सांप्रदायिक झड़पों में उन्होंने अरिजित शाश्वत को गिरफ्तार करवाया, जबकि वे केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे हैं। मुसलमानों के प्रति नीतीश की इस सोच के बारे में नाम नहीं लिए जाने की शर्त पर एक जेडीयू नेता ने बेहतर बताया। उन्होंने कहा, 'नीतीश जी को पता है कि जबतक वे बीजेपी के साथ हैं उन्हें मुस्लिम वोट नहीं मिलेंगे। लेकिन, इसके बावजूद वे नहीं चाहते कि मुसलमान विधानसभा में जेडीयू उम्मीदवारों के खिलाफ आक्रामक हों। यही वजह है कि उन्होंने खुद को भूमि पूजन समारोह से अलग रखा।'
नीतीश को लेकर विपक्ष की सोच
बिहार की दो विपक्षी दलों को भी लगता है कि नीतीश चाहे कुछ भी कर लें, वह मुसलमानों पर डोरे नहीं डाल सकेंगे। आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी के मुताबिक, 'इस केंद्र सरकार में बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत है। नीतीश कुमार सिर्फ दिखावे का विरोध कर सकते हैं, जैसा कि उन्होंने ट्रिपल तलाक और आर्टिकल 370 पर किया जब उनके सांसद विधेयकों पर वोटिंग के दौरान वॉकआउट कर गए। मुसलमानों को यह पता है।' वहीं पूर्व विधायक और पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी के नेता अखलाक अहमद का कहना है कि कांग्रेस के यू-टर्न ने मुसलमानों को कंफ्यूज्ड कर दिया है, लेकिन मौजूदा परिस्थियों में नीतीश कुमार उसकी पसंद नहीं हो सकते। मुसलमानों को यह भी आशंका है कि अगर एनडीए फिर जीतता है तो क्या नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनेंगे?
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