राहुल द्रविड़ का टीम इंडिया की कामयाबी कितना रोल?
बतौर कोच, राहुल द्रविड़ आज भी नेट्स पर अभ्यास को उतनी ही गम्भीरता से लेते हैं जैसे बतौर प्लेयर वो नेट्स में घंटों प्रैक्टिस किया करते थे.
पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के पर्थ शहर से एडिलेड के लिए क्वांटस एयरवेज़ ने उड़ान भर ली थी और फ़्लाइट फ़ुल थी.
भारतीय क्रिकेट टीम भी इसी फ़्लाइट में थी और एक दिन पहले ही दक्षिण अफ़्रीका से मैच हारने के बाद सभी खिलाड़ी थोड़ा आराम कर रहे थे. फ़्लाइट भी चार घंटे की थी.
लेकिन इकॉनमी सेक्शन की कोने वाली सीट पर बैठे एक शख़्स ने जहाज़ के उड़ते ही अपना लैपटॉप निकाला और उसी में खोया रहा.
बीच में दो बार बिज़नेस क्लास से उठ कर भारतीय कप्तान रोहित शर्मा इनके पास आए, झुक कर कुछ बात की और वापस चले गए.
राहुल द्रविड़ के काम करने का तरीक़ा अलग ही है.
अभ्यास के वक़्त हर खिलाड़ी पर ध्यान
बतौर कोच, राहुल द्रविड़ आज भी नेट्स पर अभ्यास को उतनी ही गम्भीरता से लेते हैं जैसे बतौर प्लेयर वो नेट्स में घंटों बैटिंग प्रैक्टिस किया करते थे.
ऑस्ट्रेलिया के इस दौरे पर नेट्स में सबसे पहले पहुँचने के बाद राहुल द्रविड़ हर खिलाड़ी को बहुत बारीकी से प्रैक्टिस करते देखते हैं, सुझाव देते हैं और बैटिंग कोच विक्रम राठौर और बॉलिंग कोच पारस म्हाम्ब्रे को हर गतिविधि में शामिल करते हैं.
पर्थ में हुए मैच में दक्षिण अफ़्रीका ने भारत को हरा दिया था. लेकिन मैच के बीच में भारतीय पारी ख़त्म होने के बाद खिलाड़ी फ़ील्डिंग प्रैक्टिस कर रहे थे कि एकाएक राहुल द्रविड़ एक बैट और बॉल लेकर आए और केएल राहुल को स्लिप फ़ील्डिंग की प्रैक्टिस कराने लगे.
दक्षिण अफ्रीकी पारी शुरू हुए एक ही ओवर हुआ था कि अर्शदीप सिंह की एक आउटस्विंगर पर क्विंटन डी कॉक का बल्ला लगा और केएल राहुल ने स्लिप पर कैच लेकर उन्हें आउट किया.
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खिलाड़ियों के डग आउट में बैठे राहुल द्रविड़ ने बड़ी स्क्रीन की तरफ़ मुड़ कर एक बार रीप्ले देखा और फिर मैच पर ध्यान गड़ा लिया.
राहुल द्रविड़ के साथ क्रिकेट खेल चुके और अब उनकी कोचिंग को फ़ॉलो करने वाले वेस्टइंडीज़ के पूर्व कप्तान डैरन सैमी को लगता है "राहुल अब सेट हो चुके हैं".
डैरन सैमी ने कहा, "द्रविड़ जैसे मेहनती प्लेयर्स मैंने कम देखे हैं. ठीक उसी तरह उन्होंने पहले जूनियर टीम के साथ कोचिंग की और सीखते-सिखाते अब ऐसे टीम के कोच हैं जिनमें आधे से ज़्यादा सुपरस्टार खिलाड़ी हैं. ये कम बड़ी चुनौती नहीं होती."
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चुनौतीपूर्ण समय में बनाए गए टीम इंडिया के कोच
एक संयोग ही था कि पर्थ से एडिलेड वाली जिस फ़्लाइट में द्रविड़ बैठकर काम करते रहे उसी के बिज़नेस क्लास की पहली सीट पर पूर्व कोच रवि शास्त्री भी बैठे थे.
जिन हालात में राहुल द्रविड़ को कोचिंग का भार सौंपा गया था वो भी चुनौती भरा ही कहा जाएगा.
दिसंबर, 2021 में बतौर कोच दक्षिण अफ़्रीका के अपने पहले विदेशी दौरे पर जाने से पहले उन्होंने कहा था, "हम 18 खिलाड़ियों के साथ जा रहे हैं जो सब टैलेंटेड हैं, बेहतरीन हैं. लेकिन खेल सिर्फ़ 11 पाते हैं और मैं समझ सकता हूँ कि जो नहीं खेल पाते उन्हें निराशा होती है. अक़्सर, खिलाड़ियों से मुश्किल बातें भी करनी पड़ती हैं लेकिन हम सभी प्रोफ़ेशनल हैं".
अगर भारत की टेस्ट या वनडे टीम पर एक नज़र दौड़ाई जाए तो द्रविड़ की चुनौतियों का अंदाज़ा लग सकेगा.
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पुराने और युवा खिलाड़ियों को एकजुट रखने की चुनौती
पिछले साल दक्षिण अफ़्रीका के टेस्ट दौरे पर गई टीम में 18 में से सात खिलाड़ियों की उम्र 30 से ज़्यादा थी. फ़िलहाल ऑस्ट्रेलिया में खेले जा रहे टी-20 विश्व कप में अब तक भारत की टीम से खेलने वाले खिलाड़ियों में से आठ 30 साल से ज़्यादा उम्र के हैं.
ज़ाहिर है, राहुल द्रविड़ को न सिर्फ़ स्टार प्लेयर्स को एकजुट रखते हुए नतीजे दिलवाने हैं, बल्कि टीम में युवा खिलाड़ियों के लिए जगह बनाने के मुश्किल फ़ैसले भी लेते रहने पड़ेंगे.
क्रिकेट पर लिखने वाले और पाकिस्तान के नामी खेल पत्रकार शाहिद हाशमी कहते हैं "मेरी राहुल के बारे में अब भी वही राय है जो तब थी जब मैं उन्हें दौरों पर फ़ॉलो किया करता था".
उन्होंने कहा, "द्रविड़ इतने बड़े प्लेयर थे कि उन्होंने टेस्ट और वनडे, दोनों में 23,000 से ज़्यादा रन बनाए थे, क़रीब 500 मैचों में. जब आप विराट कोहली और रोहित शर्मा जैसे दिग्गाज खिलाड़ियों के कोच होते हैं तब आपका भी एक रसूख़ होना पड़ेगा. द्रविड़ के पास तजुर्बा है, सक्सेस (सफलता) है और ग्लैमर भी वो खूब देख चुके हैं. वो सिर्फ़ काम की बात पर ही फ़ोकस करेंगे".
राहुल द्रविड़ का टीम से जुड़ाव ख़ासा मज़बूत दिख भी रहा है. इस टूर्नामेंट के शुरुआती तीन मैचों में केएल राहुल फ़्लॉप रहे. उनकी जगह दूसरे खिलाड़ी को मौक़ा देने की आलोचना और दबाव में अगर द्रविड़ झुक गए होते तो बांग्लादेश के ख़िलाफ़ हुए चौथे मैच में न तो राहुल को अर्द्धशतक लगाने का मौक़ा मिलता और न ही उनका भरोसा लौटता.
विराट कोहली के फ़ॉर्म में वापस आने की कहानी में कहीं न कहीं राहुल द्रविड़ का भी हाथ साफ़ दिखता है. द्रविड़ ने उनको पिछले साल से लगातार सपोर्ट दिया और एशिया कप के बाद विराट की फ़ॉर्म में वापसी हुई.
कोहली को घंटों नेट्स में बैटिंग प्रैक्टिस करते राहुल द्रविड़ देखते रहते हैं और बीच में जाकर सुझाव भी देते हैं.
मैचों के दौरान ड्रिंक्स ब्रेक या ओवर ब्रेक में द्रविड़ अक़्सर दौड़कर प्लेयर्स के पास बीच मैदान में जाते हैं और ज़रूरी संदेश खुद देते हैं.
इन दिनों राहुल द्रविड़ जिस तरह से जीत की ख़ुशी मनाते हैं, खिलाड़ियों के गले मिलते हैं वो उनके शांत स्वभाव से थोड़ा अलग भी है और नया भी.
पूर्व कप्तान और चीफ़ सेलेक्टर रह चुके के श्रीकांत का मानना है, "राहुल का आत्मविश्वास उनका सबसे बड़ा एडवांटेज है जो बड़े फ़ैसलों के लिए अहम होता है".
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