क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

बिहार में सियासी टूट-फूट के नीतीश-लालू के लिए मायने क्या

होली से दो दिन पहले बुधवार को बिहार में सियासी रंग बदलने लगे. कुल पांच नेता अपनी पार्टी छोड़ दूसरे खेमे में चले गए.

सुबह जहां हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने राजद-कांग्रेस महागठबंधन का दामन थामने की घोषणा की.

 

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
बिहार में सियासी टूट-फूट के नीतीश-लालू के लिए मायने क्या

होली से दो दिन पहले बुधवार को बिहार में सियासी रंग बदलने लगे. कुल पांच नेता अपनी पार्टी छोड़ दूसरे खेमे में चले गए.

सुबह जहां हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने राजद-कांग्रेस महागठबंधन का दामन थामने की घोषणा की.

वहीं देर शाम कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर अशोक चैधरी समेत कांग्रेस के चार विधान पार्षदों ने पार्टी को अलविदा कह जदयू का दामन थामने का एलान कर दिया.

मांझी विधानसभा में अपनी पार्टी के इकलौते विधायक हैं जबकि बिहार विधान परिषद में अभी कांग्रेस के छह सदस्य हैं.

पार्टी छोड़ने के एलान से पहले अशोक चैधरी गुट ने बुधवार देर शाम विधान परिषद के उपसभापति हारून रशीद को आवेदन देकर सदन में उनके गुट को अलग गुट के रूप में मान्यता देने का आग्रह किया.

हालांकि जानकारों के मुताबिक ये दोनों ही फ़ैसले चौंकाने वाले नहीं हैं. सियासत पर नज़र रखने वाले इसकी संभावना मान कर चल रहे थे.

ये दोनों नेता जुलाई में नीतीश कुमार द्वारा फिर से भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए का दामन थामने के बाद से अपने-अपने पुराने गठबंधनों में असहज महसूस कर रहे थे.

जैसा कि वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार कहते हैं, "जीतन मांझी की छवि नीतीश कुमार का मुखर विरोध करते हुए बनी थी. ऐसे में जुलाई में नीतीश के एनडीए में शामिल होने के बाद से ही वे असहज थे. उन्हें सत्ता में शायद उचित भागीदारी भी नहीं मिल रही थी. दूसरी ओर महागठबंधन टूटने के बाद भी अशोक चौधरी और नीतीश एक-दूसरे की तारीफ़ सार्वजनिक रूप से करते रहे थे."

क्या कहा दिल बदलने वाले नेतााओं ने

जीतन राम मांझी ने बुधवार देर शाम बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के साथ प्रेस वार्ता कर एनडीए छोड़ने एवं महागठबंधन में शामिल होने को लेकर औपचारिक एलान किया.

उन्होंने कहा कि वे नीतीश सरकार से कुछ मुद्दों पर मतभेद के कारण एनडीए से अलग हो रहे हैं. उनके मुताबिक शराबबंदी और बालू-संकट के कारण राज्य के ग़रीब तबके पर बहुत बुरी मार पड़ी है.

मांझी ने आरक्षण के सवाल पर भी एनडीए को घेरा. साथ ही जीतन राम मांझी ने नए डीजीपी केएस द्विवेदी के बारे में कहा कि भागलपुर दंगे के आरोपी को डीजीपी बनाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.

इस मौके पर मौजूद तेजस्वी ने शिवसेना, अकाली दल, तेलुगू देशम पार्टी का उदाहरण देते हुए कहा, "भारत के अनेक राज्यों में भाजपा के सहयोगी दल उससे नाराज़ हैं. एनडीए में सब ठीक नहीं है. भाजपा अपने सहयोगियों को सम्मान नहीं दे रही है. वह अपने सहयोगियों पर हावी रहना चाहती है."

जदयू से जुड़ने की वजह

वहीं कांग्रेस छोड़ने वाले अशोक चौधरी का कहना था कि उन्होंने सम्मान नहीं मिलने के कारण पार्टी छोड़ी.

उन्होंने ख़ासकर बिहार के कांग्रेस प्रभारी सीपी जोशी को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया.

साथ ही उन्होंने नीतीश कुमार को श्रीकृष्ण सिंह के बाद बिहार का सबसे बेहतर मुख्यमंत्री बताते हुए कहा कि वे नीतीश की छवि और कार्यशैली से प्रभावित होकर जदयू में शामिल हो रहे हैं.

दूसरी ओर उन्होंने पार्टी छोड़ते हुए राहुल गांधी की तारीफ़ भी की.

अशोक चौधरी गुट का यह फ़ैसला सार्वजनिक होने के साथ ही बिहार कांग्रेस के प्रभारी अध्यक्ष कौकब क़ादरी ने चारों नेताओं अशोक चौधरी, दिलीप चौधरी, रामचंद्र भारती और तनवीर अख़्तर को पार्टी से निष्कासित कर दिया.

क्या होगा असर

इस घटनाक्रम को अजय कुमार सियासी समीकरण साधने की तैयारी के रूप में देखते हैं.

वे कहते हैं, "हाल के दिनों में उपचुनाव सहित राज्यसभा और विधान परिषद के चुनाव होने हैं. ये सब इसकी तैयारी के साथ-साथ 2019 के लोकसभा और 2020 के विधानसभा चुनाव को लेकर की जा रही बड़ी तैयारी का भी हिस्सा हैं. इसे ध्यान में रखते हुए सूबे के दोनों सबसे अहम गठबंधन राजनीतिक और सामाजिक समीकरण को अपने पक्ष में करने की तैयारी कर रहे हैं."

वहीं राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन का मानना है कि ऐसे विरोध ओर असंतोष किसी खास परिस्थिति में सामने आते हैं. वे इस महीने होने वाले उपचुनाव और राज्यसभा चुनाव को ऐसी की तात्कालिक स्थिति मानते हैं.

बुधवार के घटनाक्रम के असर के बारे में वे कहते हैं, "मांझी आम तौर पर दलित और ख़ास तौर पर मुसहर समुदाय में आई एक नई उत्तेजना का प्रतिनिधित्व करते हैं. ऐसे में उन्हें अपने साथ नहीं रख पाने का जहां भाजपा को अफ़सोस हो रहा होगा तो वहीं उनका महागठबंधन में शामिल होना इसे मज़बूत करेगा. वहीं अशोक चौधरी की अपनी कोई ऐसी ख़ास पहचान नहीं हैं. हां, उनको साथ लाकर एनडीए यह तसल्ली कर सकती है कि उसने महागठबंधन के एक बड़े धड़े को अपने में मिला लिया है."

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
What is the political breakdown in Bihar for Nitish-Laloo
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X