लोकसभा चुनाव 2019: जानिए, आदर्श चुनाव आचार संहिता क्या है?
नई दिल्ली- भारत में चुनाव तारीखों के ऐलान के साथ ही आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू हो जाता है। इसके तहत सरकार और सभी राजनीतिक दलों के लिए कुछ करने या न करने का प्रावधान पहले से निर्धारित है। सबसे बड़ी बात ये है कि आदर्श चुनाव आचार संहिता (Model Code of Conduct)लागू होने के बाद सरकार कोई नीतिगत फैसला नहीं ले सकती है और न ही सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल चुनाव कार्यों के लिए कर सकती है।
आदर्श चुनाव आचार संहिता को ऐसे समझिए
निर्वाचन आयोग के आदर्श चुनाव आचार संहिता में राजनीतिक पार्टियों के लिए कुछ गाइडलाइंस होती हैं, जिसका उन्हें चुनाव प्रक्रिया खत्म होने तक पालन करना होता है। इस नियम के तहत 8 तरह के प्रावधान हैं। इसमें चुनावी भाषणों,बैठकें, मतदान केंद्रों, चुनावी घोषाणापत्रों, चुनावी रैलियों और प्रदर्शनों जैसे चुनाव से जुड़ी बातें शामिल हैं। इसका मकसद हर हाल में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संपन्न करवाना है।
सत्ताधारी दल पर प्रभाव
आचार संहिता के लागू होते ही सत्ताधारी दल चुनाव प्रचार के लिए सत्ता के साधनों का इस्तेमाल सियासी फायदे के लिए नहीं कर सकते। यानी चुनाव प्रचार के लिए सरकारी मीडिया का भी उपयोग नहीं किया जा सकता, जिससे कि मतदाताओं को प्रभावित किया जा सके। सरकार के मंत्रियों को सरकारी कार्यों को चुनाव प्रचार से दूर रखना पड़ता है। सत्ताधारी दल सरकारी गाड़ियों और सिस्टम का भी चुनाव प्रचार के लिए उपयोग नहीं कर सकते। आचार संहिता लागू होने के बाद सरकारी मैदानों या हवाई पट्टियों के इस्तेमाल में सत्ताधारी दल और विपक्ष में कोई फर्क नहीं किया जा सकता। अगर सत्ताधारी पार्टी सरकारी खर्च पर पार्टी के प्रचार के लिए का कोई काम करती है, तो इसे अपराध माना जाएगा। सरकार में जो भी पार्टी होती है, वह इस दौरान कोई अतिरिक्त नियुक्ति नहीं कर सकती, जिससे कि उसे मतदान को प्रभावित करने का फायदा मिल सके।
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सभी राजनीतिक दलों के लिए नियम
कोई भी पार्टी जाति या धर्म के आधार पर जनता से वोट की अपील नहीं कर सकती। राजनीतिक दल एक-दूसरे के कार्यों की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन मंदिरों, मस्जिदों या चर्चों का इस्तेमाल चुनावी कार्यों के लिए कर सकते। मतदाताओं को किसी भी तरह से रिश्वत देना या उसका लालच देना भी चुनाव संहिता के तहत अवैध है। मतदान शुरू होने के 36 घंटे पहले तक ही प्रचार की छूट है, उसके बाद चुनाव प्रचार बंद कर दिया जाता है। इस नियम के पीछे वजह ये है कि मतदाताओं को अपना मत तय करने के लिए शांतिपूर्ण माहौल मिल सके। खास बात ये है कि चुनाव आचार संहिता राजनीतिक दलों की आपसी समझबूझ से ही विकसित हुआ है और इसकी कोई गंभीर कानूनी बाध्यता नहीं है। अगर चुनाव आयोग को आचार संहिता तोड़ने की शिकायत मिलती है, तो वह संबंधित उम्मीदवारों या राजनीतिक दलों को नोटिस भेजकर जवाब मांग सकता है। अगर इसमें कोई दोषी पाया जाता है और माफी मांगने के लिए तैयार नहीं होता है, तो चुनाव आयोग उसे दोषी ठहरा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 324 के अंतर्गत उस पर पाबंदी भी लगाई जा सकती है। लेकिन सामान्यतौर पर वह लिखित माफीनामे के बाद पाबंदियों को हटा लेता है।
यह पहलीबार कब लागू हुआ था?
जानकारी के मुताबिक चुनाव आचार संहिता पहलीबार 1960 में केरल विधानसभा चुनावों में लागू किया गया था। जबकि, 1962 के चुनावों के बाद से इसे सभी पार्टियों ने विस्तार से अपनाना शुरू कर दिया। अक्टूबर 1979 में चुनाव आयोग ने इसके साथ कुछ और प्रावधान जोड़ दिए, ताकि सत्ताधारी दल चुनावों के समय कोई भी अनुचित लाभ उठाने की कोशिश न कर सकें। यह नियम चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही लागू हो जाता है और तब तक प्रभावी रहता है, जब तक चुनावी प्रक्रिया पूरी न हो जाए।
लगभग हर चुनावों में राजनीतिक दलों की ओर से एक-दूसरे पर चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप लगते रहे हैं। जानकारी के अनुसार 2014 के लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने ऐसे ही आरोपों के बाद बीजेपी नेता अमित शाह और समाजवादी पार्टी नेता आजम खान को भाषण देने से रोक दिया था, लेकिन बाद में उनके माफी मांगने और भविष्य में नियम का पालने करने का भरोसा मिलने के बाद उनपर लगी रोक हटा ली गई थी।
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