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कांग्रेस में बदलाव चाहने वाले 'असंतुष्ट' नेताओं में नई सुगबुगाहट के मायने क्या हैं ?

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नई दिल्ली: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद देश में कोरोना के कहर शुरू होने के बाद पहली बार अपने गृह राज्य जम्मू कश्मीर पहुंच रहे हैं। इस दौरान वह तीन दिनों तक जम्मू में रहेंगे। लेकिन, राज्यसभा के पूर्व नेता विपक्ष का अपने गढ़ का यह दौरा सामान्य नहीं है। इसमें मौजूदा कांग्रेस की 'परिपाटी' से बहुत कुछ अलग हटकर देखने को मिल सकता है। क्योंकि, अगले कुछ दिनों में कांग्रेस के कुछ और नेता जम्मू में उनकी 'मंडली' में शामिल हो सकते हैं। पार्टी के जिन वरिष्ठ नेताओं का आजाद का साथ देने के लिए जम्मू पहुंचने की संभावना है, उनमें कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, मनीष तिवारी, अखिलेश प्रसाद सिंह और विवेक तनखा भी शामिल हैं। ये लोग जम्मू में सिर्फ आजाद के साथ एकजुटता नहीं दिखाएंगे,बल्कि यह सीधे जनता से जुड़े कार्यक्रमों में भी शिरकत करेंगे। ये सारे नाम वो हैं, जो पिछले साल कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक चिट्ठी लिख देने के चलते सुर्खियों में आए थे और तभी से इन पर 'असंतुष्ट' होने का ठप्पा लगा हुआ है।

जम्मू में कांग्रेस के 'असंतुष्टों' की गोलबंदी

जम्मू में कांग्रेस के 'असंतुष्टों' की गोलबंदी

गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा से रिटायरमेंट देशभर का ध्यान खींच चुका है। क्योंकि, उनके लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सदन में भावुक हुए थे और बहुत से लोगों को तब आजाद ने भी यही संदेश दिया था कि राजनीतिक रिश्ते अलग होते हैं और निजी ताल्लुकातों की भावनाएं बहुत ही अलग होती हैं। लेकिन, आजाद की राज्यसभा से जिस तरह से विदाई हुई, वह कांग्रेस के लिए एक सामान्य घटना नहीं है। वह पार्टी में बदलाव और संगाठनात्मक सुधार की मांग उठाने वाले ग्रुप-23 के नेताओं के सबसे वरिष्ठ और अनुभवी सदस्य हैं। अब अगर आजाद के गढ़ में उनके समर्थक और शुभचिंतकों ने उनके सम्मान के लिए तैयारियां की हैं और उसमें उनके 'असंतुष्ट' साथियों का भी उनके समर्थन में पहुंच रहे हैं तो इसके सियासी मायने भी निकलते हैं।

नेतृत्व के रवैए से 'असंतुष्टों' में बढ़ रही है मायूसी

नेतृत्व के रवैए से 'असंतुष्टों' में बढ़ रही है मायूसी

आजाद दशकों से जम्मू-कश्मीर में पार्टी के सबसे बड़े चेहरे हैं। वह प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। उनके लिए जो कार्यक्रम तय किए गए हैं, उसमें कई सामाजिक संगठनों से मुलाकात, कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ-साथ सोशल ऐक्टिविस्ट के साथ बैठकें भी शामिल हैं। ये कार्यक्रम एक तरह से जनसंपर्क अभियान का ही सधा हुआ हिस्सा है। संभावनाएं हैं कि इन बैठकों के दौरान पार्टी में बदलाव की चाह रखने वाले नेताओं को अपनी दिल की बातें खुलकर रखने का मौका मिलने वाला है। जानकारी के मुताबिक सोनिया गांधी को पार्टी नेताओं ने जो चिट्ठी लिखी थी, वह भी कई राज्यों में कांग्रेसियों के बीच घूम रही है। मतलब, जिस तरीके से नेतृत्व ने इनके उठाए मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाले रखने की कोशिश की है, वह उतना आसान लग नहीं रहा है। पिछले साल दिसंबर में सोनिया ने इन्हें बिठाकर बात भी की थी, लेकिन उसका कोई ठोस नतीजा दिखाई नहीं पड़ा। ऊपर से हाल के कुछ घटनाक्रम ने इनकी मायूसी और बढ़ा रखी है।

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कांग्रेस के 'असंतुष्टों' के ऐक्शन में आने का मतलब

कांग्रेस के 'असंतुष्टों' के ऐक्शन में आने का मतलब

जानकारी के मुताबिक आजाद का कार्यकाल जिस तरह से खत्म होने दिया गया है, उसने असंतुष्टों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि सहयोगी पार्टियों ने उन्हें दूसरे राज्य से सदन में भेजने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन नेतृत्व उसे मानने को तैयार नहीं हुआ। ऊपर से पांच-पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, लेकिन वरिष्ठों का राय-विचार पूछने वाला कोई नहीं है। जैसे कि डीएमके के साथ तालमेल करने में आजाद पार्टी के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं, लेकिन उन्हें वहां भी भेजने की जरूरत नहीं समझी गई। जबकि, कई राज्यों के निगेटिव चुनाव परिणामों के बावजूद राहुल के चहेते रणदीप सुरजेवाला को फिर से यह मौका मिला है। यही नहीं, हुड्डा चाहते थे कि हाई कमांड का इशारा मिले और हरियाणा में मनोहर खट्टर सरकार गिराने में लग जाएं। लेकिन, जानकारी के मुताबिक राहुल ने उनके विरोधी सुरजेवाला और कुमारी शैलेजा की बातों को फिर से तबज्जो दिया। आजाद रिटायर हो रहे थे तो आनंद शर्मा को लग रहा था कि उन्हें उनकी जगह मौका मिलेगा, क्योंकि उनका भी करीब साल भर का ही कार्यकाल बचा है, लेकिन बाजी राहुल के वफादार मल्लिकार्जुन खड़गे मार गए।

विधानसभा चुनाव परिणामों पर टिकी है भविष्य की रणनीति

विधानसभा चुनाव परिणामों पर टिकी है भविष्य की रणनीति

असंतुष्ट मान चुके हैं कि जिस तरह से पार्टी में 'मनमानी' हो रही है, उससे राहुल गांधी की रिलॉन्चिंग तय है। नहीं तो जिन चुनावों में कांग्रेस का भविष्य दांव पर है, उसकी रणनीतियों में उनके अनुभवों को अलग क्यों रखा जा रहा है? पार्टी में सोनिया सिर्फ काम चलाऊ अध्यक्ष हैं तो पूर्णकालिक अध्यक्ष की गैर-मौजूदगी में इतने बड़े-बड़े फैसले ले कौन रहा है? शायद नाम सबको पता है, लेकिन अभी तक वो जुबान पर नहीं आ पा रही है। जम्मू में जिस तरह से संकतों में ही सही शक्ति प्रदर्शन की शुरुआत हो रही, उसकी बानगी राहुल के केरल के उत्तर-दक्षिण वाले विवादित बयान में भी दिख चुकी है, जिसपर सिब्बल और शर्मा ने हां में हां मिलाने से परहेज किया है।

कांग्रेस में आने वाले दिनों में क्या हो सकता है?

कांग्रेस में आने वाले दिनों में क्या हो सकता है?

यूं समझ लीजिए कि जम्मू कांग्रेस के 'असंतुष्टों' का लॉन्चिंग पैड बनने के लिए तैयार है। यहां से वह कांग्रेस में बदलाव के लिए खुलकर आवाज बुलंद करने की तैयारी कर सकते हैं। इन्हें सिर्फ इंतजार रहेगा आने वाले पांच विधानसभा चुनावों के परिणाम का। इनमें से केरल कांग्रेस के लिए सबसे अहम है, जहां से राहुल गांधी सांसद भी हैं और लोकसभा में पार्टी और उसकी सहयोगियों ने एकतरफा कामयाबी भी हासिल की थी। तमिलनाडु से भी पार्टी को बहुत ज्यादा उम्मीदे हैं और असम में भी महाजोत बनने से बेहतर प्रदर्शन के आसार हैं। पुडुचेरी में भी सरकार गिरी है तो उसकी वजह सिर्फ यही मानी जा रही है कि नेतृत्व ने सिर्फ वफादारी पर भरोसा किया, वहां की राजनीति को परे रख दिया। इसलिए अगर इन चुनावों में पार्टी ने उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन किया तो फिर राहुल के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत कोई नहीं करेगा। लेकिन, यदि परिणाम कुछ अलग हुए तो सिर्फ 22-23 नेताओं का यह गुट क्या गुल खिलाएगा, वह संकेतों से ही जाहिर होने शुरू हो गए हैं।(तस्वीरें-फाइल)

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English summary
Boiling due to continuous neglect among dissidents of Congress, a new front against leadership may open from Jammu led by Ghulam Nabi Azad
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