मुरली मनोहर जोशी के इस बयान के क्या हैं मायने
बेंगलुरु । भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने मंगलवार को बड़ा बयान दे दिया। जिसको लेकर भाजपा ही नहीं विपक्षी दलों में इसके बारे में कयास लगाए जा रहे हैं। जोशी ने कहा कि भारत को ऐसे नेतृत्व की ज़रूरत है, जो प्रधानमंत्री के सामने निडर होकर बात कर सके, और उनसे बहस कर सके। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर पार्टी लाइन से ऊपर उठकर चर्चा करने की परम्परा 'लगभग खत्म' हो चुकी है, और उसे दोबारा शुरू करना होगा।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने यह टिप्पणी जुलाई में दिवंगत हुए कांग्रेस नेता जयपाल रेड्डी को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में की। उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि ऐसे नेतृत्व की बहुत ज़रूरत है, जो बेबाकी से अपनी बात रखता हो, सिद्धांतों के आधार पर प्रधानमंत्री से बहस कर सकता हो, बिना किसी डर के, और बिना इस बात की परवाह किए कि प्रधानमंत्री नाराज़ होंगे। यह बात उन्होंने उस सभा में कहीं जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत विपक्षी पार्टी के अधिकांश वरिष्ठ नेता मौजूद थे।
85-वर्षीय दिग्गज राजनेता की टिप्पणी इसलिए अहम है, क्योंकि वह पार्टी के मौजूदा नेतृत्व की आलोचना करते रहे हैं, और इसी साल उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका नहीं दिए जाने पर खुलेआम नाराज़गी भी व्यक्त की थी। मुरली मनोहर जोशी तथा पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी वर्ष 2014 से शुरू हुए नरेंद्र मोदी-अमित शाह युग में उन नेताओं में शुमार कर दिए गए हैं, जिन्हें जबरन सेवानिवृत्त कर दिया गया। इनके साथ 75 प्लस फार्मूले के तहत भाजपा के शीर्ष नेता आडवानी, जोशी के अलावा समित्रा महाजन को भी 2019 में टिकट नहीं दिया गया था।
वहीं इस बयान को उस खबर से भी जोड़ा जा रहा हैं जिसमें यह बात सामने निकल कर आयी थी कि बीजेपी नेता अपने शीर्ष नेतृत्व से खुश नहीं नाराज हैं। उनके बयान से मोदी के प्रति उनकी नाराजगी साफ झलक रही है। गुजरे जमाने को याद करते हुए उन्होंने मोदी पर निशाना साधा कि एक समय था जब लोग देशहित के मुद्दों पर पार्टी लाइन से ऊपर उठ कर बात करते थे और मुखर होकर बात रखते थे लेकिन अब लोग कोशिश नहीं कर रहे। जोशी का यह बयान उनकी मोदी और शाह के प्रति उनकी नाराजगी साफ दिखायी पड़ती है ।
बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी, लाल कृष्ण आडवानी और मुरली मनोहर जोशी ने भाजपा को शिखर तक पहुंचाया। इनकी जोड़ी त्रिमुर्ति के नाम से मशहूर थी। लेकिन जब से नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने भाजपा की कमान संभाली तब से भाजपा के आडवानी और जोशी जैसे बड़े नेता हाशिए पर चले गए। मोदी के पार्टी की कमान संभालते ही वह मार्गदर्शक की भूमिका में आ गए।
याद रहे कि शत्रुघन सिन्हा ने भी कांग्रेस का हाथ थामते हुए ये ही कहा था कि बीजेपी वन मैन आर्मी और वन मैन शो रह गई है। इसमें संदेह नहीं कि मोदी शाह और अडवानी की राजनीति में बहुत अंतर है। दोनों की विचारधाराओं और काम करने के तरीके में जमीन आसमान सा अंतर हैं। जिसमें सिर्फ मोदी शाह की चलती है। जिसके सामने पूरा विपक्ष तक धराशायी है।
राजनीतिक विशेषज्ञ जोशी के बयान को अयोध्या मंदिर विधवंश संबंधी मुकदमें से जोड़ कर देख रहे हैं। राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में आपराधिक षडयंत्र के लिए मुकदमे का सामना कर सकते हैं क्योंकि इस संवैधानिक पद के साथ उन्हें जो छूट मिली हुई है। उनका कार्यकाल पूरा होने के बाद यह छूट खत्म हो सकती है। महत्वपूर्ण है कि बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले में कल्याण सिंह समेत भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत 12 लोग आरोपी हैं। इन तीनों के अलावा सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व भाजपा सांसद विनय कटियार और साध्वी रितंभरा पर भी 19 अप्रैल 2017 को षड्यंत्र के आरोप लगाए थे।
हालांकि 19 अप्रैल, 2017 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पीसी घोष और जस्टिस आरएफ नरीमन की बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा आरोपियों को बरी किए गए फैसले खिलाफ सीबीआई द्वारा दायर अपील को अनुमति देकर आडवाणी, जोशी, उमा भारती समेत 12 लोगों के खिलाफ साजिश के आरोपों को बहाल किया था।
वहीं उच्चतम न्यायालय ने 19 जुलाई 2019 को बाबरी विध्वंस मामले में सुनवाई करते हुए अपना आदेश सुनाया। अदालत ने कहा कि भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और अन्य नेताओ के मामले में आज की तारीख से नौ महीने के अंदर फैसला दिया जाना चाहिए।
इस मामले की सुनवाई लखनऊ में ट्रायल कोर्ट के सीबीआई जज एसके यादव कर रहे हैं। वह 30 सितंबर, 2019 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इससे पहले उन्होंने शीर्ष अदालत को पत्र लिखकर कहा था कि बाबरी मामले में मुकदमे की सुनवाई को पूरा करने के लिए और समय चाहिए। जिसमें भाजपा नेता भी शामिल हैं।
उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में लखनऊ ट्रायल कोर्ट के विशेष सीबीआई जज एसके यादव के कार्यकाल को बढ़ाने का निर्देश दिया है। यादव बाबरी विध्वंस मामले की सुनवाई कर रहे हैं। न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन और सूर्य कांत की पीठ ने यह भी कहा कि मामले की सुनवाई में सबूतों की रिकार्डिंग छह महीने में पूरी कर ली जाए।
1992 में बाबरी मस्जिद के ढांचे को ढहा दिया गया था। जिसमें आडवाणी, जोशी, उमा भारती सहित भाजपा नेता शामिल थे। पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह चार हफ्तों के अंदर विशेष जज के कार्यकाल को बढ़ाने के लिए उचित आदेश पास करे। विशेष जज 30 सितंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
न्यायालय ने कहा कि बढ़े हुए कार्यकाल के दौरान जज इलाहाबाद उच्च न्यायालय के प्रशासनिक नियंत्रण में रहेंगे। शीर्ष अदालत ने 19 अप्रैल, 2017 को इस मामले में आडवाणी, जोशी, उमा भारती के साथ ही भाजपा के पूर्व सांसद विनय कटियार और साध्वी ऋतंबरा पर भी आपराधिक साजिश के आरोप बहाल किए थे।