हरियाणा-महाराष्ट्र में कम वोटिंग के मायने क्या हैं
बीजेपी ने दोनों राज्यों की बुनियादी समस्याओं को छोड़ राष्ट्रीय सुरक्षा को मुद्दा बनाया. प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के चुनावी रैलियों में अनुच्छेद 370 और पाकिस्तान प्रमुखता से छाए रहे. दूसरी तरफ़ मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस आपसी कलह से जूझती रही और उसने बुनियादी समस्याओं को मुद्दा बनाने की कोशिश की. राहुल ने अपनी रैलियों में आर्थिक मंदी और बेरोज़गारी
हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के लिए सोमवार को मतदान ख़त्म हो गया.
हरियाणा में 65.57 फ़ीसदी वोट पड़े जबकि 2014 के विधानसभा चुनाव में यहां 76.13 फ़ीसदी वोटिंग हुई थी. ज़ाहिर है पिछले चुनाव में बंपर वोटिंग हुई थी लेकिन इस बार लोगों का उत्साह बहुत कम रहा.
महाराष्ट्र में भी पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में लोग मतदान करने कम पहुंचे. कल यानी 21 अक्टूबर को महाराष्ट्र में 60.5 फ़ीसदी लोगों ने वोट डाले जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में यहाँ वोटिंग प्रतिशत 63.08 था.
यहाँ तक कि दोनों राज्यों में इस साल हुए लोकसभा चुनाव में मतदान की तुलना में भी कम लोग वोट करने निकले. इस साल लोकसभा चुनाव में हरियाणा में 70.34 फ़ीसदी टर्नआउट रहा था और महाराष्ट्र में 61.02 फ़ीसदी.
आख़िर कम वोट पड़ने का मतलब क्या है?
हरियाणा में 2009 के विधानसभा चुनाव में वोटिंग प्रतिशत 72.3 था और 2014 में क़रीब चार प्रतिशत बढ़ गया. चार प्रतिशत ज़्यादा टर्नआउट रहा तो हरियाणा में सरकार बदल गई.
पहली बार बीजेपी प्रदेश में अपने दम पर सत्ता में आई. 2014 में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता उफ़ान पर थी और बीजेपी ने इसका फ़ायदा हरियाणा में भी उठाया.
बीजेपी का 2009 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में वोट शेयर 9.1 फ़ीसदी था जो 2014 में 33.2 फ़ीसदी पर पहुंच गया. 2009 से पहले हरियाणा में बीजेपी ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी आईएनएलडी की जूनियर हुआ करती थी. जब 2009 में पहली बार बीजेपी ने अकेले चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया तो चार सीटों पर ही सिमट गई थी.
2005 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में 71.9 फ़ीसदी लोगों ने वोट किया था और सरकार बदल गई थी. कांग्रेस आईएनएलडी को हराकर सत्ता में आई थी. साल 2000 के विधानसभा चुनाव में 69 फ़ीसदी टर्नआउट रहा था.
मतलब 2005 और 2009 के हरियाणा विधानसभा चुनाव के टर्नआउट ट्रेंड को देखें तो पता चलता है कि वोटिंग प्रतिशत बढ़ने पर सत्ताधारी पार्टी को ही जीत मिली है. लेकिन 2014 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में ऐसा नहीं हुआ.
2014 में 2009 के हरियाणा विधानसभा चुनाव की तुलना मे वोटिंग प्रतिशत लगभग चार फ़ीसदी ज़्यादा था लेकिन सरकार बदल गई. लेकिन दिलचस्प है कि 2014 में जिस उत्साह से हरियाणा की जनता ने बीजेपी को सत्ता सौंपी थी वो उत्साह इस बार नहीं दिखा.
हरियाणा में साल दो हज़ार से लगातार वोट प्रतिशत बढ़ता रहा है. 2000 के बाद पहली बार हुआ है जब हरियाणा विधानसभा चुनाव में वोटिंग टर्नआउट में भारी गिरावट आई है. इतना को साफ़ है कि 2014 में हरियाणा के लोगों ने बीजेपी के प्रति जितनी दिलचस्पी दिखाई थी उतनी इस बार नहीं दिखी.
इन्हें भी पढ़िएः
- Exit Polls: महाराष्ट्र, हरियाणा चुनाव में किसको कितनी सीटें
- क्या बीजेपी-शिवसेना दोहरा पाएंगी 2014 का इतिहास
महाराष्ट्र चुनाव के ट्रेंड के मायने
महाराष्ट्र में 2009 के विधानसभा चुनाव में 59.6% लोगों ने वोट किया था और 2014 के विधानसभा चुनाव में लगभग चार प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी और सत्ता बीजेपी के पास चली गई.
साल 2004 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 63.4% लोगों ने वोट किया था. मतलब 2009 में 2004 की तुलना में लगभग चार प्रतिशत कम लोगों ने वोट किया तब भी सत्ता कांग्रेस के पास ही रही.
1999 के विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र में वोटिंग टर्नआउट 60.9% रहा था. मतलब महाराष्ट्र में हरियाणा की तरह कोई वोट प्रतिशत बढ़ने और घटने का तय पैटर्न नहीं है.
दूसरी तरफ़ हरियाणा में 2014 के विधानसभा चुनाव की तरह महाराष्ट्र के लोगों ने बहुत उत्साह के साथ बीजेपी को सत्ता नहीं सौंपी थी.
महाराष्ट्र में 2014 में जब बीजेपी और शिवसेना सत्ता में आई तो 2009 की तुलना में क़रीब चार प्रतिशत ज़्यादा ही टर्नआउट रहा था जबकि हरियाणा में 2009 की तुलना में 2014 में दस फ़ीसदी से ज़्यादा लोगों ने वोट किया था.
दोनों राज्यों में पिछले पाँच सालों से बीजेपी सत्ता में है और इस साल संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के बाद पहली बार कोई नया जनादेश आएगा. इन चुनावों के नतीजों से ये भी साफ़ हो जाएगा कि बीजेपी और मज़बूत होगी या विपक्ष में जान आएगी.
बीजेपी ने दोनों राज्यों की बुनियादी समस्याओं को छोड़ राष्ट्रीय सुरक्षा को मुद्दा बनाया. प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के चुनावी रैलियों में अनुच्छेद 370 और पाकिस्तान प्रमुखता से छाए रहे.
दूसरी तरफ़ मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस आपसी कलह से जूझती रही और उसने बुनियादी समस्याओं को मुद्दा बनाने की कोशिश की. राहुल ने अपनी रैलियों में आर्थिक मंदी और बेरोज़गारी को मुद्दा बनाने की कोशिश की.
चुनावी कैंपेन के बीच केंद्रीय जांच एजेंसियों ने विपक्षी नेताओं के पुराने मामले भी खोले. मतदान के एक दिन पहले भारतीय सेना की तरफ़ से पाकिस्तान नियंत्रित इलाक़े में कथित आतंकवादी कैंपों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन करने की घोषणा की गई.
अगले दिन अख़बारों में आर्मी की घोषणा सुर्खियां बनीं. हालांकि बीजेपी ने दोनों राज्यों में किसानों और बेरोज़गारों को लेकर जो वादे किए थे उन पर बात न के बराबर हुई.
दोनों राज्यों के चुनाव में विपक्षी पार्टियों में नेतृत्व का संकट साफ़ दिखा. राहुल गांधी ने दोनों राज्यों में कुछ रैलियां कीं लेकिन पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ख़राब सेहत के कारण कोई रैली नहीं कर पाईं.
दूसरी तरफ़ प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने दोनों राज्यों में जमकर कैंपेन किए. शाह और मोदी ने अनुच्छेद 370, पाकिस्तान और एनआरसी का भी मुद्दा उठाया. पाँच अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी किए जाने के बाद कोई पहला जनादेश आने वाला है.
सोमवार को मतदान ख़त्म होने के बाद टीवी चैनलों का एग्ज़िट पोल आया. पाँच एग्ज़िट पोल के मुताबिक़ दोनों राज्यों में बीजेपी फिर से सत्ता हासिल करने जा रही है. कुछ एग्ज़िट पोल में तो विपक्षी पार्टियों के सूपड़ा साफ़ होने का अनुमान लगाया गया है.
दोनों राज्यों में वोटों की गिनती परसों यानी 24 अक्टूबर को होगी. हाल के चुनावों में एग्ज़िट पोल के नतीजे मतगणना के नतीजों के क़रीब-क़रीबी रहे हैं. ऐसे में सबको यही लग रहा है कि बीजेपी फिर से सत्ता पर क़ाबिज होने जा रही है.
बीजेपी ने दोनों राज्यों में अपने पुराने मुख्यमंत्रियों को ही ही इस बार भी चेहरा बनाया है जबकि कांग्रेस ने महाराष्ट्र में कोई चेहरा आगे नहीं किया और हरियाणा में हुड्डा के नेतृत्व में चुनाव लड़ा.