क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

दिल्ली सरकार के रोज़गार मेले की क्या है हक़ीक़त: ग्राउंड रिपोर्ट

निदेशालय के अनुभाग अधिकारी राजेश तंवर कहते हैं, "सुबह से शाम तक क़रीब 25 हज़ार से ज़्यादा लोग यहां पहुँचे हैं. उम्मीद है मेले के दूसरे दिन भी काफ़ी लोग आएँगे. रोज़गार देने वाली कंपनियों ने भी इस बार ख़ूब पहुँची हैं. बल्कि कई कंपनियाँ तो ऐसी भी थी जिन्होंने बिल्कुल लास्ट में पंजीकरण किया तो उनके लिए स्टॉल की भी व्यवस्था नहीं हो सकी. लेकिन फिर भी आयोजन का पहला दिन काफ़ी अच्छा रहा."

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News

21 जनवरी, दिन सोमवार, सुबह के दस बजे हैं. दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम के बाहर भीड़ धीरे-धीरे बढ़ने लगी है. गेट नंबर सात के सामने हज़ारों युवा हाथों में सर्टिफ़िकेट और मार्कशीट लिए पंक्तिबद्ध खड़े हैं. उनकी यह कतार बढ़ते-बढ़ते क़रीब आधा किलोमीटर लंबी हो चुकी है.

त्यागराज स्टेडियम आज एक ऐसे कैन्वस में बदल चुका है जिस पर देश में फैली 'बेरोज़गारी की तस्वीर' साफ़ देखी जा सकती है. यहां दो दिवसीय 'विशाल रोज़गार मेला' चल रहा है जिसमें भाग लेने दिल्ली और आसपास के हज़ारों बेरोज़गार युवा पहुँच रहे हैं.

स्टेडियम के बाहर दिल्ली पुलिस के जवान तैनात हैं जो हर आने वाले की तलाशी लेने के बाद उन्हें अंदर भेज रहे हैं. अंदर पहुँचते ही एक बड़ा-सा फ़्लेक्स लगा है जिसके इर्द-गिर्द लोग भीड़ लगाए खड़े हैं.

यह फ़्लेक्स लोगों को निर्देशित कर रहा है कि उनकी योग्यता के अनुसार उन्हें नौकरी पाने के लिए किस दिशा में बढ़ना है. इस फ़्लेक्स से मार्गदर्शन लेकर लोग अलग-अलग स्टॉल की ओर बढ़ रहे हैं.

अलग-अलग कंपनियों के क़रीब 75 स्टॉल यहां लगे हैं. दिल्ली के श्रम मंत्री गोपाल राय के अनुसार इस रोज़गार मेले में पहुँची ये 75 कंपनियाँ कुल 12,700 से अधिक नौकरियाँ देने जा रही हैं.

नौकरी देने वाली इन कंपनियों में पतंजलि, ओला, इंडिया बुल्ज़, टाइम्स ऑफ़ इंडिया और एलआईसी जैसे बड़े नाम भी शामिल हैं. दिल्ली सरकार द्वारा आयोजित यह रोज़गार मेला पिछले कुछ सालों से हर साल आयोजित किया जा रहा है.

दिल्ली सरकार का रोज़गार मेला
Rahul Kotyal/BBC
दिल्ली सरकार का रोज़गार मेला

दिल्ली सरकार के रोज़गार निदेशालय के अनुसार पिछले साल इस मेले में क़रीब 40 हज़ार लोगों ने भाग लिया था. इनमें से क़रीब सात हज़ार लोग शॉर्ट लिस्ट हुए थे जिन्हें चयन प्रक्रिया के दूसरे दौर में शामिल होने का मौक़ा मिला.

इसी तरह साल 2017 में 40 हज़ार लोगों ने इस मेले में शिरकत की जिनमें से 12 हज़ार शॉर्ट लिस्ट हुए थे और साल 2015 में कुल 12 हज़ार प्रतिभागियों में से क़रीब 7700 शॉर्ट लिस्ट हुए थे.

दिल्ली के रोज़गार निदेशालय में बतौर अनुभाग अधिकारी कार्यरत राजेश तंवर बताते हैं, "हमारे पास शॉर्ट लिस्ट किए गए लोगों का ही आँकड़ा मौजूद है. अंततः कितने लोगों को नौकरी मिली यह आँकड़ा हमारे पास नहीं होता क्योंकि फ़ाइनल सलेक्शन यहां नहीं होता. यहां से कंपनियाँ लोगों को शॉर्ट लिस्ट करती हैं और फिर चयन का अगला राउंड कंपनी में ही होता है. इसलिए हमारे पास सिर्फ़ शॉर्ट लिस्ट किए गए लोगों की ही संख्या होती है."

राजेश तंवर यह भी कहते हैं, "शॉर्ट लिस्ट किए गए अधिकतर लोगों को नौकरी मिल ही जाती है."

लेकिन रोहिणी की रहने वाली 25 वर्षीय शीतल इस बात से इत्तेफ़ाक नहीं रखती. शीतल पिछले साल भी इस मेले में पहुँची थी और उनको एक कंपनी ने कम्प्यूटर ऑपरेटर के पद के लिए शॉर्ट लिस्ट भी कर लिया था.

लेकिन शीतल कहती हैं, "कंपनियाँ यहां जो दावे करती हैं और जितना पैसा देने की बात कहती हैं, असल में उतना नहीं देती. पिछले साल जब यहां से शॉर्ट लिस्ट होने के बाद मैं दूसरे राउंड के लिए कंपनी के ऑफ़िस पहुँची तो मुझे बताया गया कि मुझे रोज़ 12 घंटे की शिफ़्ट करनी होगी वरना उतने पैसे नहीं मिलेंगे जितने शुरुआत में बताए गए थे."

अनुभव और योग्यताओं के अनुरूप रोज़गार नहीं

इस रोज़गार मेले में पहुँचे अधिकतर लोगों को यही शिकायत है कि उन्हें उनकी योग्यताओं और अनुभव के अनुरूप रोज़गार नहीं मिल रहा.

महारानी बाग में रहने वाले 23 साल के रौनक़ सोलंकी कहते हैं, "मैंने बीटेक किया है और मुझे एक साल का अनुभव भी है. लेकिन यहां मुझे 22 हज़ार रुपए महीने की नौकरी मिल रही है. इससे ज़्यादा तो एक बीटेक ग्रेजुएट को कॉलेज से पास होते ही मिल जाते हैं.''

रौनक़ आगे कहते हैं, ''मैं यहां इसलिए आया था ताकि मुझे कुछ बेहतर विकल्प मिल सकें. लेकिन यह मेला हमारे लिए नहीं, कंपनियों के लिए है. ताकि उन्हें सस्ते में काम करने वाले कर्मचारी मिल सकें."

34 वर्षीय पुष्पा कुमारी का भी इस मेले में अनुभव लगभग रौनक़ जैसा ही रहा. महिपालपुर की रहने वाली पुष्पा एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी करती हैं और उन्हें क़रीब सात साल का अनुभव है.

वह कहती हैं, "मैं दो जगह इंटरव्यू के लिए गई और दोनों जगह मुझे ऐसा लगा जैसे यहां सिर्फ़ खानापूर्ति हो रही है. ये लोग ऐसे लोगों की तलाश में हैं जो कम-से-कम पैसे में काम करने को तैयार हो जाएँ. इस तरह के मेलों में अधिकतर वह लोग आते हैं जिन्हें नौकरी की सख़्त ज़रूरत होती है. कंपनियाँ इसी का फ़ायदा उठाती हैं. उन्हें यहां ढेरों ऐसे लोग मिल जाते हैं जो सस्ते में काम करने को तैयार हैं. सरकार को भी कहने को हो जाता है कि हमने जो रोज़गार मेला आयोजित किया उसमें हज़ारों लोगों को रोज़गार मिल गया."

रौनक और पुष्पा के अनुभव किस हद तक सही हैं, इसकी पुष्टि यहां पहुँची कंपनियाँ ख़ुद भी कर देती हैं. 'सिल्वर लीफ़' नाम की एक कंपनी के लिए लोगों को भर्ती करने इस मेले में पहुँचे धीरज कुमार बताते हैं, "इस तरह के मेलों में लोगों को भर्ती करना काफ़ी आसान हो जाता है. वरना तो सेल्स और मार्केटिंग के लिए आजकल लोग ढूँढना बहुत मुश्किल हो गया है."

धीरज को अपनी कंपनी के लिए क़रीब सौ लोगों की तलाश है जो दसवीं या 12वीं पास हों और मार्केटिंग का काम कर सकें. ऐसे लोगों को कंपनी कितनी पगार देती है, यह सवाल पूछने पर धीरज बताते हैं, "सभी को 14 हज़ार से तो ऊपर ही दिया जाता है."

बताते चलें कि 14 हज़ार रुपए दिल्ली में न्यूनतम मज़दूरी है और इससे कम पगार देना एक दंडनीय अपराध है.

जहाँ एक ओर इस मेले में हज़ारों लोग अलग-अलग स्टॉल्स पर नौकरी पाने के लिए भटक रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर कुछ कंपनियाँ भी ऐसी हैं जो ख़ुद ही जा-जाकर लोगों को नौकरी देने के लिए तलाश रही हैं.

नोएडा के रहने वाले अजय जयसवाल के पास ऐसी ही एक कंपनी से 'ऑफ़र' आया है.

इस कंपनी के नुमाइंदों ने अजय को बताया है कि उन्हें 21 हज़ार प्रतिमाह वेतन दिया जाएगा जिसके बदले में अजय को रिकवरी यानी वसूली का काम करना होगा.

कंपनी के अनुसार अजय को हर महीने लोगों से बक़ाया वसूलने का एक टार्गेट दिया जाएगा जिसमें से कम-से-कम उन्हें 98 प्रतिशत पूरा करना ही होगा.

अजय कहते हैं, "पता नहीं इस कंपनी को कर्मचारियों की तलाश है या गुंडों/दबंगों की. मुझे ऐसी नौकरी नहीं करनी. जान है तो जहान है. यहां पहुँचा कोई भी आदमी ऐसी नौकरी नहीं करना चाहेगा, तभी शायद कंपनी वाले ख़ुद ही जा-जाकर लोगों को नौकरी के लिए खोज रहे हैं."

दोपहर के दो बजे तक यहां पहुँचे कई लोग वापस लौटने लगे हैं. इनमें अधिकतर मायूस होकर ही लौट रहे हैं. तिलक नगर से यहां आए हरी ओम और सुमित कुमार भी इन्हें लोगों में से हैं.

सुमित कहते हैं, "हमने अख़बार में इस मेले के बारे में पढ़ा था. हमें लगा यहां कई कंपनियाँ होंगी तो कोई अच्छी नौकरी मिल जाएगी. लेकिन जो कंपनी नौकरी दे रही हैं वो बहुत कम पैसे दे रही हैं. मैंने तीन साल विशाल मेगा मार्ट में अकाउंट्स का काम किया है. यहां कोई भी कंपनी मुझे अकाउंट्स डिपार्टमेंट में नौकरी के लिए उतना पैसा भी नहीं दे रही जितना मुझे अपनी पिछली नौकरी में मिलने लगा था."

दिल्ली सरकार का रोज़गार मेला
Rahul Kotyal/BBC
दिल्ली सरकार का रोज़गार मेला

मेले में पहुँचे कई लोग शॉर्ट लिस्ट होने पर ख़ुश भी हैं लेकिन यहां आए अधिकतर लोग सुमित की तरह ही निराश होकर लौट रहे हैं. लेकिन रोज़गार निदेशालय के लिए यह आयोजन सफल रहा है क्योंकि आँकड़े बताते हैं कि इस बार पिछले साल से भी ज़्यादा लोगों ने इसमें भाग लिया है.

निदेशालय के अनुभाग अधिकारी राजेश तंवर कहते हैं, "सुबह से शाम तक क़रीब 25 हज़ार से ज़्यादा लोग यहां पहुँचे हैं. उम्मीद है मेले के दूसरे दिन भी काफ़ी लोग आएँगे. रोज़गार देने वाली कंपनियों ने भी इस बार ख़ूब पहुँची हैं. बल्कि कई कंपनियाँ तो ऐसी भी थी जिन्होंने बिल्कुल लास्ट में पंजीकरण किया तो उनके लिए स्टॉल की भी व्यवस्था नहीं हो सकी. लेकिन फिर भी आयोजन का पहला दिन काफ़ी अच्छा रहा."

शाम के चार बजे तक 'रोज़गार मेले' की भीड़ लगभग पूरी तरह छँट चुकी है. हल्की बारिश भी शुरू हो गई है और यहां मौजूद ज़्यादातर युवा अपने सर्टिफ़िकेट, मार्कशीट और अन्य दस्तावेज़ों को किसी तरह भीगने से बचाने के लिए जूझ कर रहे हैं.

त्यागराज स्टेडियम के कैन्वस पर बेरोज़गारी की जो तस्वीर आज बनी थी, वह इस बारिश में भीगकर अब और भी बुरी दिखने लगी है.

BBC Hindi
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
What is the Delhi Governments employment fair Ground Report
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X