गुजरात किस मामले में है सबसे पीछे
गुजरात के विकास मॉडल की हक़ीक़त मानव विकास के सूचकांक ज़ाहिर करते हैं.
गुजरात को लेकर दावा है कि विकास के पैमाने पर ये एक सफल राज्य है और ऐसा पूर्व मुख्यमंत्री, नरेंद्र मोदी की आर्थिक नीतियों की वजह से हुआ, जोकि इस समय भारत के प्रधानमंत्री हैं.
हक़ीक़त ये है कि राज्य की अर्थव्यवस्था मोदी के ज़माने में ज़रूरी बढ़ी थी. हालांकि ये साफ नहीं है कि मोदी की नीतियों से ऐसा हुआ. लेकिन मानव विकास सूचकांकों की जब बात आती है तो ये बाकी राज्यों के मुक़ाबले बहुत पीछे दिखाई देता है.
गुजरात चुनावों के नतीजे आने वाले हैं और चुनाव प्रचार के दौरान विकास की गूंज भी खूब सुनाई दी.
गुजरात चुनावों को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने भी मतदाताओं को ये याद दिलाने की कोशिश की.
प्रधानमंत्री नरेंद्र 2001 से 2014 के बीच गुजरात के मुख्यमंत्री रहे थे.
उनके प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी के समय जोरशोर से ये दावा किया गया कि मोदी की नीतियों की वजह से ही गुजरात किसी भी राज्य की तुलना में सबसे तेज़ विकास कर रहा था. उनकी इन नीतियों को 'मोदीनॉमिक्स' कह कर प्रचारित किया गया.
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मोदी बिज़नेस फ़्रेंडली?
गुजराती मतदाताओं के नाम एक चिट्ठी में मोदी ने लिखा, "गुजरात में कोई भी इलाक़ा ऐसा नहीं है जहां विकास न हो रहा हो."
लेकिन क्या गुजरात वाकई देश का सबसे तेज़ विकास करने वाला हिस्सा है? और इसकी वजह मिस्टर मोदी खुद हैं?
मोदी के राज में गुजरात ने सड़कों, ऊर्जा और जल आपूर्ति जैसे बुनियादी ढांचे में काफ़ी निवेश किया.
ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार, साल 2000 से 2012 के बीच राज्य ने क़रीब 3,000 ग्रामीण सड़क परियोजनाओं को पूरा किया,
इसके अलावा 2004-05 और 2013-14 के बीच प्रति व्यक्ति उपलब्ध बिजली में 41 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई.
दूसरी तरफ़ मोदी ने फ़ोर्ड, सुज़ुकी और टाटा जैसी बड़ी कंपनियों को गुजरात में अपने प्लांट लगाने के लिए लाल फ़ीताशाही को ख़त्म कर दिया.
और इसने गुजरात के आर्थिक विकास की चर्चित कहानी लिखी. साल 2000 और 2010 के बीच राज्य की जीडीपी 9.8 प्रतिशत रही, जबकि पूरे देश की औसत विकास दर 7.7 प्रतिशत थी.
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के एक विश्लेषण के मुताबिक, हाल के समय में गुजरात के मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर ने तेज़ी से विकास किया है.
क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी कहते हैं कि इसमें मोदी के 'बिज़नेस फ़्रेंडली' रवैये ने भी मदद की है.
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पूरे देश से गुजरात आगे
उनके मुताबिक, "गुजरात में मैन्युफ़ैक्चरिंग का विकास इस बात का संकेत है कि मोदी ने बेहतर निवेश का माहौल बनाकर राज्य की मदद की."
लेकिन ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर डॉ निकिता सूद कहती हैं कि गुजरात की संपन्नता का श्रेय मोदी को अकेले नहीं जाता है.
वो कहती हैं कि 'गुजरात में पहले से ही विकास की धारा मौजूद रही है.'
ऐतिहासिक रूप से, गुजरात भारत का सबसे औद्योगिकृत राज्य रहा है और रणनीतिक रूप से ये पश्चिमी तट पर स्थित है.
सूद कहती हैं, "यहां उद्योग, व्यापार और मजबूत आर्थिक बुनियाद का इतिहास रहा है. मोदी का श्रेय बस इतना ही है कि उन्होंने इसे नष्ट नहीं किया. लेकिन वो इसके जनक नहीं हैं."
मोदी के नेतृत्व में गुजरात ने विकास किया, लेकिन उनसे पहले भी राज्य सम्पन्न था.
सवाल ये है कि उनकी नीतियों ने राज्य के विकास की क्या वाकई में रफ़्तार बढ़ाई थी?
इसे सिद्ध करने के लिए 2001 से 2014 के बीच गुजरात और पूरे देश के औसत विकास दर के बीच अंतर को देखने ज़रूरत पड़ेगी.
लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स प्रोफ़ेसर मैत्रीश घटक और किंग्स कॉलेज ऑफ़ लंदन के डॉ संचारी रॉय इसकी पड़ताल करते हैं.
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मानव विकास सूचकांक की हालत
प्रोफ़ेसर घटक कहते हैं, "साक्ष्य इस बात की पुष्टि नहीं करते कि गुजरात के आर्थिक प्रदर्शन पर मोदी का कोई निर्णायक असर पड़ा था."
वो कहते हैं, "मोदी राज में, गुजरात की कृषि विकास दर, मोदी पूर्व भारत की तुलना में बहुत ज्यादा थी."
लेकिन कुल जीडीपी या मैन्युफ़ैक्चरिंग के लिए ये बात सही नहीं है.
गुजरात के चुनाव प्रचार के दौरान एक नारा बहुत चर्चित हुआ- 'विकास पागल हो गया है.'
समाज के हाशिए पर पड़े उन लोगों के बीच ये काफ़ी लोकप्रिय हुआ, जो नहीं मानते कि सम्पन्नता समाज के निचले स्तरों तक पहुंची है.
और ऐसा इसलिए, क्योंकि जब मानव विकास सूचकांक की बात आती है तो गुजरात अन्य सम्पन्न राज्यों से काफ़ी पीछे दिखाई देता है, चाहे वो ग़ैरबराबरी हो या शिक्षा और स्वास्थ्य की बात हो.
भारत के 29 राज्यों में शिशु मृत्युदर के मामले में गुजरात का स्थान 17वां है. राज्य में एक हज़ार जन्म पर 33 शिशुओं की मौत होती है, जबकि केरल, महाराष्ट्र और पंजाब में ये संख्या क्रमशः 12, 21 और 23 है.
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डिलीवरी के समय होने वाली मौतों यानि मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) के मामले में भी गुजरात का हाल बहुत अच्छा नहीं है.
एमएमआर एक लाख जन्म में महिलाओं की मौत की संख्या को दर्शाता है.
गुजरात में 2013-14 में यह संख्या 72 थी, जोकि 2015-16 में बढ़कर 85 हो गई.
गुजरात में पांच साल से कम उम्र के 10 बच्चों में क़रीब चार का वज़न औसत से कम है. हालांकि पिछले दशक में ये संख्या कम हुई है लेकिन इस पैमाने पर 29 राज्यों में गुजरात का स्थान 25वां है.
प्रोफ़ेसर घटक चेताते हैं कि गुजरात का औद्योगिक विकास का फल हर किसी तक नहीं पहुंच रहा है.
उनके मुताबिक, "जबतक ये उद्योग लेबर मार्केट में ऊंचा रोजग़ार सृजन और ऊंचे वेतन को पैदा नहीं करते या ग़रीबों के लिए सामाजिक कल्याण पर खर्च को नहीं बढ़ाया जाता, असली विकास के नतीजे नहीं मिलेंगे."