क्या है सीएम के तौर पर 59 साल के उद्धव ठाकरे की सबसे बड़ी कमजोरी?
नई दिल्ली- सिर्फ 59 साल की उम्र में उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के 18वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली है। वह मनोहर जोशी और नारायण राणे के बाद शिवसेना के तीसरे नेता हैं, जो सीएम बने हैं। लेकिन, जोशी और राणे के ऊपर उद्धव के पिता बालासाहेब ठाकरे का हाथ था और तबकी सरकारों का कंट्रोल मातोश्री के पास होता था। अभी ये तय नहीं हुआ है कि उद्धव मातोश्री में ही रहेंगे या मुख्यमंत्री के आधिकारिक निवास वर्षा में शिफ्ट करेंगे। लेकिन, सबसे बड़ी बात ये है कि मुख्यमंत्री का पद जितना उनके लिए गर्व की बात है, उतनी ही बड़ी यह चुनौती भी साबित हो सकती है। आइए जानते हैं कि सीएम के तौर पर उनकी सबसे बड़ी कमजोरी क्या है? जिससे आने वाले दिनों में उन्हें निपटना पड़ सकता है।
अनुभव का अभाव
उद्धव ठाकरे की छवि अपने पिता के विपरीत बहुत ही सौम्य व्यक्तित्व की रही है। उन्होंने बालासाहेब की राजनीतिक विरासत तो संभाली है, लेकिन उनमें उन जैसा सियासी दबदबा नहीं दिखता, जिसके दम पर वह मातोश्री से ही सरकारें चलाया करते थे। पिता के बाद उद्धव ने पार्टी का संगठन तो संभाला है, लेकिन उनके पास कोई भी प्रशासनिक अनुभव नहीं है। जहां तक चुनावी राजनीति की बात है तो उद्धव आजतक खुद पार्षद का भी चुनाव नहीं लड़े हैं। उनके परिवार से पहली बार चुनाव लड़ने का अनुभाव इस बार उनके बेटे आदित्य ठाकरे को ही मिला है।
विचारधाराओं की टकराव
उद्धव ठाकरे ने जबसे पार्टी की जिम्मेदारी संभाली है, उनका तालमेल सामान्य विचारधारा वाली पार्टी बीजेपी के साथ रहा है। लेकिन, अब वे सिर्फ शिवसेना के नेता नहीं हैं। वे शिवसेना के अलावा एनसीपी और कांग्रेस की गठबंधन वाले महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के नेता हैं। अबतक शिवसेना की पूरी राजनीतिक विचारधारा ही कांग्रेस विरोध और आक्रामक हिंदुत्व पर टिकी रही है। लेकिन, अब उन्हें कांग्रेस के साथ-साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ हर मसले पर कदम मिलाकर चलने की जिम्मेदारी आ गई है। जिसकी आदत अभी तक न तो शिवसेना के किसी नेता की रही है और न ही जमीन से जुड़े उसके किसी कार्यकर्ता की। अब उन्हें आक्रामक हिंदुत्व को किनारे रखकर 'सेक्युलर' धारा की राजनीति में बहने की कोशिश करनी पड़ेगी।
रिमोट कंट्रोल या डायरेक्ट कंट्रोल से चलेगी सरकार?
पिछले एक महीने से प्रदेश में जो सियासी ड्रामा चला है, उसके आखिर में सबसे अहम किरदार एनसीपी प्रमुख शरद पवार बनकर उभरे हैं। अगर सीएम के तौर पर उद्धव बांद्रा के मातोश्री से निकलकर दक्षिण मुंबई के वर्षा की ओर प्रस्थान करते हैं तो देखने वाली बात होगी कि वह सत्ता का कंट्रोल खुद अपने पास रखते हैं या फिर यह रिमोट दक्षिण मुंबई के ही हाउस नंबर-2 सिल्वर ओक्स की ओर शिफ्ट कर जाता है, जहां पवार का घर है। क्योंकि, महाराष्ट्र में अपना पावर दिखा चुके पवार, बड़े-बुजुर्गों की तरह शांत बैठकर उद्धव को अपने मिजाज से काम करने की छूट दे देंगे, यह लाख टके का सवाल है।
पार्टी के कट्टर कैडर्स को क्या जवाब देंगे?
जिस चुनाव में शिवसेना बीजेपी के साथ गठबंधन में विजय होकर आई, उसी चुनाव में नारायण राणे के बेटे नितेश राणे के खिलाफ पार्टी ने अपना उम्मीदवार उतार दिया था। जबकि, राणे भाजपा के आधिकारिक उम्मीदवार थे। सिर्फ इसलिए, क्योंकि अपने दो पुराने सहयोगियों को बाल ठाकरे ने कभी माफ नहीं किया था। उनमें से एक नाम नारायण राणे का है और ये बात उद्धव की पार्टी की ओर से रखी भी गई थी। लेकिन, अगर अब छगन भुजबल को लेकर कोई शिवसैनिक सवाल पूछेगा तो उद्धव उसे कैसे समझाएंगे? क्योंकि, भुजबल ही वह दूसरे शख्स हैं, जिनकी मातोश्री में एंट्री खुद उद्धव के पिता बंद करके गए थे। अब वही भुजबल एनसीपी कोटे पर कैबिनेट मंत्री के तौर पर फैसले लेते रहेंगे। ये तमाम ऐसी कमजोरियां हैं, जिससे निपटना आगे चलकर उद्धव के लिए बहुत बड़ी चुनौतियां साबित होने वाली हैं।
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