क्या है ये राजद्रोह कानून,जानिए इसके बारे में सबकुछ
नई दिल्ली, 10 मई। राजद्रोह की धारा अक्सर चर्चा में रहती है। जब भी किसी पर इस धारा का इस्तेमाल किया जाता है तो यह सुर्खियों में आता है। लेकिन सोमवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि उसने फैसला लिया है कि वह राजद्रोह के कानूनी की समीक्षा करने जा रही है। सरकार ने कोर्ट से अपील की है कि वह सरकार की समीक्षा का इंतजार करे और इसके बाद ही राजद्रोह कानून के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करे।
कानून
पर
समीक्षा
को
तैयार
केंद्र
रिपोर्ट
की
मानें
तो
केंद्र
सरकार
ने
यह
भी
कहा
है
कि
प्रधानंमत्री
नरेंद्र
मोदी
ने
इस
कानून
पर
स्पष्ट
राय
जाहिर
की
है
और
कहा
है
कि
आम
लोगों
के
स्वतंत्रता
का
खयाल
रखा
जाना
चाहिए,
उनके
मानवाधिकारों
का
सम्मान
करना
चाहिए।
पीएम
का
विश्वास
है
कि
आजादी
के
75वीं
सालगिरह
पर
पूराने
उपनिवेश
वाले
कानून
की
भारत
में
कोई
जगह
नहीं
है।
दरअसल
केंद्र
सरकार
ने
यह
यू
टर्न
इस
पूरे
मामले
के
सुप्रीम
कोर्ट
पहुंचने
के
बाद
लिया
है।
तीन
जजों
की
बेंच
से
केंद्र
सरकार
ने
कहा
है
कि
वह
उन
याचिकाओं
को
खारिज
कर
दे
जिसमे
राजद्रोह
के
कानून
को
चुनौती
दी
गई
है।
केंद्र
ने
कोर्ट
में
कही
ये
बात
केंद्र
सरकार
की
ओर
से
एक
लिखित
पत्र
में
कहा
गया
है
कि
1962
की
संवैधानिक
बेंच
बनाम
बिहार
सरकार
के
मामले
में
सुप्रीम
कोर्ट
का
फैसला
है।
सुप्रीम
कोर्ट
ने
सभी
पहलुओं
पर
विचार
करने
के
बाद
राजद्रोह
के
कानून
को
बरकरार
रखा
था
और
इसकी
संवैधानिक
वैद्यता
को
सही
ठहराया
था।
इस
फैसले
को
सुप्रीम
कोर्ट
को
बाइंडिंग
जजमेंट
के
तौर
पर
देखना
चाहिए।
केंद्र
सरकार
की
ओर
से
कहा
गया
है
कि
तीन
जजों
की
बेंच
कानून
की
संवैधानिक
वैद्यता
पर
फैसला
नहीं
ले
सकती
है।
इसमे
कम
से
कम
पांच
जज
होने
चाहिए,
इसके
बाद
ही
कानून
की
संवैधानिक
वैद्यता
पर
फैसला
हो
सकता
है।
पहले
भी
कोर्ट
में
पहुंचा
है
मामला
बता
दें
कि
राजद्रोह
के
कानून
को
पहली
बार
चुनौती
नहीं
दी
गई
है।
पिछली
सरकारों
में
भी
इस
कानून
को
चुनौती
दी
गई
है।
पिछले
साल
सुप्रीम
कोर्ट
ने
केंद्र
सरकार
से
कहा
था
कि
आखिर
हम
क्यों
नहीं
इस
अंग्रेजों
के
समय
के
कानून
को
खत्म
नहीं
करते
हैं,
जिसका
इस्तेमाल
अंग्रेज
महात्मा
गांधी
के
खिलाफ
स्वतंत्रता
आंदोलन
को
दबाने
के
लिए
करते
थे।
लेकिन
अब
केंद्र
सरकार
ने
इस
पूरे
कानून
की
समीक्षा
की
बात
कही
है।
क्या
है
देशद्रोह
या
राजद्रोह
कानून
पहली
बात
तो
यह
समझ
लें
कि
यह
कानून
राजद्रोह
कहलाता
है
नाकि
देशद्रोह।
यानि
सरकार
के
खिलाफ
गतिविधि
को
इस
कानून
के
तहत
राजद्रोह
माना
जाता
है।
यह
देश
के
खिलाफ
अपराध
नहीं
है।
भारतीय
दंड
संहिता
के
अनुसार
धारा
124
ए
के
तहत
अगर
कोई
व्यक्ति
सरकारी
के
खिलाफ
कोई
लेख
लिखता
है,
या
ऐसे
किसी
लेख
का
समर्थन
करता
है
तो
वह
राजद्रोह
है।
इसके
अलावा
अगर
कोई
व्यक्ति
राष्ट्रीय
चिन्हों
का
अपमान
करता
है
या
संविधान
को
नीचा
दिखाने
की
कोशिश
करता
है
तो
वह
राजद्रोह
है।
ऐसा
करने
वाले
व्यक्ति
के
खिलाफ
राजद्रोह
कानून
के
तहत
केस
दर्ज
हो
सकता
है।
देश
विरोधी
संगठन
से
किसी
भी
तरह
का
संबंध
रखने
या
उसका
सहयोग
करने
वाले
के
खिलाफ
भी
राजद्रोह
का
केस
दर्ज
हो
सकता
है।
इस
कानून
के
तहत
दोषी
को
तीन
साल
की
सजा
या
जुर्माना
या
फिर
दोनों
लगाया
जा
सकता
है।
कब
आया
यह
कानून
और
क्यों
है
विवादों
में
देश
में
बढ़ती
वहाबी
गतिविधियों
के
खिलाफ
ब्रिटिश
सरकार
इस
कानून
को
लेकर
आई
थी।
उन
दिनों
ये
लोग
ब्रिटिश
सरकार
को
चुनौती
देते
थे,
इसी
वजह
से
इस
कानून
को
लाया
गया
था।
यहां
यह
समझने
वाली
बात
है
कि
यह
कानून
स्थायी
नहीं
है।
1950
के
संविधान
में
इस
कानून
को
जगह
नहीं
दी
गई
थी।
1951
के
पहले
संशोधन
में
इस
कानून
को
शामिल
किया
गया
था।
एक
सवाल
यह
भी
उठता
है
कि
आलोचना
कब
राजद्रोह
बन
जाती
है।
कोर्ट
ने
अपने
फैसले
में
कहा
है
कि
जबतक
कि
हिंसा
ना
हो
इस
कानून
का
इस्तेमाल
नहीं
होना
चाहिए।
लेकिन
कहते
हैं
ना
कि
शब्द
भी
हिंसक
हो
सकते
हैं,
जब
सरकारों
को
लगता
है
कि
किसी
बयान
से
हिंसा
हो
सकती
है
तो
वह
इस
कानून
का
इस्तेमाल
करती
हैं।
यही
वजह
है
कि
अक्सर
इस
कानून
का
गलत
इस्तेमाल
होता
है
और
इसकी
वजह
से
चर्चा
में
रहता
है।