कठुआ केस में लागू होने वाला रणबीर पीनल कोड क्या है
ऐसे में ये सवाल पूछा जा सकता है कि जम्मू और कश्मीर राज्य में अगर आईपीसी लागू नहीं होता तो इसकी ग़ैरमौजूदगी में ये कैसे तय किया जाता है कि क्या अपराध है और क्या नहीं और किस अपराध के लिए क्या सज़ा दी जा सकती है.
रणबीर पीनल कोड इसी सवाल का जवाब है. हम इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जम्मू और कश्मीर राज्य में आईपीसी की जगह आरपीसी लागू होता है जिसे भारतीय दंड संहिता
सुप्रीम कोर्ट ने कठुआ में बच्ची से गैंगरेप और हत्या का मामला पंजाब के पठानकोट में ट्रांसफ़र कर दिया है.
केस की सुनवाई अब पठानकोट की ज़िला अदालत में होगी.
इस मुकदमे की सुनवाई आईपीसी नहीं आरपीसी की धाराओं और प्रावधानों के तहत होगी.
क्या है आरपीसी?
आरपीसी यानी रणबीर पीनल कोड या रणवीर दंड संहिता.
बता दें कि आईपीसी यानी इंडियन पीनल कोड या भारतीय दंड संहिता के प्रावधान जम्मू और कश्मीर राज्य को छोड़कर देश के सभी राज्यों में लागू होते हैं.
ऐसे में ये सवाल पूछा जा सकता है कि जम्मू और कश्मीर राज्य में अगर आईपीसी लागू नहीं होता तो इसकी ग़ैरमौजूदगी में ये कैसे तय किया जाता है कि क्या अपराध है और क्या नहीं और किस अपराध के लिए क्या सज़ा दी जा सकती है.
रणबीर पीनल कोड इसी सवाल का जवाब है. हम इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जम्मू और कश्मीर राज्य में आईपीसी की जगह आरपीसी लागू होता है जिसे भारतीय दंड संहिता के तर्ज पर ही तैयार किया गया था.
चूंकि संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू और कश्मीर राज्य को स्वायत्ता का दर्जा देता है, इसलिए भारत संघ के सभी क़ानून इस राज्य में सीधे लागू नहीं होते.
यही वजह है कि जम्मू और कश्मीर में आईपीसी की जगह आरपीसी लागू है.
IPC और RPC में फ़र्क
आरपीसी, आईपीसी की ही तरह एक अपराध संहिता है जिसमें अपराधों की परिभाषाएं और उसके लिए तय की गई सज़ा के बारे में बताया गया है.
चूंकि रणबीर पीनल कोड ख़ास तौर पर जम्मू और कश्मीर के लिए तैयार किया गया था इसलिए आईपीसी से ये कुछ मामलों में ये अलग है.
कुछ धाराओं में 'भारत' की जगह 'जम्मू और कश्मीर' का इस्तेमाल किया गया है.
विदेशी ज़मीन पर या समुद्री यात्रा के दौरान जहाज़ पर किए गए अपराध से संबंधित धाराओं को आरपीसी से हटा दिया गया था.
वैसे एक बात और जानने लायक है कि आईपीसी की कई धाराएं भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग प्रावधानों के साथ लागू होती है.
यह जम्मू और कश्मीर में ब्रिटिश शासन के वक़्त से लागू है. उस वक़्त जम्मू और कश्मीर एक स्वतंत्र राज्य था और डोगरा वंश के रणबीर सिंह यहां के राजा थे.
कठुआ मामले में आरपीसी
चूंकि कठुआ जम्मू और कश्मीर में आता है, इसलिए बच्ची के बलात्कार और हत्या के मामले में यहां इसी राज्य का क़ानून यानी आरपीसी लागू होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने भले ही मुक़दमे की सुनवाई जम्मू और कश्मीर से बाहर पंजाब के पठानकोट में कराने का फ़ैसला किया है लेकिन इससे क़ानून का ज्यूरिडिक्शन (क्षेत्राधिकार) नहीं बदलता.
यानी पठानकोट में सुनवाई होने के बावजूद इस केस का ट्रायल आईपीसी के तहत न होकर आरपीसी के तहत होगा क्योंकि अपराध की जगह पठानकोट नहीं बल्कि कठुआ है.
कठुआ मामले में बच्ची के परिवार की वकील दीपिका सिंह राजावत ने बताती हैं, "आईपीसी और आरपीसी में बहुत ज़्यादा फ़र्क नहीं है, ख़ासकर बलात्कार और हत्या के मामलों में. हालांकि धाराओं के क्रम में हेरफेर ज़रूर है लेकिन इससे कठुआ मामले की सुनवाई पर कोई असर नहीं पड़ेगा."
जम्मू-कश्मीर का केस पंजाब क्यों गया?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के लिए इसे पंजाब स्थानांतरित किया गया है क्योंकि जम्मू-कश्मीर में पीड़िता के परिवार, गवाहों और ज़रूरी काग़जातों को प्रभावित किए जाने की आशंका है.
सुप्रीम कोर्ट के वकील राजीव शर्मा का कहना है कि इस मामले का ट्रांसफ़र किया जाना अपने-आप में बहुत महत्वपूर्ण और बड़ा कदम है.
उन्होंने कहा कि चूंकि ये गैंगरेप और हत्या का मामला है और इसमें बहुत से लोग शामिल हैं इसलिए अब उन सबको पठानकोट जाना होगा. फिर चाहे वो मेडिकल टेस्ट करने वाला डॉक्टर हो या हत्या की सूचना देने वाला शख़्स.
इसके साथ ही मामले से जुड़े सारे काग़जात भी पंजाब भेजे जाएंगे.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ मामला ट्रांसफ़र किया है बल्कि इसके अलावा भी कई सख़्त हिदायतें दी हैं. इस मामले में पल-पल की हलचल पर कोर्ट की सीधी नज़र है."
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कुछ अहम बातें
- मामले के सारे कागज़ात सीलबंद कवर में स्पेशल मेसेंजर द्वारा पठानकोट के जिला अदालत में भेजा जाएगा.
- पठानकोट जिला अदालत का जज ही मामले की सुनवाई करेगा, अडीशनल जज का इसमें कोई दख़ल नहीं होगा.
- मामले की सुनवाई आरपीसी यानी रणवीर पीनल कोड के तहत रोज के रोज होगी.
- सुनवाई कैमरे पर होगी ताकि दोनों पक्ष ख़ुद को महफ़ूज महसूस करें और उनकी निजता से किसी तरह का समझौता न हो.
- सारे लिखित काग़जातों और गवाहों के बयानों का उर्दू से अंग्रेज़ी में अनुवाद किया जाएगा.
- मुकदमे की सुनवाई के लिए जितने भी अनुवादकों की ज़रूरत होगी, वो जम्मू-कश्मीर सरकार उपलब्ध कराएगी.
- मामले से जुड़े सभी लोगों और गवाओं के पठानकोट आने-जाने, खाने-पीने और ठहरने का इंतज़ाम जम्मू-कश्मीर सरकार कराएगी. जिन पर अपराध का आरोप है, उन्हें भी बिना किसी भेदभाव के ये सुविधा दी जाएगी.
- अगर सुनवाई के दौरान किसी गवाह का बयान शुरू हो गया है तो वक़्त का हवाला देकर उसे बीच में नहीं रोका जाएगा. बयान शुरू होने के बाद उसे पूरा किया जाना ज़रूरी है.
- सरकारी वकील भी जम्मू-कश्मीर सरकार ही भेजेगी.
- सुनवाई पूरी होने से पहले इस दौरान देश की किसी भी अदालत में इस मामले से सम्बन्धित किसी भी तरह की याचिका दायर नहीं की जा सकेगी.
- पीड़ित परिवार, परिवार से जुड़े लोगों और उनके वकील की सुरक्षा बरकरार रहेगी.
- नाबालिग अभियुक्त पर जुवेनाइल जस्टिस ऐक्ट के तहत मुक़दमा चलेगा और उसकी सुरक्षा भी बरकरार रहेगी.
इस साल जनवरी में जम्मू के कठुआ में बकरवाल समुदाय की एक बच्ची के साथ गैंगरेप कर उसकी हत्या कर दी गई थी.
इस मामले को लेकर देशभर में प्रदर्शन हुए थे और दोषियों के लिए कड़ी से कड़ी सज़ा की मांग की गई थी.