कोविड-19 के बाद मुंबई में कावासाकी बीमारी ने बढ़ाई मुश्किल, कई लोगों में मिले लक्षण
नई दिल्ली। देश पहले से ही वैश्विक महामारी कोरोना से लड़ रहा है। कोरोना की वजह से देश में हजारों लोगों की जान जा चुकी है, जबकि लाखों लोग इसकी चपेट में आज चुके हैं। मुंबई के हालात कोरोना की वजह से सबसे ज्यादा देश में खराब हैं, यहां हर रोज संक्रमित और मरने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है। लेकिन इन सब के बीच अब लोगों में खतरनाक कावासाकी रोग के भी लक्षण दिखने लगे हैं, जिसने लोगों की चिंता को और भी बढ़ा दिया है। भारत में कावासाकी बीमारी का पहला मरीज मुंबई में सामने आया है, 14 वर्ष के बच्चे को इस बीमारी ने अपनी चपेट में लिया है, अहम बात यह है कि बच्चा कोरोना संक्रमित भी है। उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया है। यही नहीं मुंबई के कई अस्पतालों में भी इस तरह के मामले सामने आए हैं। ऐसे में हमे यह समझने की जरूरत है कि आखिर यह कावासाकी बीमारी क्या है।
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कई देशों में फैला
दरअसल कावासाकी बीमारी सामान्य तौर पर पांच साल से कम उम्र के बच्चों को होती है और उनपर सबसे ज्यादा प्रभावी होती है। पिछले महीने भी चेन्नई में कुछ बच्चों में इस बीमारी के लक्षण नजर आए थे। बता दें कि यह बीमारी ना सिर्फ भारत बल्कि यूके, यूएस, इटली, स्पेन और चीन में भी देखने को मिली है। इन तमाम देशों में कोरोना के मरीजों में इस बीमारी के लक्षण देखने को मिल रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार कावासाकी रोग बच्चों में हृदय रोग का एक मुख्य कारण है।
बीमारी का इतिहास
यह बीमारी बच्चों की धमनियों को नुकसान पहुंचाती है। इसे कावासाकी सिंड्रोम या फिर म्यूकोस्यूटिनल लिम्फ नोड सिंड्रोम के नाम से भी जाना जाता है। पहली बार 1976 में यह जापान में सामने आया था, हालांकि इस बीमारी से ग्रसित बच्चे बिना किसी इलाज के ही ठीक हो जाते हैं। डॉक्टरों को भी इस बारे में पता नहीं है कि आखिर यह बीमारी किस वजह से होती है। लेकिन डॉक्टरों का मानना है कि यह वायरस, बैक्टीरिया या फिर रसायन इसकी वजह हो सकते हैं।
लक्षण और उपचार
इस बीमारी में बच्चों को पहले बुखार आता है, उनके पेट में दर्द होता है, डायरिया, आंखों का लाल होना, जुबान पर लाल रंग के दाने पड़ना, उल्टी और हाथ व पैरों की त्वचा पर जलन महसूस होती है। इस बीमारी की वजह से बच्चों की कोरोनरी धमनियों को नुकसान पहुंचता है। कोरोनरी धमनी का मुख्य काम रक्त को दिल तक ले जाना होता है। इस बीमारी का उपचार करने के लिए डॉक्टर सामान्य तौर पर एस्पिरिन, ड्रग्स आदि लिखते हैं जिससे कि रक्त के थक्के ना बने। लिहाजा डॉक्टर की सलाह पर ही यह दवा लेनी चाहिए।
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