जानिए, क्या होता है महाभियोग प्रस्ताव, जिसे उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने किया खारिज
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नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने आज भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दल के नेताओं गुरुवार को उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू से मुलाकात के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा को हटाने के लिए उनके खिलाफ महाभियोग लाने की बात कही था। कांग्रेस के साथ एनसीपी, वाम दलों, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी ने चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग की बात कही है। गुलाम नबी आजाद ने बताया था कि हमने उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के चेयरमैन वैंकेया नायडू को महाभियोग का प्रस्ताव दे दिया है। भारतीय न्याय व्यवस्था के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ था कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग लाया गया हो।
महाभियोग है क्या?
महाभियोग राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जजों को हटाने की एक प्रक्रिया है। इसके बारे में संविधान के अनुच्छेद 124 (4) में बताया गया है। सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज पर कदाचार, अक्षमता या भ्रष्टाचार को लेकर संसद के किसी भी सदन में जज के खिलाफ महाभियोग लाया जा सकता है।
लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 100 सदस्यों का प्रस्ताव के पक्ष में दस्तखत और राज्यसभा में इस प्रस्ताव के लिए सदन के 50 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होती है। जब किसी भी सदन में यह प्रस्ताव आता है, तो उस प्रस्ताव पर सदन का सभापति या अध्यक्ष के पास प्रस्ताव को स्वीकार भी कर सकता है और खारिज भी।
सदन के स्पीकर या अध्यक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते हैं तो संबंधित सदन के अध्यक्ष तीन जजों की एक समिति का गठन कर आरोपों की जांच करवाई जाती है। समिति में सुप्रीम कोर्ट के एक मौजूदा जज, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और एक कानून विशेषज्ञ को शामिल किया जाता है।
राष्ट्रपति के पास आखिरी शक्ति
सदन के स्पीकर या अध्यक्ष जो समिति बनाते हैं, वो जज पर लगे आरोपों की जांच कर अपनी रिपोर्ट सौंपती है। इसके बाद जज को अपने बचाव का मौका दिया जाता है। अध्यक्ष को सौंपी गई जांच रिपोर्ट में अगर जज पर लगाए गए आरोप साबित हो रहे हैं तो बहस के प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए सदन में वोट कराया जाता है। इसके बाद अगर संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई मतों से जज को हटाने का प्रस्ताव पारित हो जाता है तो इसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाता है। राष्ट्रपति के पास जज को हटाने की आखिरी शक्ति है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद जज को हटा दिया जाता है।
कभी पूरा नहीं हुआ महाभियोग
भारत में ऐसे मौके जरूर आए हैं, जब जज के खिलाफ महाभियोग लाया गया लेकिन कभी पूरा नहीं हो सका क्योंकि पहले ही संबंधित जज ने इस्तीफा दे दिया या सदन में प्रस्ताव गिर गया। सुप्रीम कोर्ट के जज वी रामास्वामी के खिलाफ 1993 में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था, ये प्रस्ताव लोकसभा में गिर गया। कोलकाता हाईकोर्ट के जज सौमित्र सेन के खिलाफ 2011 में महाभियोग लाया गया। प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पीडी दिनाकरन के खिलाफ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके अलावा भी कुछ मौके पर जजों के खिलाफ महाभियोग लाने की बात हुई लेकिन हर बार पहले ही जज ने इस्तीफा दे दिया।
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