कोरोना संकट में बढ़ी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन टेबलेट की डिमांड, क्या है ये मेडिसिन, क्यों दुनियाभर के देशों में है इसकी मांग
नई दिल्ली। कोरोना वायरल की चपेट में दुनिया के 180 से ज्यादा देश आ गए हैं। दुनिया भर में 1,348,184 लोगों कोरोना की चपेट में है। सबसे ज्यादा खराब हालात अमेरिका की है, जहां कोरोना संक्रमण से मरने वालों की तादात 10000 के पार हो गई है। बिगड़ते हालात को देखते हुए अमेरिका ने भारत से मदद मांगी है और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine) दवाईयों की सप्लाई का आग्रह किया है। विदेश मंत्रालय ने कोरोना वायरस के इलाज में प्रभावी मलेरिया की दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन निर्यात से बैन हटाने विचार कर रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति की वजह से एक बार फिर से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन मेडिसिन एक बार फिर से चर्चा में आ गई है। राष्ट्रपति ट्रंप ने दबी जुबान में यह तक कह दिया कि अगर भारत हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवाई की सप्लाई नहीं करता है तो उसे परिणाम भुगतना होगी। ऐसे में समझना जरूरी है कि आखिर ये हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन मेडिसिन हैं क्या? क्यों दुनियाभर के देशों में इसकी डिमांड बढ़ी है? क्यों भारत ने इसके निर्यात पर रोक लगाई हैं और क्या सच में ये दवाई कोरोना को रोकने में कारगर है? आइए इन सब सवालों के बारे में विस्तार से जानते हैं....
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क्या है हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन
अमेरिकी समेत दुनियाभर के 30 देशों ने भारत से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन मेडिसिन की डिमांड की है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मुताबिक यह दवाई कोरोना वायरस से लड़ने में कारगर है। भारत इस दवा का प्रमुख उत्पादक है। भारतीय दवा कंपनियां बड़े स्तर पर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का उत्पादन करती हैं। इस दवा का इस्तेमाल मलेरिया जैसी खतरनाक बीमारी से लड़ने के लिए किया जाता है। भारत में हर साल बड़ी संख्या में लोग मलेरिया की चपेट में आते हैं, इसलिए भारतीय दवा कंपनियां बड़े स्तर पर इसका उत्पादन करती हैं।
दुनियाभर के देशों में बढ़ी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की डिमांड
अमेरिका भारत पर मेडिसिन के लिए दवाब बनाने की कोशिश कर रहा है। भारत को चेतावनी दी जा रही है। दवाई की सप्लाई न करने पर परिमाण भुगतने की बात कह रहा है। वहीं दुनियाभर के 30 देशों ने भारत से इस मेडिसिन की डिमांड की है, जिसमें अमेरिका, ब्राजील, जर्मनी, स्पेन इसमें शामिल हैं। भारत ने अपनी जरूरतों को देखते हुए फिलहाल इसके निर्यात पर रोक लगा रखी है। भारत के पास अपनी ज़रूरत के हिसाब से स्टॉक है और आने वाले दिनों में बढ़ती मांग को देखते हुये उत्पादन बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया जा रहा है।
क्या कोरोना के इलाज के लिए है कारगर
ये मेडिसिन एंटी मलेरिया ड्रग क्लोरोक्वीन से थोड़ी अलग है। इसका इस्तेमाल ऑटोइम्यून रोगों(Arthritis) के इलाज में किया जाता है,लेकिन जैसे-जैसे कोरोना वायरस से संक्रमण के मामले बढ़े हैं, इसे कोरोना मरीजों का दिए जाने की बात सामने आई है। इसके पीछे की वजह है कि यह दवा सार्स-सीओवी-2 पर असर डालता है और यह सार्स सीओवी-2 वहीं वायरस है, जो कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह बनता है। अमेरिका के शोधकर्ताओं का मानना है कि इस मेडिसिन के साथ प्रोफिलैक्सिस का डोज लेने से SARS-CoV-2 संक्रमण और वायरल को बढ़ने से रोका जा सकता है। वहीं कुछ रिसर्च ये भा दावा करते हैं कि सिर्फ हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन या अजिथ्रोमाइसिन को अकेले लेने से या दोनों को मिलाकर लेने से अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट में SARS-CoV-2 RNA कम किया जा सकता है।
भारत हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का सबसे बड़ा निर्यातक देश
आपको बता दें कि भरत हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का सबसे बड़ा निर्यातक देश है, हालांकि भारत को इस मेडीसीन के लिए कच्चा माल चीन से मिलता है। आने वाले दिनों में भारत में इस मेडिसिन की डिमांड बढ़ने वाली है। वहीं कच्चे माल के आयात में परेशान हो सकती है। हालांकि सरकार ने भरोसा दिलाया है कि वो कच्चे माल की कोई कमी नहीं आने देंगे। ऐसे में इसके निर्यात को लेकर भारत सोच-समझ कर फैसला ले रहा है। भारत सरकार ने IPCA Lab और Cadila कंपनी को Hydroxy Chloroquine के 10 करोड़ टैबलेट तैयार करने का ऑर्डर दिया है। वहीं इन्हीं दोनों कंपनियों को अमेरिका से भी ऑर्डर मिला है।
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के साइड इफेक्ट
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का बिना किसी लक्षण के इस्तेमाल करना सही नहीं है। इस दवा के साइड इफ़ेक्ट की बात करें तो इसके अंतर्गत सिरदर्द, चक्कर आना, भूख मर जाना, मतली, दस्त, पेट दर्द, उल्टी और त्वचा पर लाल चकत्ते होना शामिल हैं। इसके ओवरडोज से मरीज बेहोश हो सकता है।
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