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किसान नेताओं के दिमाग़ में सरकार के प्रस्ताव को लेकर क्या चल रहा है?

सरकार ने किसानों को विवादित कृषि क़ानून को डेढ़ साल के लिए निलंबित करने का प्रस्ताव दिया है.

By दिलनवाज़ पाशा
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SOPA Images
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केंद्र सरकार के कृषि क़ानूनों को निलंबित करने के प्रस्ताव पर किसान संगठनों ने गुरुवार को दो लंबी बैठकें की.

कुछ किसान नेताओं ने सरकार के प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार करने की राय भी बैठक में ज़ाहिर की. लेकिन अंत में किसान नेताओं ने तीनों कृषि क़ानूनों के रद्द होने और एमएसपी पर क़ानूनी गारंटी मिलने तक प्रदर्शन जारी रखने का फ़ैसला किया.

बैठक के दौरान सरकार की मंशा, आंदोलन की आगे की रणनीति और 26 जनवरी की ट्रैक्टर परेड की तैयारियों को लेकर बात हुई. बैठक में शामिल एक किसान नेता के मुताबिक़ कम से कम 10 किसान नेताओं ने सरकार की तरफ़ से कृषि क़ानूनों को डेढ़ साल के लिए निलंबित करने के प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार करने और रुख़ नरम करने की बात कही.

लेकिन अधिकतर किसान नेता अपनी तीनों क़ानूनों को रद्द करने और एमएसपी का क़ानूनी अधिकार लेने की बात पर सहमत हुए और अपने रुख़ पर अड़े रहने का फ़ैसला किया.

शुक्रवार को सरकार के साथ होने वाली बातचीत से पहले किसानों की तरफ़ से एक बार फिर सख़्त रुख़ अख़्तियार किया गया है.

ऐसे में क्या बातचीत में किसानों की तरफ़ से नरमी की कोई संभावना है, इस सवाल पर किसान नेता दर्शनपाल कहते हैं, "हम समझ रहे हैं कि सरकार पीछे हट रही है. किसानों के दबाव के चलते सरकार ने ये प्रस्ताव दिया है. सरकार को बात को आगे बढ़ाने के लिए क़ानूनों को रद्द करने के आसपास जाना होगा. तब हमें लगेगा कि सरकार गंभीर है और फिर हमारी तरफ़ से भी कुछ नरमी दिखेगी."

दर्शनपाल कहते हैं, "हम क़ानूनों को पूरी तरह रद्द करवाना चाहते हैं, वो डेढ़ साल के लिए निलंबित करना चाहते हैं. सरकार का ये प्रस्ताव हमारे लिए एक मज़ाक की तरह है, डेढ़ साल के लिए निलंबित करने से हमारे लिए क्या हासिल होगा? हम समझ नहीं पा रहे हैं कि सरकार को ऐसा क्यों लग रहा है कि इन क़ानूनों के बिना देश चलेगा ही नहीं."

'पीछे नहीं हटेंगे किसान'

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Hindustan Times
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दिल्ली की सीमाओं पर किसानों को लंगर डाले अब दो महीने होने जा रहे हैं. बावजूद इसके किसानों की ना संख्या कम हो रही है और ना ही जोश. दर्शनपाल कहते हैं, "एक भी आंदोलनकारी को ज़बरदस्ती रोककर नहीं रखा गया है. सब अपनी मर्ज़ी से बैठे हुए हैं, बल्कि वो आंदोलन को एंजॉय कर रहे हैं."

वो कहते हैं, "ये बीते 40-45 सालों का सबसे बड़ा आंदोलन है. देशभर के किसान एकजुट होकर प्रदर्शन कर रहे हैं. इस आंदोलन ने किसान संगठनों को भी आत्मबल दिया है और वो समझ रहे हैं कि उनके पास अपनी बात को इस तरह रखने का मौक़ा फिर नहीं आएगा."

उत्तर प्रदेश के किसान नेता राकेश टिकैत कहते हैं, "सरकार पर अब हमें भरोसा नहीं है. हमारे मन में ये सवाल है कि अगर सरकार ने डेढ़ साल बाद फिर इन क़ानूनों को लागू कर दिया तो हम क्या करेंगे?"

टिकैत कहते हैं, "कई घंटों चली बातचीत के बाद हमने यही फ़ैसला किया कि हम सरकार के इस प्रस्ताव को ख़ारिज करते हैं. अगर हमें आगे छह महीने और आंदोलन चलाना पड़ेगा तो हम चलाएँगे, लेकिन हम पीछे नहीं हटेंगे."

किसानों का दावा

पंजाब के गुरदासपुर में ट्रैक्टर रैली की तैयारियां
BBC
पंजाब के गुरदासपुर में ट्रैक्टर रैली की तैयारियां

किसान संगठन 26 जनवरी को होने जा रही अपनी ट्रैक्टर परेड को ताक़त दिखाने के मौक़े के तौर पर भी देख रहे हैं. किसान नेताओं का दावा है कि कम से कम एक लाख ट्रैक्टर दिल्ली के आउटर रिंग रोड पर होंगे.

ऐसे में उन्हें लगता है कि सरकार के साथ बातचीत में उनका पलड़ा भारी है. कीर्ति किसान यूनियन से जुड़े राजिंदर सिंह दीपसिंहवाला कहते हैं, "अभी सरकार दबाव में है और इसलिए ही क़ानूनों को डेढ़ साल के लिए टालने का प्रस्ताव दिया है. सरकार की रणनीति हमें झाँसे में लेने की है, लेकिन हम सरकार की इस रणनीति को समझ रहे हैं."

दीपसिंहवाला कहते हैं, "आज होने जा रही बैठक में सरकार का रुख़ क्या होगा, इस पर तो कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन किसान संगठनों का मत स्पष्ट है. हम अपनी मांग पर अड़े रहेंगे."

वहीं किसान नेता बूटा सिंह बुर्जगिल कहते हैं, "हमें उम्मीद है कि सरकार आज कुछ और नरम पड़ेगी. पहले सरकार कह रही थी कि क़ानून वापस लेने का सवाल ही नहीं उठता, अब डेढ़ साल के लिए टालने की बात कह रही है, सरकार थोड़ा-थोड़ा पीछे हटते हुए क़ानून रद्द करने तक पहुँच जाएगी."

किसान नेताओं को ये भी लग रहा है कि अगर सरकार का प्रस्ताव मानते हुए अब आंदोलन वापस ले लिया, तो भविष्य में इतना बड़ा आंदोलन खड़ा करना मुश्किल होगा.

बूटा सिंह बुर्जगिल कहते हैं, "इस आंदोलन के लिए हम मई से तैयारियाँ कर रहे हैं. अगर सरकार के झाँसे में आकर हम अब पीछे हट गए, तो भविष्य में इतना बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं हो पाएगा. सरकार तो किसी भी तरह से आंदोलन को ख़त्म करना चाहती है."

किसान आंदोलन अभी तक शांतिपूर्ण रहा है, लेकिन किसान संगठनों के नेताओं के ये चिंता भी है कि अगर आंदोलन में किसी तरह की हिंसा हुई, तो ये आंदोलन अपने मूल मुद्दे से भटक जाएगा.

अनुशासन

बूटा सिंह बुर्जगिल कहते हैं, "बहुत चिंतित हैं, फ़िक्र भी है लेकिन अभी तक हम अनुशासन बनाए रखे हुए हैं. अगर सरकार गड़बड़ी कराना चाहेगी, तो करा लेगी. किसानों का मक़सद है कि आंदोलन को शांतिपूर्ण बनाए रखना है."

बुर्जगिल कहते हैं, "अगर सरकार चाहती है कि ये आंदोलन ख़त्म हो, तो उसका एकमात्र रास्ता क़ानून रद्द करना है. उससे कम कुछ भी नहीं."

29 जनवरी से संसद का बजट सत्र भी शुरू होने जा रहा है. किसान संगठनों को उम्मीद है कि इस दौरान किसानों का मुद्दा गर्म रहेगा और सरकार को उनकी मांगें मानने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

बूटा सिंह कहते हैं, "संसद शुरू होने जा रही है, किसानों के मुद्दे संसद में गूँजेंगे. सरकार को वहाँ भी जवाब देना पड़ेगा."

26 जनवरी की परेड को लेकर भी किसानों की दिल्ली पुलिस से बातचीत चल रही है.

बूटा सिंह बुर्जगिल कहते हैं, "हमें उम्मीद है कि ट्रैक्टर रैली के लिए बैरिकेड खुलने का रास्ता साफ़ हो जाएगा और हमें बैरिकेड तोड़ने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी."

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English summary
What is going on in the minds of farmer leaders about the government's proposal?
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