बिम्सटेक क्या है जिसके नेताओं को मोदी ने बुलाया?
म्यांमार को शामिल करने के बाद इसका नाम बीआईएमएसटी-ईसी हो गया. बाद में जब 2004 में भूटान और नेपाल को इसमें शामिल किया गया तो इसका नाम बिम्सटेक हो गया. सार्क (दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन, जिसमें पाकिस्तान भी शामिल है) के बजाए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शपथग्रहण में बिम्सटेक देशों के राष्ट्राध्यक्षों को न्योता दिया है.
बे ऑफ़ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन (बीआईएमएसटीईसी यानी बिम्सटेक) बंगाल की खाड़ी से सटे हुए और समीपवर्ती देशों का एक क्षेत्रीय संगठन है.
इसमें सात सदस्य देश हैं - भारत, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार और थाईलैंड. पाकिस्तान इसमें शामिल नहीं है.
इस संगठन का उद्देश्य तीव्र आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देने और साझा हितों के मुद्दों पर समन्वय स्थापित करने के लिए सदस्य देशों के बीच सकारात्मक वातावरण बनाना है.
बैंकॉक डिक्लेरेशन के तहत 1997 में इस क्षेत्रीय संगठन को स्थापित किया गया था.
शुरुआत में इसमें चार सदस्य देश थे और इसे बीआईएसट-ईसी - यानी बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका और थाईलैंड आर्थिक सहयोग संगठन कहा गया था.
म्यांमार को शामिल करने के बाद इसका नाम बीआईएमएसटी-ईसी हो गया. बाद में जब 2004 में भूटान और नेपाल को इसमें शामिल किया गया तो इसका नाम बिम्सटेक हो गया.
सार्क (दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन, जिसमें पाकिस्तान भी शामिल है) के बजाए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शपथग्रहण में बिम्सटेक देशों के राष्ट्राध्यक्षों को न्योता दिया है.
Invitation for Swearing-in Ceremony of PM @narendramodi extended to leaders of #BIMSTEC Member States, President of Kyrgyz Republic, as current Chair of #SCO & Prime Minister of #Mauritius, who was Chief Guest at this year's Pravasi Bhartiya Divas. https://t.co/NZieoT5NjX pic.twitter.com/2lYtXz8U2d
— Raveesh Kumar (@MEAIndia) 27 May 2019
लेकिन ये पहली बार नहीं है जब भारत ने पाकिस्तान को नज़रअंदाज़ किया है.
इससे पहले साल 2016 में जब भारत ने ब्रिक्स सम्मेलन की मेज़बानी की थी तब भी भारत ने सार्क के बजाए बिम्सटेक देशों को न्योता दिया था.
भारत इस तरह पाकिस्तान को बुलाने की बाध्यता से बच गया था.
सार्क के ज़रिए जहां भारत दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग और व्यापार कर रहा था, मगर 'बिम्सटेक' के बाद दक्षिण-पूर्वी एशिया में भी भारत ने आपसी सहयोग और व्यापार को आगे बढ़ाया.
हालांकि बिम्सटेक के सदस्य देशों के अपने मुक्त व्यापार समझौते भी हैं ऐसे में बिम्सटेक का असर बहुत ज़्यादा नहीं है.
भारत के लिए ये संगठन इसलिए अहम है क्योंकि सभी सदस्य देश भारत के क़रीबी पड़ोसी भी हैं.
ये भारत की पूर्व में अपना प्रभाव बढ़ाने की नीति में भी सहायक है क्योंकि ये भारत को दक्षिण एशियाई देशों से भी जोड़ता है.
लेकिन क्या संगठन बहुत प्रभावशाली है?
भारत के पूर्व विदेश सचिव मुचकुंद दुबे को ऐसा नहीं लगता.
बीबीसी को इस बारे में दो साल पहले एक टिप्पणी में उन्होंने कहा था, "दक्षिण पूर्व एशिया की तरफ हमारी नीति काफी पहले से बनी हुई है. पिछले 30 सालों से जिस स्थिति में सार्क रहा है उसे मृत प्रायः स्थिति ही कहा जा सकता है. केवल सम्मेलनों का नियमित रूप से होना किसी संस्था के जीवित होने का प्रमाण नहीं है. जहां तक ठोस क़दम उठाने का सवाल है तो राजनीतिक विभाजन की वजह से ऐसा नहीं हो सका."
दुबे का कहना था कि 'बिम्सटेक' से भी ज़्यादा उम्मीदें इसलिए नहीं लगाई जा सकती हैं क्योंकि यह संगठन भी लगभग वैसा ही होकर रह गया है जैसा 'सार्क'.
हालांकि कुछ विश्लेषक ये भी मानते हैं कि बिम्सटेक के ज़रिए भारत ने दक्षिण-पूर्वी एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाया है.
अपने शपथग्रहण में मोदी ने बिम्सटेक देशों के सदस्यों को बुलाकर फिर ये संकेत दिया है कि ये देश भारत के लिए कितने अहम हैं.
भारत ने संकेत ये भी दिया है कि वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने के प्रयास जारी रखेगा.