13 Point roster: जानिए, यह रोस्टर क्या है और इसका विरोध क्यों हो रहा है?
नई दिल्ली- एससी-एसटी उत्पीड़न (निरोधी) कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने उसी अंदाज में एक और बड़ा फैसला लिया है। दलित और पिछड़े संगठनों के विरोध को देखते हुए उसने उच्च शिक्षण संस्थानों में बहाली के लिए 13 प्वाइंट रोस्टर की प्रक्रिया को पलटने के लिए अध्यादेश लाने का फैसला किया है। इस अध्यादेश के अमल में आते ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदल जाएगा। आइए जानते हैं कि यह 13 प्वाइंट रोस्टर (13 Point roster) है क्या, जिसका इतना विरोध हो रहा है?
13 प्वाइंट रोस्टर (13 Point roster) क्या है?
इस नियम के तहत यूनिवर्सिटी,कॉलेजों या उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रोफेसरों, एसिस्टेंट प्रोफेसरों जैसे पदों पर नियुक्ति के लिए डिपार्टमेंट को ही यूनिट माना गया है, विश्वविद्यालय या महाविद्यालय को नहीं। इसका मतलब समझने से पहले यह समझ लेना जरूरी है कि यूनिवर्सिटी में उच्च पदों पर नियुक्ति के लिए पहले से ही एक निर्धारित प्रक्रिया है। जिसके मुताबिक 1 पद से लेकर 200 पदों तक की नियुक्ति के लिए एक पूर्व व्यवस्था तय है। इसे 200 प्वाइंट रोस्टर कहते हैं। इसमें हर संख्या वाला पद पहले से ही किसी विशेष वर्ग के लिए आरक्षित या अनारक्षित है। जबकि, 13 प्वाइंट रोस्टर में इसके पहले 13 पदों पर ही नियुक्ति का मानक तय किया गया है। यानी 14वें पद से फिर से नया क्रम शुरू हो जाएगा। 13 प्वाइंट रोस्टर में चौथा पद ओबीसी का, सातवां पद एससी का और बारवां ओबीसी का है। जबकि, बाकी सारे पद यानी 1,2,3,5,6,9,10,11 और 13 अनारक्षित रहता है। यानी इसमें एसटी वर्ग को आरक्षण नहीं मिलता क्योंकि,200 प्वाइंट रोस्टर उनका नंबर 14वां है।
विरोध की वजह समझिए
13 प्वाइंट रोस्टर (13 Point roster)का विरोध इस आधार पर किया जा रहा है कि अगर यूनिवर्सिटी या कॉलेजों में नियुक्ति का आधार विभागों से तय होगा, तो आरक्षित वर्गों को आरक्षण का पूरा लाभ ही नहीं मिलेगा। एक तरह से यूनिवर्सिटी में आरक्षण की व्यवस्था ही खत्म हो जाएगी। इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि यूनिवर्सिटी के किसी भी विभाग में इकट्ठे मुश्किल से 2 या 3 वैकेंसी ही निकल पाती है। जैसे- अगर 3 पोस्ट के लिए विज्ञापन जारी हुआ, तो उसमें एक भी पद आरक्षित नहीं रहेगा। अगर 13 पदों पर भी नियुक्तियां निकलीं तो भी उसमें एसटी वर्ग को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाएगा, क्योंकि उनका पहला नंबर ही 14वें पर आएगा। यही नहीं 13 पदों में भी ओबीसी को सिर्फ 2 और एससी को 1 पद ही मिल पाएगा। जबकि, अगर यूनिवर्सिटी या पूरे संस्थान को यूनिट मानकर नियुक्ति का विज्ञापन निकलेगा, तो उसमें 200 पदों पर नियुक्ति के बाद ही, अगली सीरीज शुरू होगी।
विवाद कैसे शुरू हुआ?
दरअसल, 2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों में 13 प्वाइंट रोस्टर लागू करने का फैसला सुनाया। इस फैसले को बदलने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी गई। लेकिन,सुप्रीम कोर्ट ने पिछले जनवरी में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। पिछले हफ्ते भी सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को कायम रखते हुए 13 प्वाइंट रोस्टर जारी रखने का फैसला सुनाया। दलित और ओबीसी वर्ग के लोग इसी फैसले का विरोध कर रहे थे और पिछले पांच मार्च को भारत बंद का भी आह्वान किया था। ये संगठन सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटकर फिर से 2006 की गाइडलाइंस जारी करने के लिए संसद सत्र की मांग कर रहे थे, जिसके तहत 200 प्वाइंट रोस्टर की व्यवस्था है।