उन आधार डेटा का क्या जो मोबाइल कंपनियों और बैंकों के पास पहले से है?
नई दिल्ली। आधार की अनिवार्यता के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने आधार के लिए अधिनियम की धारा 57 को भी खत्म कर दिया है। कोर्ट के इस फैसले के बाद यह तो साफ हो गया है कि अब ना ही बैंक आपसे आधार कार्ड मांग सकते हैं और ना ही जिओ और एयरटेल जैसी टेलीकॉम कंपनियां। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह माना की आधार आम आदमी की पहचान है। आधार की वजह से निजता के हनन के सबूत मिले हैं। लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल ये उठा है कि जिनका डेटा पहले से टेलीकॉम कंपनियों और बैंके पास है उसके लिए क्या किया जा सकता है?
जियो के पास अकेले 62 मिलियन आधार फिंगरप्रिंट
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक टेलीकॉम कंपनी रिलायंस जियो ने सितंबर महीने को छोड़कर 62 मिलयन फिंगरप्रिंट का प्रमाणीकरण किया है। जबकि 44 मिलियन के साथ एयरटेल दूसरे स्थान पर है। सूची में तीसरे स्थान पर वोडाफोन और चौथे स्थान पर आइडिया है। इसके साथ-साथ पेटीएम ने भी 98 मिलियन आधार का प्रमाणीकरण किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर अब इन डेटा को कंपनियों से दूर हटाने के लिए क्या किया। तो आईए आगे लीजिए।
मोबाइन नंबर का आधार के साथ जुड़ना गंभीर खतरा
आधार पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि मोबाइल नंबरों का आधार के साथ लिंकअप व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा बन चुका है। उन्होंने निर्देश दिया है कि दूरसंचार ऑपरेटर उन सभी डेटा को डिलीट करें जो उन्होंने उपयोगकर्ताओं से इकट्ठा किया है। लेकिन मुद्दा यह कि जस्टिस चंद्रचूड़ का निर्णय पर सभी जजों की राय एक जैसी नहीं थी। इसलिए डेटा को हटाने के बारे में कोई उल्लेख नहीं किया गया। क्योंकि बहुमत के आधार पर ही मानदंड लागू होगा।
अब आगे क्या?
कोर्ट ने अपने फैसले में यह उल्लेख नहीं किया कि क्या उपयोगकर्ता मोबाइल कंपनियों के पास जाकर अपने डेटा को हटाने की मांग सकते हैं। इस मामले में वन इंडिया के कानूनी विशेषज्ञों ने कहा कि यह बहुमत के आधार पर स्पष्ट होना चाहिए था। क्योंकि डेटा हटाने के लिए डेटा हटाने के लिए उच्च न्यायालय जाना और वहां इस संबंध में आदेश लेना कोई विकल्प नहीं है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। हां ये जरूर है कि उपयोगकर्ता जस्टिस चंद्रचूड़ की बात को हाई कोर्ट के सामने रख सकते हैं और इसकी व्याख्या कर सकते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इन सब से अच्छा उपाय ये है कि आप सीधे सुप्रीम कोर्ट जाना होगा और स्पष्टीकरण मांगना होगा। याचिका की समीक्षा की भी कोई जरूरत नहीं है। इसके साथ-साथ कानूनी विशेषज्ञों से भी राय ले सकते हैं।
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