जब पूर्व PM से मिलने एम्स गयी थीं सोनिया गांधी तो क्या हुआ था ?
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बीमार हैं। दिल्ली के एम्स में उनका इलाज चल रहा है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया मनमोहन सिंह को देखने अस्पताल गये थे। लेकिन केन्द्रीय मंत्री का यह दौरा अब विवादों में घिर गया है। मनमोहन सिंह की पुत्री दमन सिंह ने आरोप लगाया है, “उनकी मां की आपत्ति के बावजूद उनके बीमार पिता की तस्वीर उतारी गयी। मंत्री के साथ कमरे में एक फोटोग्राफर भी आया था। मां ने फोटोग्राफर को कमरे से बाहर जाने को कहा। लेकिन वह बात अनसुनी कर फोटो खींचता रहा। मेरे पिता को इनफेक्शन है। इस बात का भी ख्याल नहीं रखा गया।” भारत के एक और पूर्व प्रधानमंत्री जब एम्स में इलाजरत थे तब उनको देखने के लिए सोनिया गांधी गयीं थीं। सोनिया गांधी का यह दौरा भी तब बड़े विवाद का कारण बन गया था। आज भाजपा के मंत्री पर राजनीति करने का आरोप लगा है। उस समय सोनिया गांधी पर भी ऐसा ही आरोप लगा था।
जब नरसिम्हा राव से मिलने अस्पताल गयी थीं सोनिया
पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव नवम्बर 2004 में गंभीर रूप से बीमार पड़ गये थे। उन्हें इलाज के दिल्ली एम्स में भर्ती किया गया था। एक दिन उनसे मिलने के लिए सोनिया गांधी गयीं। सोनिया गांधी के साथ उनके राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल भी थे। जब अहमद पटेल ने औपचारिकता में नरसिम्हा राव की तरफ पानी का ग्लास बढ़ाया तो वे बुरी तरह बिफर पड़े। "तुम लोग मुझ पर मस्जिद तुड़वाने का आरोप लगाते हो। अब अपनापन दिखाने के लिए पानी पिला रहे हो। जो गलती मैंने नहीं की उसके लिए भी मुझे जिम्मेदार ठहरा दिया।" सोनिया सब कुछ देख रही थीं। दरअसल सोनिया के समर्थक नेता 1992 की घटना के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को जिम्मेदार मानते थे। अर्जुन सिंह ने अपनी किताब में बाबरी विध्वंस घटना का जिक्र करते हुए नरसिम्हा राव की तुलना नीरो से की थी। बाबरी विध्वंस के कारण कांग्रेस को अपना वोट बैंक खोने का डर था। इसलिए सोनिया और उनके समर्थकों ने नरसिम्हा राव को 1996 से ही नजरअंदाज करना शुरू कर दिया था। सोनिया को इस बात को शक था कि नरसिम्हा राव ने जानबूझ कर राजीव गांधी हत्याकांड की जांच धीमी कर दी थी। प्रोफेसर विनय सीतापति की किताब (हाफ लायन : हाऊ पीवी नरसिम्हा राव ट्रांसफॉर्म्ड इंडिया) में नरसिम्हा राव और सोनिया गांधी की अनबन पर विस्तार से लिखा गया है।
नरसिम्हा राव बनाम सोनिया गांधी
बाबरी विध्वंस की घटना के बाद नरसिम्हा राव को लगता था कि अर्जुन सिंह, एनडी तिवारी, नटवर सिंह, दिग्विजय सिंह जैसे नेता सोनिया गांधी को उनके खिलाफ भड़का रहे हैं। प्रधानमंत्री के रूप में राव को ये बात बहुत नागवार गुजरी। तब उन्होंने इंटेलिजेंस ब्यूरो को यह पता लगाने के लिए कहा था कि कौन-कौन से नेता सोनिया गांधी से मिलने उनके आवास पर जाते हैं। यह विडम्बना की बात है कि सोनिया गांधी ने जिस नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री बनाया था उन्हीं से उनकी तकरार शुरू हो गयी थी। पहले सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। लेकिन परिस्थितियां अचानक बदलने लगीं। नरसिम्हा राव बुजुर्ग और विद्वान नेता थे। उन्होंने 65 साल की उम्र में कम्प्यूटर सीख कर राजीव गांधी को चौंका दिया था। यहां तक कि उन्होंने कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग में भी महारत हासिल कर थी। उनके जैसा लिखने-पढ़ने वाला नेता पूरी पार्टी में कोई नहीं था। प्रणब मुखर्जी भी यह बात मानते थे। कांग्रेस का कोई दस्तावेज बिना उनकी मंजूरी के आगे नहीं बढ़ता था। खूबियों और अनुभव के कारण नरसिम्हा राव की सोच अन्य नेताओं से अलग थी। वे सोनिया गांधी का सम्मान तो करते थे लेकिन जीहुजूरी करना उन्हें मंजूर नहीं थी। वे सोनिया गांधी से हर हफ्ते मिलते थे।
जब सोनिया से मिलने के लिए PM को करना पड़ता था इंतजार
कई बार नरसिम्हा राव को सोनिया गांधी से मिलने या बात करने के लिए इंतजार करना पड़ता था। ये बात उन्हें अखरती थी। आखिरकार वे भारत के प्रधानमंत्री थे। जब उनके आत्मसम्मान को चोट लगी तो उन्होंने सोनिया गांधी से मिलना छोड़ दिया। ये जून 1993 के आसपास की बात है। फिर तो सोनिया लॉबी को बड़ा मौका मिल गया। वे सोनिया गांधी को राव के खिलाफ भड़काने लगे। मामला बिगड़ता चला गया। राव प्रधानमंत्री के पद की मर्यादा के अनुरूप स्वतंत्र रूप से कार्य करते रहे। 1993 का अविश्वास प्रस्ताव को झेल कर वे एक मजबूत नेता बन चुके थे। सोनिया गांधी के प्रति निजी वफादारी से उन्हें कोई मतलब नहीं था। जब तक प्रधानमंत्री रहे अपने जमीर के मुताबिक काम करते रहे। लेकिन 1996 का चुनाव हार जाने के बाद उनकी स्थिति कमजोर हो गयी। सोनिया समर्थकों ने उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था। पद से हटते ही उन्हें दरकिनार कर दिया गया। 1999 में जब वे बीमार पड़े थे तब कांग्रेस के बहुत कम नेता ही उनसे मिलने गये थे। सोनिया गांधी के समर्थकों के सुलूक से नरसिम्हा राव बहुत आहत थे। उनके मन में गुस्सा भरा हुआ था। इसलिए जब 2004 में सोनिया गांधी उनसे मिलने अस्पताल पहुंची थीं तब उनका गुस्सा अचानक फूट पड़ा था।