प्रवासी मजदूरों की हालत पर जावेद अख्तर ने सरकार को घेरा, बोले- टिन में फंसी मछली की तरह ट्रक में जाने को मजबूर
मुंबई। कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन जारी है। ऐसे में जो जहां है वहीं फंसा हुआ है। हालांकि भूखे प्यासे प्रवासी मजदूर पैदल ही अपने घर जाने को मजबूर हैं। मजदूरों की स्थिति को लेकर मशहूर गीतकार और कवि एवं स्क्रिप्ट राइटर जावेद अख्तर ने एक ट्वीट किया है, अपने इस ट्वीट के जरीए उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार पर निशाना साधा है। जावेद अख्तर का ये ट्वीट सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। अपने ट्वीट में जावेद अख्तर ने कहा कि लाखों प्रवासी भी चिलचिलाती धूप में अपने भूखे-प्यासे बच्चों के साथ हाइवे पर पैदल चल रहे हैं। इसके साथ ही जावेद अख्तर ने आगे कहा कि यात्रा योजना के लिए केंद्र की तरफ से 85% और राज्य की तरफ से 15% किये जा रहे भुगतान का क्या हुआ।
टिन में फंसी एक छोटी मछली की तरह ट्रक में फंसकर जा रहे मजदूर
प्रवासी मजदूरों को लेकर जावेद अख्तर का यह ट्वीट सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियां बटोर रहा है, साथ ही लोग इसपर जमकर कमेंट भी कर रहे हैं। जावेद अख्तर ने अपने ट्वीट में लिखा, "लाखों प्रवासी चिलचिलाती धूप में अपने भूखे-प्यासे बच्चों के साथ या तो हाइवे पर पैदल चल रहे हैं या तो टिन में फंसी एक छोटी मछली की तरह ट्रक में फंसकर जा रहे हैं। यात्रा योजना के लिए केंद्र की तरफ से 85% और राज्य की तरफ से 15% किये जा रहे भुगतान का क्या हुआ।"
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ट्रोलर्स ने दिया जावेद अख्तर को ये जवाब
कुछ लोगों को जावेद अख्तर का ये ट्वीट नागवार गुजरा। एक यूजर ने लिखा, ये सब जाने दो, ये बताओ ब्रेकफास्ट कैसा था। वहीं एक यूजर ने गीतकार को सोनू सूद की तरह मदद की सलाह दे डाली और लिखा, कृपया सोनू सूद की तरह ही कुछ करिए। एक अन्य ने लिखा कि केवल उनसे पूछो। घर में बैठकर टाइप करना आसाना है। सरकार उनके लिए सबकुछ कर रही है। लेकिन वे केवल अपने गांव जाने के लिए अधीर हैं। एक यूजर ने लिखा बस दुआ है आपके वामंथी बंधुओं की जिन्होंने मजदूर को बरगलाने और डराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। और मजबूर कर दिया सड़कों पर निकलने के लिए।
इससे पहले भी मजदूरों को लेकर ये कह चुके हैं जावेद अख्तर
गौरतलब है कि इससे पहले भी जावेद अख्तर ने मजदूरों के हालात गुस्सा जाहिर किया था और ट्वीट कर कई सवाल उठाए थे। जावेद अख्तर ने तब लिखा था 30 जून तक ट्रेन नहीं चलाने का क्या मतलब है? प्रवासी मजदूर वापस अपने घर जाना चाहते हैं और वापस जाने का उन्हें पूरा अधिकार भी है, लेकिन विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग सस्ती लेबर को जाने नहीं देना चाहता। गलत तरीके से उनके रास्ते को रोकने की कोशिश करके हम उन्हें बंधुआ मजदूरी में बदलने की कोशिश नहीं कर रहे हैं?"