क्या से क्या हो गई मटुकनाथ वाली जूली?
नई दिल्ली- 2000 के आखिरी और 2010 के शुरुआती वर्षों में मटुकनाथ और जूली की प्रेम कहानी पूरे देश में खूब मशहूर हुई थी। रिटायरमेंट की उम्र में चल रहे हिंदी के एक बुजुर्ग प्रोफेसर और उनकी नई-नवेली सौंदर्य की धनी शिष्या किसी न किसी टीवी चैनल पर प्रेम का मर्म समझाते नजर आते थे। एक तरह से वही माहौल बनाया जा रहा था, जैसे शायद द्वापर युग में वृंदावन की कुंज गलियों, वनों और यमुना के किनारे भगवान कृष्ण अपने सखाओं को सुनाते रहे होंगे। करीब 10 वर्षों तक प्रोफेसर मटुकनाथ ने अपनी शिष्या जूली के साथ प्रेम की महिमा के बारे में कई सारे व्याख्यान दिए। उन्होंने लोगों को प्रेम के दिव्य स्वरूप के बारे में समझाने की कोशिश की। ऐसा लग रहा था कि प्रोफेसर साहब किसी दूसरी दुनिया से प्रेम का संदेश देने के लिए ही धरती पर बुलाए गए हों। लेकिन, आज जूली जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है। जिस मटुकनाथ के प्रेम में उसने लोक-लाज और परिवार की परवाह नहीं की, वह अपने देश से हजारों किलोमीटर दूर कई समंदर पार एक खैराती अस्पताल के एकांत में अपनी सांसे गिन रही है।
क्या से क्या हो गई मटुकनाथ वाली जूली?
कहते हैं कि प्यार में वह ताकत होती है, जो बीमार से बीमार इंसान में भी जान फूंक सकता है। लेकिन, कभी अपनी बला की खूबसूरती के लिए चर्चित पटना यूनिवर्सिटी की छात्रा जूली के लिए प्रेम की वह परिभाषा अब बदल चुकी होगी। अपने से 30 साल से अधिक उम्र के अपने ही प्रोफेसर को दिल बैठी जूली ने कभी बुजुर्ग मटुकनाथ के लिए अपना घर-परिवार सब छोड़ दिया था, सारे संसार से बेरुखी मोल ले ली, लेकिन उसे आज प्रेम का ये सिला मिला है कि वह हजारों मील दूर कैरेबियाई देश त्रिनिदाद के एक सरकारी अस्पताल में गंभीर रूप से बीमार पड़ी है और मानसिक अवसाद झेलने को मजबूर है। लेकिन, एक वक्त जूली से प्रेम का स्वांग रचने के लिए प्रोफेसरी के पेशे को दांव पर लगाने वाले मटुकनाथ को आज जूली की हालत नहीं दिखती। उन्होंने अपनी बेटी की उम्र की प्रेमिका से पूरी तरह से मुंह फेर लिया है।
मटुकनाथ ने जूली की मदद करने से इनकार किया
जूली के दर्द भरी कहानी कभी सामने नहीं आती, अगर उनकी दोस्त और भोजपुरी गायक देवी को उनकी बीमार वाली तस्वीर नहीं मिलती। देवी के मुताबिक जूली ने उनसे करीब 6 महीने पहले मदद मांगी थी। इस दौरान उन्होंने कई लोगों को जूली की हालत बताई और मदद मांगी। लेकिन, जब कहीं से कोई उम्मीद की किरण नहीं दिखाई दी, तब ये सच्चाई दुनिया के सामने जाहिर की है। उनके मुताबिक, 'जब मैंने जूली से संपर्क साधा तो उसने अपनी तस्वीर भेजकर मुझे अपनी हालत के बारे में बताया और भारत लाकर इलाज कराने की गुहार लगाई।' देवी ने जूली की हालत प्रोफेसर मटुकनाथ को भी बताई, लेकिन शायद उन्होंने अपना असली रूप दिखा दिया। देवी के मुताबिक, ‘जिसने समाज से लड़कर, समाज के सामने खुलेआम प्रेम किया और आज जब उसे इसकी जरूरत है तो कोई कैसे कह सकता है कि उसके पास पैसे नहीं हैं। मटुकनाथ ने जूली को भारत लाने से इनकार कर दिया और कहा, मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं।'हद तो तब हो गई जब मटुकनाथ ने जूली की चिंता करने के बजाय इंसानियत से भी मुंह चुराने की कोशिश की। वे बोले, 'मैं कुर्बानी नहीं करता। कभी मैं त्याग की बात नहीं करता। सबके लिए यह दरवाजा खुला है। मैं प्यार की बात करता हूं।' इतना ही नहीं उन्होंने फिर से ये राग अलापा कि 'बरसेंगे सावन झूमझूम के, दो दिल जब मिलेंगे।'
जूली-मटुकनाथ की प्रेम कहानी खूब मशहूर हुई थी
पटना की जूली और मटुकनाथ की प्रेम कहानी कभी पूरे देश में चर्चा में आई थी। 2006 की बात है जब पटना यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग के प्रोफेसर मटुकनाथ अपने से तीन दशक छोटी छात्रा से प्रेम के सार्वजनिक इजहार की वजह से खूब सुर्खियां बटोर रहे थे। टीवी चैनलों पर जूली के साथ डिबेट में शामिल होकर टीआरपी बढ़ाने में मशगूल थे। तब जूली के लिए अपना बसा-बसाया परिवार छोड़ दिया था। शायद लवगुरु की बातों में आकर जूली ने भी अपने परिवार से मुंह मोड़ लिया। दोनों का सामाजिक तौर पर काफी विरोध भी हुआ। मटुकनाथ के चेहरे पर कालिख भी पोत दी गई। यूनिर्सिटी ने प्रोफेसर को निलंबित भी किया। लेकिन, दोनों एक-दूसरे का साथ छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए।
जूली को इलाज के लिए भारत लाना चाहती हैं उनकी सहेली
2007 से 2014 तक मटुकनाथ और जूली जग-हंसाई कराकर भी लिव इन रिलेशनशिप में रहे। लेकिन, उसके बाद दोनों के बीच दूरिया आनी शुरू हो गईं। जिस बुजुर्ग प्रोफेसर ने परिवार को छोड़कर शिष्या का हाथ थामा था, वो मौका पाकर वापस परिवार के पास चले गए। लेकिन, उस युवा जूली को अकेले छोड़ गए, जो अपने गुरु से प्रेम की बड़ी-बड़ी बातें सुनकर माता-पिता तक को भी छोड़ आई थी। मटुकनाथ उन्हें साथ लेकर टीवी चैनलों में प्रेम पर लच्छेदार कहानियां सुनाते थे और उधर जूली के परिवार वालों को समाज में निकलना मुश्किल हो गया था। कहते हैं कि भारी बदनामी की वजह से बाद में अपने परिवार ने भी जूली को अपनाने से इनकार कर दिया। लिहाजा जूली की जिंदगी में बेबसी छा गई। कहा जाता है कि इसके बाद उसकी कोई सहेली उसे त्रिनिदाद में एक आध्यात्मिक गुरु के आश्रम लेकर चली गई। लेकिन, वहां उसकी सेहत और बिगड़ती चली गई और फिलहाल वो वहां एक सरकारी अस्पताल में जीवन और मौत से जूझ रही हैं। भारत में उनकी दोस्त देवी उन्हें स्वदेश लाने के लिए विदेश मंत्रालय से लेकर बिहार के मुख्यमंत्री तक से गुहार लगा रही हैं, ईश्वर करे कि उन्हें उनके मकसद में जल्द कामयाबी मिल जाए। लेकिन, एक हंसती-खिलखिलाती लड़की को प्रेम करने की इतनी बड़ी सजा मिलेगी तो समाज में इस शब्द से भरोसा जरूर कम हो जाएगा।
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